महकता बसंत
महकता बसंत महक रहा है हलका – हलका , बालों में गूँथा जो गजरा । बहक रहा है छलका – छलका , नयनन में हँसता वो कजरा । बिजुरिया सम दमके बिंदिया आँचल में मुखड़ा रही छिपाय । सजी धजी थिरके है सजनी , आस दीप नैन में चमकाय ! 2 बोल रही है बहकी…
महकता बसंत महक रहा है हलका – हलका , बालों में गूँथा जो गजरा । बहक रहा है छलका – छलका , नयनन में हँसता वो कजरा । बिजुरिया सम दमके बिंदिया आँचल में मुखड़ा रही छिपाय । सजी धजी थिरके है सजनी , आस दीप नैन में चमकाय ! 2 बोल रही है बहकी…
प्रेम बंधन तुमने कम समझा है मुझे या शायद समझने की जरूरत ही नहीं समझी चलो जाने दो इस नासमझी पर भी मुझे तो प्यार ही आया सदा अब तुम समझो, न समझो ये तुम्हारी समझ और तुम्हें समय भी कहाँ समझने समझाने का पर देख लेना, एक दिन अपने दुपट्टे के कोने से बांध…
प्रेम- रुमानियत से रुहानियत प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आँखें खोलीं और अपनी जोशीली उँगलियों से मेरी रूह को छुआ तब….जब उठ गया था प्रेम या प्रेम जैसे किसी शब्द पर से मेरा विश्वास प्रेम ने दुबारा मेरी ज़िन्दगी के अनसुलझे रहस्यों को खोलने का सिलसिला शुरू किया फिर से उन अनोखे पलों…
खूब याद करती हूँ तुम्हे, कभी उदास मत होना एक हमारे बड़े होते-होते छूट गए कई छोटे-छोटे सुख। मुट्ठी में छिपाये गए छोटे-छोटे चॉकलेट केएफसी और डोमिनो के पिज्जा-बर्गर से ज्यादा लजीज थे। खेल में बार-बार हार कर मेरे आउट होने पर तुम्हारा अचानक छोटे से बड़ हो जाना और मेरी जगह खेलकर मुझे जीता…
बंसती बाँसुरी वनों बागों में प्रकृति की जादूगरी पीली सरसों की डाली हरीभरी विभिन्न रंग पुष्पों की लागे भली तूलिका से रचना किसने है करी पशु पंछी की थिरकन लागे भली पवन संग सुगंध मदमताती परी जनजन मे जगाये उमंग प्रकृति विद्यादायिनी शारदे आशीष भरी बासंती परिधान से दुनिया सजी जीवनदायिनी प्रकृति फिर संवरी !…
हे माँ शारदे अंतर्मन में बसी है मूरत मनमोहिनी प्रेममयी सूरत हे माँ वीणावादिनी शारदे कृपा कर माँ, आशीष वर दे। शुक्ल पंचमी के पावन तिथि पर आती तू जब इस धरा पर बसंत के बयारों को साथ लाती नए प्रेम की कलियाँ खिलाती बाल वृद्ध में उमंगें भरती नव जीवन का आह्वान करती हे…
जयति जय माँ शारदे जयति जय माँ शारदे। जयति जय माँ शारदे। मां बागेश्वरी,वीणापाणि, ज्ञान की देवी,हँसवाहिनी, बुद्धि का मां वर दे, जयति जय माँ शारदे। जयति जय माँ शारदे। धवल वस्त्र है, सौम्य स्वरूपा, कमलदलआसन,विद्द्यारूपा, चरणों में ये शीश झुका दूँ, तन,मन, धन सर्वश्व लुटा दूँ, अंधकार इस पूरे जग का, ज्योतिर्मय कर हर…
बसंत लाया संदेशा प्रेम का ज्ञान कला की देवी है देती यही वरदान। हुआ था अवतरण वीणावादिनी का दिया ब्रह्मा, विष्णु ने मां सरस्वती को बागेश्वरी, भगवती, शारदा नाम । जब शबरी ने पांवड़े बिछाये किया रघु का इंतज़ार, खाए जूठे बेर प्रभु ने है वही पावन मास महान। जिसमे मनाती है कुदरत भी अपने…