मुर्दा खामोशी
” मुर्दा खामोशी “ तेरे जग में भीड़ बहुत है आगे बढ़ने की होड़ बहुत है मंज़िल की मुर्दा खामोशी रस्तों का पर शोर बहुत है ख़्वाबों के साये को थामे जीने की घुड़दौड़ बहुत है बुत से दिखते चलते फिरते मरे हुओं की फ़ौज बहुत है पीठों में खंजर…भोंकते प्यार जताते यार बहुत है…