बदलाव

बदलाव आज ट्रक से सामान उतर रहा था। खानाबदोशी की यह जिंदगी उमा को अब अच्छी लगने लगी है। नए शहर, नए लोग, नया वातावरण – बारिश की बूंदों की तरह लगता है। जैसे धूल भरे सारे पत्ते साफ हो गए हों। चार फ्लैट का एक एक यूनिट | बगल वाले दरवाजे पर नाम देखा…

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मन के हारे हार है,मन के जीते जीत

मन के हारे हार है,मन के जीते जीत आज सुबह से नेहा कुछ ज्यादा ही परेशान थी,उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपने को संभाले,चारों तरफ कोरोना महामारी और उसके अफवाहों से वह बहुत परेशान और हताश हो गई थी। वह इसी उधेड़बुन में थी तभी उसकी बड़ी बहन का फोन…

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मुहिम

मुहिम रेस्तराँ की चौड़ी खिड़कियों से भूरी पहाड़ी दिख रही थी। पेड़ों से विहीन ये पहाड़ियाँ मनुष्य के लालच को आईना दिखा रही थी। जंगल कटने से अल्मोड़ा जैसी जगह में भी पानी की किल्लत हो गई थी। बाथरूम में “पर्यावरण की रक्षा करें” का कार्ड था-कम पानी इस्तेमाल करें। ये आने वाली भयावहता को…

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रूपांतर

रूपांतर सोचती है सारा काम निपटा कर ही जाए पर हो नहीं पाता उससे। बॉस के दिए फ़ाइलों की संख्या कम है पर बहुत कुछ निपटाना है उनमें। काम मिलता उसे ज़्यादा है, जानती है वह, क्योंकि ज़िम्मेदार है, कर्त्तव्यनिष्ठ है। हरिनारायण बॉस ज़रूर हैं पर उसका कष्ट समझते हैं समझाते भी हैं। एकल अभिभावक…

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चक्र

चक्र आठ मार्च आते ही निमंत्रणों का सिलसिला बढ़ जाता है। पिछले तीन फोन कॉल बस ‘विलासिनी, प्लीज, लड़कियाँ हैं, आप बोलेंगी तो अच्छा लगेगा’। विलासिनी ने सोचा कि ये आजकल की फेसबुक-द्विटर-इंस्टाग्राम की लड़कियों को सब पता है। उनके फेमिनिज्म की परिभाषा भी अलग है। वो अब दराजों में नहीं, गले में बोर्ड लगाकर…

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परदेशी

परदेशी प्यास के मारे राजन का गला सूखा जा रहा था। दूर-दूर तक देखा किसी मनुष्य की छाया तक नजर नहीं आ रही थी और ना ही आसपास कहीं पानी का अता पता था। वह थककर बैठ गया पर बैठने से भी आखिर कब तक काम चलने वाला था। उठकर फिर चलना शुरू किया पर…

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पीतल

पीतल “सच कहता हूँ मुझे ज़रा भी याद न रहा” शाम के धुंधलके में एकाएक कौंधे निशा के सवालिया अंदाज पर पीयूष ने थोड़ी हैरानी के साथ अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा। “पूरे चार साल बाद आए हो इसके बाद भी” निशा ने बनावटी गुस्से से आँखे तरेंरी। “बस यही तो ग़लती हो गयी,मुझे ज़रा…

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लौट आया मधुमास

लौट आया मधुमास देविका कहीं शून्य में घूरे जा रही थी लेकिन मस्तिष्क में लगातार उथल-पुथल चल रही थी। आज हर हालत में उसे एक निर्णय पर पहुंचना था। पिछले कई दिनों से वह अनवरत दिल और दिमाग के संघर्ष में बुरी तरह फंसी थी,उलझी थी….पर अब…अब और नहीं।कहीं दूर से आती माँ की आवाज़…

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रोज डे

रोज डे लखिया अनमना सा कॉलेज के सामने से गुजर रहा था … दो लडकियो ने हाथ दिया गांधी चौक कहते हुए रिक्शा में बैठ गई | लखिया ने उसी सवारी से सुना आज रोज डे है ,, एक एक लाल गुलाब दोनों के हाथ में थे ,, एक दूसरी से बतिया रही थी ,,…

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दस्तक

दस्तक सुबह से तीन बार कमर्शियल कॉल को मना कर चुकी हूँ कि उसे पुरानी कार नहीं चाहिए। अपनी अलमारी के सभी शॉल वापस तह कर चुकी हूँ। माया ने घड़ी फिर से देखा। लगा समय आगे हीं नहीं बढ़ रहा है। कोविड के कारण आना-जाना लगभग बंद ही है। दोस्त भी ‘थोड़ा कम हो,…

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