चलकर देखें
चलकर देखें इरादा कर ही लिया जब कि चलते जाना है फिर जरूरी है क्या कि अँधेरे को हम डरकर देखें हौसला लेकर चलें हल की तरह कांधे पर जहाँ पर रौशनी का घर है वहाँ चलकर देखें कसैलेपन के लिए जिंदगी ही काफी है ये जरूरी नहीं कि हर बार हम मरकर देखें…
चलकर देखें इरादा कर ही लिया जब कि चलते जाना है फिर जरूरी है क्या कि अँधेरे को हम डरकर देखें हौसला लेकर चलें हल की तरह कांधे पर जहाँ पर रौशनी का घर है वहाँ चलकर देखें कसैलेपन के लिए जिंदगी ही काफी है ये जरूरी नहीं कि हर बार हम मरकर देखें…
मज़दूर की बेटी विनायक अंकल आप मेरे पापा बनोगे? शैली के अप्रत्याशित सवाल से बुरी तरह से हड़बड़ा गए थे विनायक जी अरे बेटा मै तुम्हारे पिता जैसा ही हूँ ख़ुद को संयत करते हुए विनायक जी ने ज़वाब दिया। पिता जैसा होने में और पिता होने में काफ़ी फर्क़ होता है अंकल शैली की…
मेरे यादों में भागलपुर गंगा किनारे बसा भागलपुर बिहार का एक साधारण सा शहर पर मेरे लिए बेहद महत्व पूर्ण …..मेरे पापा माँ की शादी भागलपुर में १९५९ जून में हुई थी जब नाना वहाँ मजिस्ट्रेट थे .पापा की पहली नौकरी टी एन बी कोलेज भागलपुर में ही हुई और उनकी पहली संतान यानि मेरा…
घरेलू हिंसा मुझे हिंसा अपने आप में ही बहुत बुरी लगती है ।आमतौर पर लोगों को ऐसा लगता है कि हम हिंसक हो जाएंगे तो हमें हमारा हक मिल जाएगा , लोग हम से डर जाएंगे लेकिन यह गलतफहमी है ।हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है ।जब यहीं हिंसा घर में होने…
वह कैसे नवयुवक थे जिन्हें चाहिए थी आजादी हर हाल में हर कीमत पर उन्हें चाहिये थी आजादी वह दूसरो युवकों से थे अलग नायको में नायक थे जिन्हें चाहिए थी हर हाल में हर कीमत पर आजादी उनकी चाहत न कोई हीर थी न लैला उनकी चाहत थी हर हाल में हर कीमत पर…
ओह,पुरुष “ओह, पुरुष क्या तुम नहीं जानते?” ओह, पुरुष क्या तुम सुनते नहीं हो, तुम्हारी पत्नी कई आँसू रो रही है! ओह, पुरुष क्या तुम देखते नहीं हो तुम्हारी पत्नी कई डर छुपा रही है! ओह, पुरुष क्या तुम्हें महसूस नहीं हो रहा तुम्हारी पत्नी सुरक्षा के लिए तरस रही है! ओह, पुरुष क्या तुम्हें…
“यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता” नारी के बिना इस सृष्टि की कल्पना करना संभव ही नही है। युवा हो या अधेड़ या हो वृद्ध। सभी पुरुषों को यह समझना जरूरी है। आज छोटी बच्चीयों से लेकर वृद्ध महिलाएं सुरक्षित नही है ,यह 21 वी सदी में रहते हुए भी बड़ी वेदना की बात है।…
पचास की दहलीज पार करती औरतें ये पचास की दहलीज पार करती औरतें वाकई बहुत विचित्र होती हैं, एकदम समझ से परे.. कई बार लगता मानों समेटे हों कितने गहरे राज अपने भीतर बिल्कुल सीप में मोती के मानिंद.. दबाए रखती हैं कितने एहसास चेहरे पर बढ़ती झुर्रियों में और फिर उन्हें में मेकअप की…
“औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया… जिस कोख से उसने जन्म लिया उस कोख का कारोबार किया!!” साहिर लुधियानवी की चुभती पंक्तियाँ, मुज़फ़्फ़रपुर कांड को भली भाँति दर्शाती है!..आज के परिवेश में देश में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है…महिलाओं का शोषण दिनों दिन बढता जा रहा…
पापा प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा ———————————————————— अंगुली थाम के बहुत चलाया पापा तुमने, जब-जब गिरा मैं बहुत प्यार से उठाया तुमने, मेहनत कर दिन-रात था पापा पढ़ाया तुमने, हरदम सच्ची राह पे चलना सिखाया तुमने। जब-जब ठोकर लगी यही सिखलाया तुमने, देखके सामने चलो ये पाठ पढ़ाया तुमने, जब रस्ते में…