श्रमदान

श्रमदान आधी आबादी करती श्रमदान बिन वेतन ताजमहल यादगार निशानी “कटते हाथ” होते हैं पूरे मजदूरों के हाथों स्वप्न हमारे आनंदबाला शर्मा साहित्यकार जमशेदपुर, झारखंड 0

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बेटा मजदूरिन का

बेटा मजदूरिन का एक बेटा मजदूरिन का, मुँह ना देखा था पिता का। दहलीज पर झोपड़ी के, था ,तरसता भूख से, तलाशती आँखों से माँ को, हर चेहरे को निहारती। थकी पलकों को सहला जाती, नींद अपने आँचल में। कभी जागता कभी सोता। ना जाने माँ कब आयेगी। सिने से लगायेगी, लाल को एक था…

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टिस

टिस गर्मी की तपती धूप सर्दी की ठिठुरन आंधी , तूफान या हो भीगी बारिश हर मौसम की मार सहता हूँ मैं बेबस मज़दूर क्योंकि मेहनत ही मेरा कर्म है वही मेरी रोज़ी रोटी बनाता हूँ बड़े बड़े घर, इमारतें,आलीशान बंगले उठा टोकरे मिट्टी ईंटो, गारे, सीमेंट के पर खुद के रहने के लिये होती…

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वे सड़कें बना रहे हैं..

वे सड़कें बना रहे हैं.. गर्म तपती भट्ठियों सी , तप्त सड़कों पर कोलतार की धार गिराते , मजदूरों के झुलस रहे हैं पाँव. पर तपती धरती पर, गिट्टियां बिछाते, मानो स्नेह का लेप लगा रहे हैं, वे सड़कें बना रहे हैं. गर्म जलाते टायरों का , फैलता है धुंआ ,आग उगलता, जला रहा है…

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मज़दूर

मज़दूर हालातों से होकर मजबूर ही बनता है कोई मज़दूर पेट की आग बुझाने को ही रहता है घर से कोसों दूर करता है मेहनत इतनी पड़ जाते हैं छाले हाथ पांवों में रहता है फिर भी वो सदा तनाव और अभावों में गर इस जहां में मज़दूर ना कोई होता ना होती गगनचुंबी इमारतें…

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मजदूर

मजदूर जिसके सर पर छत है खुले आकाश का,होता रहता वज्रपात, फिर भी वह आत्मविश्वास से लबरेज है , वह है मजदूर। कंधों पर सपनों का बोझ ढो रहा, चला जा रहा मंजिल है दूर, अपने पसीने से भूमि सींचता,है श्रम से थक कर है वह चूर। अपने हथौड़े से करता एक-एक प्रहार,रखता जाता एक-…

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मजदूर

मजदूर परेशानी हो या आँधी हो दिन रात श्रम करते हैं। बोझा सर पे लेकर चलते हम मजदूर नहीं थकते हैं।। फिर भी दो जून की रोटी को कभी कभी तरसते हैं। मैं मजदूर हूं हां बहुत मजबूर हूं बस यही कहते हैं।। ग़रीबी कहो या लाचारी , किस्मत की है मारी । तपते तन…

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श्रम शक्ति

श्रम शक्ति मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं मेहनत करता हूँ, क़सूर नहीं पेट मेरी भी भरे और सबकी.. फिर कहाँ शिकायत, किसी से हुज़ूर है… मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं….. मेहनत करता हूँ, क़सूर नहीं…. भूख से लड़ता, प्यास से लड़ता सर्दी गर्मी और बरसात से लड़ता हालात से लड़ता, ज़ज़्बात से लड़ता लड़ता धूल, मिट्टी और…

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मजदूर का बेटा

मजदूर का बेटा हम साथ साथ पढ़ते तब , 8 वीं की बात रही होगी, मेरी टक्कर हमेशा से ही उससे हो जाती थी, और मैं हमेशा उससे हार जाता था। खेल में, कक्षा के रिजल्ट के स्थान में, हमेशा वो मुझसे बाजी मार लेता था। मुझे इस बात से उससे चिढ़ हो गई थी,…

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मानव सभ्यता का अदृश्य दुश्मन कोविड 19

मानव सभ्यता का अदृश्य दुश्मन कोविड 19 कोरोना पर चिंतन ‌करने से पहले हम अपनी पुरानी सभ्यता संस्कृति पर एक नजर डाल लें । पृथ्वी , काल और समय के अनुरूप सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भौगोलिक मांग के अनुसार अपना संतुलन बनातीं रही हैं । त्रेतायुग में एक युद्ध ,द्वापरयुग में एक युद्ध फिर अभी…

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