तुम लौट आओ

तुम लौट आओ हे बुद्ध तुम लौट आओ क्योंकि तुमने कहा था “ईर्ष्या या घृणा को प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है” पर असंवेदनशील आत्माओं के साथ जी रही मानव जाति भूल चुकी है किसी से भी निःस्वार्थ प्रेम करना लौटकर अब तुम प्रेम क्या है इन्हें फिर से याद दिलाओ हे बुद्ध…

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मेरे अंतस के बुद्ध

मेरे अंतस के बुद्ध बुद्ध ना सिर्फ कपिलवस्तु में थे और ना ही मात्र कुशीनारा में, बल्कि वो तो सदैव से ही साधनारत थे मेरे भी मन की सुप्त गुफाओं में, क्योंकि महसूस करती हूं मैंने भी अक्सर वो असहनीय वेदना जो बूढ़े , बीमार और लाचार को देख कर उमड़ती है, गरीबों की दयनीयता…

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बुद्ध

बुद्ध “बुद्धं शरणं गच्छामि ऽऽऽ, धममं शरणं गच्छामि ऽऽऽ, संघं शरणं गच्छामि ऽऽऽ॥” महलों में पाया जन्म भोगी विलासी ना बने बुद्ध थे वे, सब त्याग वनवासी हो चले। बैठ वर्षों तप किया आत्मज्ञान प्रज्ज्वलित हुआ बोधिवृक्ष की छाया में बुद्ध वचनों से शिष्यों का उद्धार हुआ। उपदेश से उनके प्रभावित हो त्याग हिंसा की…

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सिद्धार्थ यशोधरा और बुद्ध

सिद्धार्थ यशोधरा और बुद्ध जाना तय था मेरा … पर जब उसे देखता तो , मन ठहर जाता था।। किस अवलम्बन पर छोड़कर जाता उसे, वो जो मुझ में अपना सारा संसार देखती थी, फिर उसका सहारा आ गया ..उसका ‘पुत्र’ जानता था अब उस में व्यस्त हो जाएगी, जीवित रह पाएगी मेरे बिना भी…

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महाभिनिष्क्रमण

महाभिनिष्क्रमण आखिर चले ही गए तुम हाँ बताया था तुमने जीवन का ध्येय विश्व का उद्धार बोध की पिपासा बहुत से कारण थे बस मैं ही नही थी पिछले जन्म से चाहा था तुम्हें सुमेध भद्रा बनकर वादा लिया था अगले जन्म का क्या खूब निभाया तेरह वर्षों की तपस्या का प्रसाद था ‘राहुल’ पर…

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ये जंग भी हम जीतेगें

ये जंग भी हम जीतेगें क्या तुमने सोचा था कभी, कि ऐसा समय भी आएगा। ये कोरोना वायरस दुनिया को, अलग सा अनुभव दे जाएगा। पूजा की थाली ना होगी, बन्द होंगे पूजा के द्वार। मन्दिर में प्रसाद न होगा, होगी ना भक्तों की कतार। पिता का आँगन, माँ का खाना, मैके की बस रहेगी…

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आशा

आशा जीवन में अंधकार हो चहूँ और अविकार हो तुम आशा का दामन थामे रखना बिजली कड़कड़ाये या मेघ गरजें सूरज की हो तपिश या आस्माँ बरसे तुम आशा का दामन थामे रखना हर तरफ़ चीत्कार का है मंज़र इंसान क़ैद में कैसा है ये क़हर तुम आशा का दामन थामे रखना ऑक्सीजन का कालाबाज़ार…

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कोरोना का कहर

कोरोना का कहर किसी का सिन्दूर मिटा तो किसी की लाली चली गई किसी की ईद छिनी तो कहीं दीवाली जल गई।। बड़ा बेरहम है ये समय नासूर सा चुभा है किसी के आँख में है पानी और कहीं रोशनी चली गई।। माँ की मुस्कान खो गई बच्चों से पिता छिन गए कहीं लुटा चमन…

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एक लौ उम्मीदों की

एक लौ उम्मीदों की धरती से लेकर आसमां तक उदासियों का मंजर फैला है हर तरफ़ हैं खबरें मौत की हर तरफ़ आंसुओं का रेला है सोचा था संभल जाएंगे हम धीरे-धीरे ज़िन्दगी की उधड़ी तुरपाईयों को जतन से सी लेंगे हम धीरे-धीरे पर इम्तहान की हद अभी बाकी है कुछ कर्ज़ की किश्त अभी…

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धरा की व्यथा

धरा की व्यथा मैं धरा हूँ , यूं तो नाम हैं मेरे कई । भूमि, वसुधा, पृथ्वी, धरणी, हूँ लाड़ली उस रचयिता की । आठ भाइयों में बहन अकेली । बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस, वरुण और प्लूटो, पूरे आठ हैं मेरे भाई । मैं धरा हूँ , यूं तो नाम हैं मेरे कई…

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