बाजीगर

बाजीगर बैठी हूं आसमान तले सामने लहरों का बाजार है , उन्मादीत लहरों के दिखते अच्छे नहीं आसार हैं । अब उफनाती लहरों से कह दो राह मेरी छोड़ दे, बैठी हूं चट्टान बनकर रुख अपना मोड़ ले । ज्वार भाटा से निकली प्रचंड अग्नि का सैलाब हूं, हैवानियत को जलाकर खाक करने वाली आग…

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ऐसी कोई रात कहाँ

ऐसी कोई रात कहाँ ऐसी कोई रात कहाँ है, जिसकी कोख से सुबह ना निकले ! दुख का सीना चीर के सुख का सूरज तो हर हाल में निकले ! ऐसा कोई दर्द कहाँ है, जिससे कोई गीत ना निकले ! ऐसी कोई बात कहाँ है जिससे कोई बात ना निकले ! कहाँ कभी एक…

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हिन्दी भाषा – आज के परिवेश में

हिन्दी भाषा – आज के परिवेश में अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस हाल में ही मनाया गया है | बधाइयों का दौर देश विदेश भर में चलें और सोशल मीडिया की भी शान बना | हिन्दी को अक्षुण्ण रखने की कसमें भी खूब खाई गईं | अनेकानेक चिंतायें प्रकट की जा रही थी कि इस दौर मे…

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डॉ. सच्चिदानंद जोशी से अलका सिन्हा का संवाद

डॉ. सच्चिदानंद जोशी से अलका सिन्हा का संवाद            वातायन-वैश्विक की 91वीं वार्ता संगोष्ठी में प्रसिद्ध रंगकर्मी, संस्कृति साधक, व्यंग्यकार, निबंधकार एवं शिक्षाविद् श्री सच्चिदानंद जोशी जी के साथ  अक्षरम साहित्यिक संस्था की महासचिव प्रसिद्ध कथाकार एवं कवयित्री अलका सिन्हा जी का आत्मीय संवाद सकारात्मक रचनात्मकता के भाव से मन को समृद्ध करने वाला रहा।…

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लोहड़ी

लोहड़ी आज से पचास या साठ वर्ष पहले उत्तर पूर्व के राज्यों में लोहड़ी के त्यौहार को कोई कोई जानता था। परन्तु अब पंजाब की ओर से अनेक रिवाज़ अन्य प्रांतों की जीवन शैली में घुल मिल गए हैं। इसका मुख्य कारण सिख समुदाय का परिवहन के क्षेत्र में योगदान है। भारत ही नहीं विश्व…

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दिव्या माथुर का रचना संसार

दिव्या माथुर का रचना संसार दिनांक 19 दिसम्बर 2021 को केन्द्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, वैश्विक हिंदी परिवार एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं के संयुक्त ऑनलाइन आयोजन में प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर का रचना संसार विषय पर एक साहित्यिक विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता प्रवासी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर प्रो. कमल किशोर…

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आगमन

आगमन जिस वक्त द्वार खटखटाया गया भीतर उसके एक मद्धिम दिया जल रहा था द्वार खोल कर देखा तो बाहर विस्मय का धुंआ जोर से उठ रहा था वह भीतर घुस आया और दृढ़ता से अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया वह फटी आंखों से देखती रह गई ऐसे,जैसे डूबता हुआ आदमी बोलने का प्रयत्न तो…

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वरदान

वरदान निर्वाक है वाचक, लेखनी डरी हुई है, अंधेरा रात का दिन में भरी हुई है बहुतेरे प्रश्न उमड़ता, उत्तर मांगता हूँ, जड़ता विनाश को लेखनी दौड़ाना चाहता हूँ। गले में फंसी आवाजें जुबान दब रही है, आपसी भाई चारे की लाशें निकल रही हैं खुला आसमान सांस चाहता हूँ, लेखनी में जोर और बन्दूके…

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हिंदी का आधुनिक इतिहास

हिंदी का आधुनिक इतिहास हे मातृरुपेण हिंदी!! हमारी मातृभाषा, हम सब की ज्ञान की दाता हो, जब से हमने होश संभाला, तूने ही ज्ञान के सागर से, संस्कारों का दीप जलाया, भाषा से परिचय कराया, आन ,बान और शान हमारी, देश का अभिमान जगाती, हर गुरुजनों की शान हो तुम, उनकी कर्मभूमि हो तुम, जिसने…

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विश्व हिन्दी दिवस

विश्व हिन्दी दिवस हिन्दी माँ का दूध है , और हमारा पूत । सदा हमारे साथ है , मन भावों का दूत ।। निज भाषा अभिमान है ‌, यह भगवन वरदान । अंतस से है फूटता , नहीं भाव व्यवधान ।। मात तात सम पोसता , है वटवृक्ष समान । निज निजता का भाव दे…

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