एक प्याली चाय 

एक प्याली चाय  प्रेम की परिभाषा है, एक प्याली चाय, भोर की पहली किरण की संगिनी, सर्द सुबह को मादक महक से गुदगुदाती, आनंद के चरमसुख पर पहुंचाती है…  एक प्याली चाय…..  प्रेयसी के रूप सी, कभी गोरी, कभी काली, तेज़-तीखी सजनी सी, काली मिर्च-अदरक वाली, मनभाती, दिल-लुभाती, सपनों में आती, दिन-भर जी तोड़ मेहनत…

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ओजमयी चाय

ओजमयी चाय जब गहरी स्याह रात्रि , अलसायी सी अँगड़ाई लेती, तो क्षितिज उसे देख मुस्कुराता,, तब गगन के अंजुमन में, सूर्य देव लाल चाय की प्याली लिए उदित हो भोर की किरण को, कलरव करते पक्षी गण को, सरोवर में खिलतें कमल को, फूलों की पंखुड़ियों में ठहरे ओस कण को, कुहासों के चादर…

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खुद को जानती हूँ मैं

“खुद को जानती हूँ मैं” ऐसा नहीं है कि– औरत हूँ तो बस नशा है मुझमें पत्नी हूँ,माँ हूँ,बहन हूँ– इक दुआ है मुझमें… ऐसा नहीं है कि– संगमरमर के साँचे में ढला जिस्म हूँ केवल नमी हूँ,आग हूँ,धरती,आकाश हूँ– जीने के लिए जरूरी हवा हूँ शीतल… ऐसा भी नहीं है कि– बस मुहब्बत, खुशबू,…

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देवी नहीं, नारी हूँ मैंं

देवी नहीं, नारी हूँ मैंं मुझे चाहत नहीं मैं कोई देवी बनूँ, शक्ति का पर्याय कहलाऊँ करुणा की वेदी बनूँ चाह मुझे बस इतनी कि मैं इंसान रहूँ खुलकर साँस लूँ अविरल धारा सी बहूँ, खुले आसमान में पँख फैलाकर उड़ूँ, खुश रहूँ,सपने देखूँ उसे निर्बाध पूरा करूँ अपने प्रेम को हँसता देखूँ अपनी ममता…

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शजर

शजर इक पिता सा छाँव करता था शजर कमनिगाही भी वो सहता था शजर । (शजर:वृक्ष कमनिगाही : उपेक्षा) ख़ुद की तो उसने कभी परवाह न की, दूसरों के सुख से सजता था शजर । उसकी बाहों में तसल्ली पाते थे, आसरा पंछी का बनता था शजर । नाच उठता था हवा की ताल पे,…

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हम तैयार हैं

हम तैयार हैँ सब ठीक ही चल रहा था बस छोटे मोटे उतार – चढ़ाव थे ज़िंदगी गुज़र रही थी कुछ लंबे , कुछ निकट पड़ाव थे कि अचानक सब जम सा गया जीवन का रेला कुछ थम सा गया सब ठिठक गये कुछ सिहर भी गये ये आखिर क्या हो रहा है पृथ्वी खुलकर…

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कोरोना बेचारगी और विडम्बनाएं

कोरोना बेचारगी और विडम्बनाएं कैसा खुलासा था हमारी बेचारगी का कि मिटाने के लिए स्थानीय श्रमिकों की भी भूख शुरू किया जा रहा था दुबारा भवन निर्माण जब तक इसकी चर्चा हो रही थी दूरस्थ भोपाल में ठीक था सब बहुत परेशान थीं शहर की एक अग्रणी कवयित्री अंतर राष्ट्रीय ख्याति की घूम रही थीं…

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रोटी ,कपड़ा और मकान

रोटी ,कपड़ा और मकान कदम बढ़ चले कदम ना चिलचिलाती धुप ना भींगने का डर. सर्द हवाएं भी नही हिलाती दम नही चुभती मिलता जो भी हो दर्द लिंग से परे पत्थर तोड़े या चढ़ जाएँ ऊँची इमारते ना अँधेरे का भय बहुत कुछ को नकारते हमसब हैं निकलते हंसते खिलखिलाते अपने खोली से अपनी…

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सुनो, कुछ तो करो

सुनो, कुछ तो करो सुनो… कुछ तो करो…! कि इससे पहले सब श्मशानों में तब्दील हो जाए…! कुछ तो करो…. कि इससे पहले घर… मकानों और खंडहरों में तब्दील हो जाए…! कुछ तो करो… इससे पहले कि दवाएँ जहरों में तब्दील हो जाएं…! कुछ तो करो…. इससे पहले कि भोजन खुद भूख में…. और भूख…

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मानवता की सेवा में सन्नद्ध–कर्मवीरों के नाम

मानवता की सेवा में सन्नद्ध–कर्मवीरों के नाम है नमन तुम्हे मानवता हित जीवन अर्पित करने वालों सेवा से संकट मोचक बन हमको गर्वित करने वालों हर जंग जहां जीती हमने दुश्मन को धूल चटाई है संक्रामकता -निशिचर के दमन की कसम उठाई है है नमन तुम्हे खतरों से भी आंधी बन टकराने वालों है नमन…

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