तू सबला है

तू सबला है तेरे आँचल से अमृत पी संसार पनपता खिलता है प्रेम, त्याग उपनाम हैं तेरे गंगा सी सरल सहजता है कर कोटि नमन माँ पन्ना को अपनी शक्ति पहचान ले तू सबला है मान ले ।। लक्ष्मी तू, अन्नपूर्णा तू घर तुझसे ही तो सजता है चट्टानों सी दृढ़ता तुझमें धरती सा धीरज…

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बाजीगर

बाजीगर बैठी हूं आसमान तले सामने लहरों का बाजार है , उन्मादीत लहरों के दिखते अच्छे नहीं आसार हैं । अब उफनाती लहरों से कह दो राह मेरी छोड़ दे, बैठी हूं चट्टान बनकर रुख अपना मोड़ ले । ज्वार भाटा से निकली प्रचंड अग्नि का सैलाब हूं, हैवानियत को जलाकर खाक करने वाली आग…

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ऐसी कोई रात कहाँ

ऐसी कोई रात कहाँ ऐसी कोई रात कहाँ है, जिसकी कोख से सुबह ना निकले ! दुख का सीना चीर के सुख का सूरज तो हर हाल में निकले ! ऐसा कोई दर्द कहाँ है, जिससे कोई गीत ना निकले ! ऐसी कोई बात कहाँ है जिससे कोई बात ना निकले ! कहाँ कभी एक…

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आगमन

आगमन जिस वक्त द्वार खटखटाया गया भीतर उसके एक मद्धिम दिया जल रहा था द्वार खोल कर देखा तो बाहर विस्मय का धुंआ जोर से उठ रहा था वह भीतर घुस आया और दृढ़ता से अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया वह फटी आंखों से देखती रह गई ऐसे,जैसे डूबता हुआ आदमी बोलने का प्रयत्न तो…

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वरदान

वरदान निर्वाक है वाचक, लेखनी डरी हुई है, अंधेरा रात का दिन में भरी हुई है बहुतेरे प्रश्न उमड़ता, उत्तर मांगता हूँ, जड़ता विनाश को लेखनी दौड़ाना चाहता हूँ। गले में फंसी आवाजें जुबान दब रही है, आपसी भाई चारे की लाशें निकल रही हैं खुला आसमान सांस चाहता हूँ, लेखनी में जोर और बन्दूके…

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हिंदी का आधुनिक इतिहास

हिंदी का आधुनिक इतिहास हे मातृरुपेण हिंदी!! हमारी मातृभाषा, हम सब की ज्ञान की दाता हो, जब से हमने होश संभाला, तूने ही ज्ञान के सागर से, संस्कारों का दीप जलाया, भाषा से परिचय कराया, आन ,बान और शान हमारी, देश का अभिमान जगाती, हर गुरुजनों की शान हो तुम, उनकी कर्मभूमि हो तुम, जिसने…

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विश्व हिन्दी दिवस

विश्व हिन्दी दिवस हिन्दी माँ का दूध है , और हमारा पूत । सदा हमारे साथ है , मन भावों का दूत ।। निज भाषा अभिमान है ‌, यह भगवन वरदान । अंतस से है फूटता , नहीं भाव व्यवधान ।। मात तात सम पोसता , है वटवृक्ष समान । निज निजता का भाव दे…

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शब्द सुमन: राष्ट्रकवि के चरणों में

शब्द सुमन: राष्ट्रकवि के चरणों में “मुझे क्या गर्व हो ,अपनी विभा का, चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं। पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी, समा जिसमें चुका सौ बार हूँ मैं।” कौन है ऐसा स्वपरिचय देता हुआ? अरे वह तो ,सरस्वती का वरद पुत्र, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ नाम जिसका हुआ। ‘राम’ को धारण करने…

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समय

समय आदिकाल से भविष्य का चक्र। हर होने से, न होने का नियम, जो है उसके ख़त्म होने का संयम । अदि, अंत, अनंत। देव, मानव,पाताल लोक का विभाजन, सागर मंथन भेद से सर्व लोक समीकरण ।। युग निर्माण, समाज परिवर्तन । सत्य,त्रेता, द्वापर से कलि का बदलाव, रामराज्य में सीताहरण, कलि में सती का…

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वह

वह — किताबों की जिंदगी से तब्दील हुई जब गृहिणी में आटा-दाल से सम्बंध जो कर बचत का हिसाब लगाना, साड़ी बांधना, पल्लू सम्हालते हुए रोटी बेलना, चूडियों और पायल के बंधनों से बंधना, नये सम्बंधों और संबोधनों को दिनचर्या का हिस्सा बनाना, उसी बीच माँ की प्यार भरी थपकी अपनी जुगनू सी रोशनी से…

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