कविता
पर्यावरण और त्योहार
“पर्यावरण और त्योहार “ डरे सहमे से पेड़-पौधे जा पहुंचे मानव के पास दीपावली करीब आ गई तो उनकी थीं शिकायतें खास.. पत्ते, शाखाएं, फूल और कलियाँ सबके सब कुछ घबराए थे नन्ही घास,बेलें, लताएँ, फल मुँह बनाए और गुस्साए थे-.. “हर तरफ दीवाली की खुशियाँ हैं पर हम सब सहमे से खड़े हैं अजीब…
होली जोगीरा
होली जोगीरा आयो है मधुमास, छायो है प्रभास, सुरभित है उपवन, अली करे रसपान, बजाकर बांसुरी सी तान, मैं कैसो करूं बखान, जोगीरा सा रा रा रा…. जोगीरा सा रा रा रा…. पधारे ब्रज में अनंग, देखन को रास रंग, गोपीयन के अंग, थिरकत हैं श्याम संग, हर्षित वृंदावन धाम, मैं कैसो करूं बखान, जोगीरा…
एक होली ऐसी भी
एक होली ऐसी भी हो उठता है आसमान लाल पीले गुलाबी रंगों से सराबोर जब फागुनी बयार और शुष्क पत्तों का शोर हृदय को देता है झकझोर जब फगुआ के गीतों के बीच अश्रुओं की अविरल धारा नयनों को देती है सींच जो मां की आंखों का तारा था एक पत्नी का अभिमान सारा था…
होली पर आओ कान्हा
होली पर आओ कान्हा नर है वो मनमाना, होली का करे बहाना, होली के बहाने से वो,डाले कुड़ियों को दाना।। रंग ले अबीर ले और साथ में है भाँग छाना, मनमौजी छैला है, वो बातों में न कोई आना होली की मादकता में उसका न कोई सानी, गुलाल की आड़ में वो कर रहा मनमानी।।…
रंगों की बरसात
रंगों की बरसात होली के त्यौहार की, अजब निराली बात पिचकारी से हो रही, रंगों की बरसात फागुन आया साथ ले, रंगों का त्यौहार अंग अंग पड़ने लगी, पिचकारी की धार भोर सुंदरी गाल पर, मलने लगी गुलाल धरती दुल्हन सी सजी,अंबर हुआ निहाल पड़े ढोल पर थाप तो, गाये मेघ मल्हार हवा बाँचती पातियाँ…