![इश्क रूमानियत से रूहानियत तक](https://www.grihaswamini.com/wp-content/uploads/2023/02/3_20230224_095130_0002.png)
इश्क रूमानियत से रूहानियत तक
मेरा मेहबूब नज़ाकत वो कहाँ मिलती किसी को अब दोबारा जिनपर हम मर मिटे हैं उनपर हमारा दिल है हारा हर मंज़र में वो दिखते है उनसे ही सब नज़ारा उन बिन सांस भी आए ना हमें है यह गवारा नज़ाकत कहाँ मिलती किसी को अब दोबारा जिनकी हसरतों के बूते ख्वाब रातों में…