नारी : कल , आज और कल

नारी : कल , आज और कल नारी ….ईश्वर के समान व्यापक और अपने आप में सम्पूर्ण एक ऐसा शब्द है , जिसमें समाहित है जीवन चक्र के गतिशील रहने के समस्त कारण । सम्पूर्ण सृष्टि में जीवन , गति और अस्तित्व इन्हीं दो शब्दों से है । ईश्वर जो हमारे अंदर और बाहर की…

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नारियाँ

नारियाँ नित हौसलों के दीप जलाती हैं नारियाँ हर फर्ज अपना हँसके निभाती हैं नारियाँ मुश्किल में हार मानती नहीं है ये कभी जो ठान लें वो करके दिखाती हैं नारियाँ कमजोर इनको आप समझना न भूलकर काँधे पे घर का बोझ उठाती हैं नारियाँ अब लक्ष्य इनका चार दिवारी नहीं रहा दुनिया मे नाम…

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“नारी तुम”

“नारी तुम” हम नारी हैं, एक शक्ति हैं, इस गौरवशाली देश के, सदियों से देश का गौरव हैं, सदैव सर्वोच्च धरोहर हैं, इस जीवन को व्यर्थ न करो, नारी जीवन को सार्थक करो, हिम्मत को अपना साथी बनाकर, हर मंजिल को फतह करो, उठो लड़ो और आगे बढ़ो, हर संकट का हरण करो, नारी हैं…

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नारी हूँ

नारी हूँ नारी हूँ नारी ही कहलाऊँ न मैं राधा हूँ न मैं मीरा न मैं सीता हूँ न मैं गांधारी न मैं लैला हूँ न मैं सोहनी न मैं देवी हूँ न मैं दासी मैं तो सिर्फ ईश्वर की रचना त्याग, प्रेम ,ममता ,वात्सल्य से परिपूर्ण नारी हूँ ………. जिसे कई नामों से जाना…

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पहले मैं इंसान हूँ

पहले मैं इंसान हूँ पहले मैं इंसान हूँ फिर नारी हूँ बेटी हूँ बहन हूँ पत्नी हूँ माँ हूँ दोस्त हूँ दुश्मन हूँ रिश्वतों का दरीचा हूँ जानती हूँ हज़ारों खामियां हैं मुझमें पर जैसी हूँ अच्छी हूँ आखिर इंसान हूँ देखती हूँ खुद को खुद की निग़ाहों से अपूर्ण हो कर भी खुद में…

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देह से इतर स्त्री ……….!!

देह से इतर स्त्री ……….!! एंगेल्स ने कहा है कि मातृसत्ता से पितृसत्तात्मक समाज का अवतरण वास्तव में स्त्री जाति की सबसे बड़ी हार है। मानविकीविज्ञान शास्त्र (Anthropology) के विचारक ‘लेविस्त्रास’ ने आदिम समाज का अध्ययन करने के बाद कहा-‘सत्ता चाहे सार्वजनिक हो या सामाजिक, वह हमेशा पुरुष के हाथ में रही है। स्त्री हमेशा…

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उजालों की ओर

उजालों की ओर सृष्टि के अविरल प्रवाह की वात्सल्य धारा में अवगाहन करता मनुष्य और उसके भावसुमनो के मुस्कान स्रोत से नि:सृत समाज के मन की कल्पना है आठ मार्च “अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस”। स्तम्भित होती हूं जो महिला प्रत्येक पल प्रणम्य है उसके लिये ३६५ दिन में एक दिन ? “मातानिर्माता भवति” नारी तो सृष्टा…

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स्त्री मूर्ति नहीं है

“स्त्री मूर्ति नहीं है “ हर रोज कई सवाल कई नजरों के बीच से गुजरती है निर्भयाएं । कहीं बचतीं हैं नजरों और सवालों से , कहीं लड़तीं हैं नजर और सवालों से , निर्भयाएं हर रोज लड़तीं हैं एक युद्ध अपनी पहचान के लिए । ऐसा युद्ध जहाँ सीधे रास्ते भी जाने क्यों बार-बार…

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8 मार्च

  1 स्त्री बढ़ रही है, बदल रही है सब खुश हैं सब यानी समाज, पुरुष सूचना तंत्र इन सब मे स्वयं स्त्री शामिल नही है 2 स्त्री बदल रही है पुरुष खुश है खुश है कि वही बदल रही है पुरुष के अनुरूप स्त्री के अनुरूप पुरुष को नही बदलना पड़ा 3 स्त्री का…

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बुरा है

बुरा है हाँ हिंदु बुरा है न मुसलमान बुरा है जो ज़ेहन का गंदा हो वो इंसान बुरा है ए भाई मेरे ,प्यार के चल फूल खिलाएं यह तोप यह तलवार ये सामान बुरा है दोनों का लहू पीके भी प्यासा ही रहेगा ए दोस्त मेरे ,जंग का मैदान बुरा है इँसान किये जाता है…

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