इश्क रूमानियत से रूहानियत तक

  मेरा मेहबूब नज़ाकत वो कहाँ मिलती किसी को अब दोबारा जिनपर हम मर मिटे हैं उनपर हमारा दिल है हारा हर मंज़र में वो दिखते है उनसे ही सब नज़ारा उन बिन सांस भी आए ना हमें है यह गवारा नज़ाकत कहाँ मिलती किसी को अब दोबारा जिनकी हसरतों के बूते ख्वाब रातों में…

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तामील

तामील   हुक्मे नज़रबंदी है ये फ़रमाया आला पीर ने तू बहुत नाचीज़ बन्दे तू हुक्म की तामील कर   वक्त की पाबंदगी का है यह फ़रमान प्यारे तू बहुत ख़ुदगर्ज़ बन्दे फरमां यह क़बूल कर   तू रहेगा आज से पिंजरे में ज्यूँ पंछी कोई तू बहुत आज़ाद बन्दे पिंजरे से ना परहेज़ कर…

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भारतीय वैज्ञानिक 

भारतीय वैज्ञानिक      मैं ऋषि कणाद का अनादि कण, हूँ सूक्ष्म किन्तु न मेरा कोई अंत,   मैं देता ज्ञानी आर्यभट्ट सा जगत को शून्य का तत्व, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण क्यों होता है सुलझाता मेरा तत्त्व,   मैं रसायनशास्त्री नागार्जुन का रसरत्नाकर, अलग-अलग धातु से स्वर्ण बनाऊ ऐसा मैं जादूगर,   मैं योगाचार्य ऋषि पतंजलि…

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इश्क करो ख़ुद से और ख़ुदा से ….

  इश्क करो ख़ुद से और ख़ुदा से ….   इश्क, प्रेम का वह रूप है जिसमें कोई किसी में लीन हो जाना चाहता है …. फिर चाहे वह अपनी अंतरात्मा हो या अपना ईश्वर ! इश्क यानी प्रेम भक्ति का भी एक प्यारा रूप है जो समर्पण माँगता है तभी तो उसका सफर रूमानियत…

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क्षितिज की ओर

क्षितिज की ओर     मुग्ध हो कर देख रहा हूं और बह रहा हूं अस्तित्व की बाढ़ में तेरी अविजित मुस्कान इधर झनझनाती तंत्रियों में शुरू सामूहिक गान।   तू झुलसा रही मेरे अहं को मेरी दुर्बलता को उमड़ रहा न जाने क्या झुकती नज़र, कभी उठती नज़र पर इसके माने क्या? फुलवारी कुछ…

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शिव प्रेम स्वरूप

शिव प्रेम स्वरूप   प्रेम की बात हो और मोहन का नाम ना आए ऐसा विरले ही होता है। ज्यादातर लोग कान्हा को ही प्रेम का पर्याय मानते हैं। पर मैं, मुझे सदैव से ही ‘शिव’ प्रेम की पराकाष्ठा के स्वरूप लगे हैं। सभी कुछ देखा, सहा, जिया है शिव ने। इस संसार में प्रेम…

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बसंत पंचमी की अनमोल याद

                                            बसंत पंचमी की अनमोल याद यूं तो बसंत पंचमी पर्व प्रति वर्ष एक नई ऊर्जा, उत्साह और उमंग लेकर आता है और एक नई स्वर्णिम स्मृति की छाप हृदय पर छोड़ जाता है,…

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लौ बन कर मैं जलती हूँ 

लौ बन कर मैं जलती हूँ      दीपक बन जाएँ यादें पुरानी लौ बन कर मैं जलती हूँ दो हज़ार बाईस बस था जैसा भी था जैसे तैसे बीत गया कुछ अच्छा होने की आशा में ना जाने क्या क्या रीत गया पाँव पखारूँ अश्रू के गंगाजल से ,लो अब मैं चलती हूँ दीपक…

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वे

वे   दो विपरीत  बहते छोरों को अचानक गठबंधन में बाँध दिया गया ऐसे, जैसे कोई हादसा अचानक हो जाए न प्यार था न परिचय बस दो अजनबी… न वो सूरज था न वो किरन न वो दिया था न वो बाती। न वो चाँद था और न वो चाँदनी एकदम विपरीत थे वे दोनों……

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आया नया साल है/कैसे मैं कहूं आजाद वतन

        आया नया साल है आओ जरा झूमें गाएं आया नया साल है। खो गया है नेह राग ये बड़ा सवाल है, प्रीत जरा बांटिए जनता बेहाल है। द्वेष जरा छांटिए समाज का ये काल है, आओ जरा झुमें गाएं आया नया साल है।   कविता ही कामिनी को विषय बनाइए, दामिनी…

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