जागृति

जागृति हरसिंगार के छोटे छोटे फूल पेड़ों के नीचे गलीचा से बिछ गए हैं उनके फूलों की भीनी खुशबू से हवा मदमस्त ! और मदमस्त हवा अपने झोंके में गूंजते मंत्रोच्चारण को जैसे झूला झूला रही, दुर्गा मां का आगमन जो हो गया है, ढाक की आवाज आरती मेें बजती घंटियां, पावन कर रही हैं…

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है दुर्गा आनेवाली

है दुर्गा आनेवाली है दुर्गा आनेवाली काश फूलों से सज गई धरती सुगंध महकाए शेफाली है दुर्गा आनेवाली। न है मंडप की शोभा न है रोशनी की लड़ी न है घूमने फिरने की बारी कब थमेगी यह महामारी ? किसान का आत्महनन है जारी उसपर हल का बोझ हुआ भारी ऊपर से कर्ज की लाचारी…

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आह्वान

आह्वान नारी अबला नहीं , तुम हो सबल। शक्ति से भरपूर। सृजन करती हो, सृष्टि करती हो, रचनाकार हो इस धरती की। जीवन नहीं है एक अंतहीन अंधेरी सुरंग, उसे तुम आलोकित करो अंत:तिमिर का नाश करो। अपने अंदर का विश्वास जगाओ। रश्मि किरणों का अहसास करो, विधु की शीतलता का भी तुम विस्तार करो।…

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मिट्टी की मूरतों में देवी की खोज

‘मिट्टी की मूरतों में देवी की खोज’ इंसान की विनम्रता है कि पंचतत्त्वों से निर्मित अपने शरीर को वह मिट्टी मानता है,अपने आराध्यों की कल्पना भी वह मिट्टी से ही साकार करता है,किंतु इन मूर्तियों के लिए मिट्टी एकत्रित करना खासा मुश्किल भरा काम है। नवरात्र में जगतजननी मां दुर्गा की मूर्ति के लिए दस…

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नवरात्रि दक्षिण में – एक सामाजिक झांकी

नवरात्रि दक्षिण में – एक सामाजिक झांकी नाम ही स्पष्ट कर देता है कि यह नौ दिनों का उत्सव जो शरद और वसंत दोनों कालों में आता है संध्याकालीन पूजा का द्योतक है जैसे कृष्ण जन्माष्टमी अर्धरात्री की पूजा है। केरल में विशु नामक पर्व वर्षारंभ का शुभ समय सूर्योदय से पूर्व होता है। होलिका…

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देवी नहीं, नारी हूँ मैंं

देवी नहीं, नारी हूँ मैंं मुझे चाहत नहीं मैं कोई देवी बनूँ, शक्ति का पर्याय कहलाऊँ करुणा की वेदी बनूँ चाह मुझे बस इतनी कि मैं इंसान रहूँ खुलकर साँस लूँ अविरल धारा सी बहूँ, खुले आसमान में पँख फैलाकर उड़ूँ, खुश रहूँ,सपने देखूँ उसे निर्बाध पूरा करूँ अपने प्रेम को हँसता देखूँ अपनी ममता…

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चिट्ठिया हो तो

चिट्ठिया हो तो …….. सुजाता ने कमरे की इकलौती खिड़की खोली। पिछले तीन दिनों से सुजाता इसी कमरे में ही पड़ी रहती है। इस पीली तीन मंजिली इमारत में खिड़कियाँ और दरवाजे बहुत कम हैं। सुजाता जब यहाँ तीन रात पहले आई थी, तो रात आठ बजे का समय था। टेबल के पीछे एक दुरूस्त…

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राष्ट्रकवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर

राष्ट्रकवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी साहित्य और राष्ट्र के गौरव “राष्ट्र कवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर जी”की जयंती के अवसर पर उन्हें ‌अपने अविस्मरणीय पल के श्रद्धासुमन अर्पित कर रही ‌हूँ। उन्हें शत-शत नमन।ऐसी‌ महान‌ व्यक्ति का एक संस्मरण मेरे विद्यार्थी जीवन ‌का है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी दिनकर जी का साक्षात्कार, अपनापन और…

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नमक सत्याग्रह और गांधी जी

   नमक सत्याग्रह और गांधी जी   अपने जीवन के शुरुआती कुछ साल पढ़ाई व् काम के सिलसिले में इंगलैंड व् दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद जब १९१५ में गांधी जी भारत लौटे तो वे एक बदले हुए इंसान थे. वहां अंग्रेजों का दुर्व्यवहार झेलने के कारण उन्हें भारतवर्ष  की आजादी सर्वोपरि लगी. वे…

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स्वच्छता तन-मन और उपवन की

स्वच्छता तन-मन और उपवन की उठो चलो आगे बढ़ो, कि विश्व तुझको देखता । वक्त की है पुकार ये, फिर कौन तुझको रोकता? स्वच्छ बना इस धरा को, करके योगदान तुम । बन जा प्रहरी इस उपवन का, खड़े जिस दिशा में तुम। स्वच्छता से स्वस्थता आएगी, हमारे भारत देश में। बढ़ेगा हर कदम फिर,…

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