सुनो दिसम्बर

सुनो दिसम्बर सुनो दिसंबर, यह जो वक्त की गाड़ी तुम खींचकर यहाँ तक लाए हो बहुत भारी थी मजदूरों पर, मजबूरों पर कमजोरों पर, मजबूतों पर कितनों की कमर टूटी कितनों की संगत छूटी बेबस रहा हर एक लम्हा जीवन भी रहा कुछ थमा-थमा परेशान रहे हम सभी कैद रही हर चलती साँस पर इंतजार…

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काश यूँ भी कभी

काश….. यूँ भी कभी सोचती हूँ काश मैं भी सांता बन पाती । हर जीवन में प्रेम अमृत की गंगा मैं बहाती । रोतें बच्चों के आँखों से सारे आसूँ छीन लाती उनके कोमल अधरों पर गीत बन गुनगुनाती।। जीनव धूप में थके किसान पिता की चिंता मैं मिटाती धरती माँ की आँखों से दर्द…

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त्योहारों में उल्लास

त्योहारों में उल्लास ढूंढना हो अगर त्योहारों मे तो उसका ध्येय ढ़ूंढ़िए उद्देश्य ढ़ूंढ़िए। उपहारों के बंद डब्बों मे लेने वाले की मुस्कान देनेवाले का अरमान ढ़ू़ंढ़िए। त्योहार धर्मों का नहीं उमंग और उल्लास का होता है, बड़ी कठिन डगर है इस जीवन की ये छोटे छोटे त्यौहारों के पड़ाव ना होंगे तो हम थक…

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क्रिसमस

क्रिसमिस (बाल कविता ) क्रिसमिस का आया त्योहार सेंटा लाया कई उपहार सबने मिलकर पेड़ सजाए रोशनी सबके मन को भाए दोस्त मेरे घर पर आए माँ ने केक-बिस्किट बनाए बड़े मज़े से हमने खाए पापा बनकर सेंटा आए कई सुंदर उपहार लाए क्रिसमिस का कोरल हम गाएँ सबके लिए करें दुआए क्रिसमिस का त्योहार…

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चाय

चाय चाय;तुझे गोरों ने लाया हमारी धरती, पहाड़ों और तराइयों पर बसाया बने हरे भरे चाय बगान हज़ारों कामगार को मिले रोज़गार। चाय, तेरे रूप अनेक रच बस गई इस धरती पर पूरब -पश्चिम उत्तर -दक्षिण अमीर -ग़रीब बन गई सबकी चाहत चाय तेरे भिन्न भिन्न रंग! कभी गोरी कभी काली सर्दी में अदरक वाली,…

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मेरा परिचय

मेरा परिचय कहाँ- कहाँ देखूँ निज छवि अपनी, किस-किस से बाँधू निज परिचय मैं? कहाँ-कहाँ ढूँढू निज आधार अपना, किस -किस के आगे शीश नवाऊँ मैं? दिया अस्तित्व को स्वरूप जिन सबने, कहता है मन सबको, निजपोषक अपना। परिचयदात्री स्नेह-धूप में बनी मेरी हर परछाई, वह घना बरगद जिसकी छाँव तले जीवन सुस्ताई। परिचय देती…

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एक गुफ़्तगु

एक गुफ़्तगु जिंदगी के पल के साथ सोचूँ बैठु आज तुम्हें लेकर रूबरू गुलाबी इस ठण्ड की चटक धुप में थोड़ी देर…! हो हाथ में गर्म अदरक की कड़क चाय और उलझाऊँ तुम्हें कुछ सवालो के चक्रव्यूह में…! बाँटू कुछ तजुर्बे अपने और पूछूँ कुछ तुम्हारे तरीके जिंदगी के फ़लसफ़े पर करना चाहूँ एक गुफ्तगूं…!…

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कोरोना का अंत

कोरोना का अंत इक फ़्लू की है ये दासतां जिस फ़्लू से सब बेहाल हैं, ये फ़्लू है मेड इन चाइना, इसे कहते ’कोविड’ प्यार से। ’कोरोना’ नाम का फ़्लू है ये, सुनने में लगता ज्यों फूल है, जिसे हो वही यह जानता, ई फूल नाहीं, त्रिशूल है। देखे हैं हमने भी फ़्लू कई, कोई…

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चाहत चाय की

चाहत चाय की गुदगुदाती सर्द तन को, ताप देती है बदन को, भोर की स्वर्णिम लाली। उसपे गर्म चाय की प्याली तन को देती सुकून निराली। चाय में घुलता मिठास, जब अपनो का हो साथ। चाय की हर गर्म चुस्की, होठों पे बिखेरतीं मुस्की, हर घूंट पियूषा सा लागे जब चाय की चाहत जगे। फूर्ति…

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चाय दिवस की बधाई

चाय दिवस की बधाई न मौसम न पहर न दुनिया की खबर ! ठहाकों की उधर उठती गिरती लहर इथर ठुनकना मुनिया का बिन बात पर.. वो बहाने से पसरना किसी का बिछावन किसी का जमीन पर! न खत्म होने वाले किस्से चौके में आज पकते पकवान औ सियासत की बहसबाजी पर.. फिल्मों की रूमानी…

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