कविता
कैसे मनाएँ
कैसे मनाएँ कैसे मनाएँ आज़ादी का जश्न..? कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म…? विश्व पुरुष जब अश्रु बहाता हो, कैसे भारत माँ का श्रिंगार करें हम .. कैसे भुलाएँ कोरोना के ग़म। मानवता पर जब घना संकट मंडराता हो, जीवन ,मृत्यु से दया की भीख माँगता हो, मृत्यु का तांडव अविराम चलता हो.., हर गली-मोहल्ले में…
शुभेच्छा
शुभेच्छा संप्रेषित कीजै सब अभिव्यंजनाएं साकार होवें सब मधुर कल्पनाएं खंडित हो जाएं कलुषित वर्जनाएं नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।। पल्लवित हों सम्यक संकल्पनाएं झेलनी न पड़े कभी अवहेलनाएं स्पर्श करे नहीं आपको प्रवंचनाएं नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।। कलम से निर्गत हों अधिसूचनाएं नाम से जारी हों कई परियोजनाएं संयमित वाणी त्यागे…
प्रजातंत्र में तंग प्रजा का हाथ है
प्रजातंत्र में तंग प्रजा का हाथ है बलि देहाती, कर्जा वामन लात है प्रजातंत्र में तंग प्रजा का हाथ है आंगुर-आंगुर दाम जोड़ता बीज उधारी कितनी आई ट्रेक्टर का भाड़ा कितना है डीज़ल की कितनी भरवाई गिरवी कटने से पहले उत्पाद है प्रजातंत्र में तंग प्रजा का हाथ है नए आंकड़े, नई रिपोर्टें भूख रेख…
गणतंत्र दिवस मनाएं
गणतंत्र दिवस मनाएं स्वतंत्र भारत का उत्तम संविधान गण औ तंत्र की सुंदर विवरण छब्बीस जनवरी को दिया मान तंत्र है वो विधिवत संचालन इसका अर्थ साथी सबको बतायें आइए हम गणतंत्र दिवस मनायें गणतंत्र एक है अनोखी प्रणाली भारत का है सार्वजनिक मामला नही होता यह कोई निजी संस्था ना होता ये कभी निजी…
गाँधी गुब्बारे वाला
गाँधी गुब्बारे वाला वो देखो देश के कर्णधारो, गाँधी गुब्बारे वाला! चला आ रहा है, फट फटिया पर, बिन लाठी और लोटा, अरे यह तो विद्वान विचारक राष्ट्र पिता हुआ करता था! व्यवसाय बदलकर विक्रेता क्यों बना? वो भी गुब्बारों का? हाँ पूछा था मैंने जुटाकर हिम्मत तो, बेचारा बिफर पड़ा, और कहने लगा, मेरी…
उम्मीदों का नया दशक
उम्मीदों का नया दशक 2021से 2030 का समय एक नए दशक का आरंभ कितनी नई जिंदगियों की शुरुआत कितनों की सेवानिवृत्ति कितनों के नए कर्तव्य होंगी कितनी नई किलकारियाँ कितनी नई गृहस्थियाँ जो पालने में हैं, नए आयाम गढ़ेंगे जो पा चुके हैं पंख, वृहद आसमान छूयेंगे नये जहान का विस्तार होगा नयी तकनीक का…
कैसा गणतंत्र कैसी आज़ादी
कैसा गणतंत्र कैसी आज़ादी सोने की चिड़िया कहलाये जाने वाला मेरे सपनों का भारत क्यों बदल गया जहां हर कोई बेहाल जहां हर कोई घायल लादे आज़ादी और गणतंत्र का बोझ बोझिल कांधों पर गणतंत्र कैसा ये गणतंत्र आज़ादी कैसी ये आज़ादी जहाँ आज भी धर्म पर होते बवाल कई न आज़ादी मंदिर की न…