झूठ झूठ और झूठ-झूठ के माध्यम से सच की तलाश

झूठ झूठ और झूठ-झूठ के माध्यम से सच की तलाश ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि कोई कवि या कवयित्री एक ही विषय को लेकर एक पूरा संग्रह ही रच डाले। दिव्या माथुर इस माने में एक अपवाद मानी जा सकती हैं, जिन्होंने ‘ख़याल तेरा’, ‘रेत का लिखा’, ‘11 सितम्बर – सपनों की…

Read More

दिव्या माथुर की रचनाओं पर प्रतिष्ठित लेखकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाएं

दिव्या माथुर की रचनाओं पर प्रतिष्ठित लेखकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाएं दिव्या की कहानियों में एक तरफ़ औरत की परजीविता और यथस्थिति का यथार्थ है तो दूसरी तरफ़ संस्कार जनित संवेदनाएं। उनके लेखन में कहीं भी कथ्य या भाषा का आडम्बर नहीं है। अपने देश से दूर रहते हुए भी उनके पास भारतीय यथार्थ और संस्कार…

Read More

यथा नाम तथा गुण

यथा नाम तथा गुण दिव्या जी से मेरा परिचय भले ही ऑनलाइन मोड का हो पर वे बहुत आत्मीय हैं। उनके अनेक अनेक रूप हैं, वे एक साथ एकोअहम बहुस्याम हैं। कवि, रचनाकार, संपादक, आयोजक, अनेक पुरस्कारों से सम्मानित, कम शब्दों मे गहरी और गंभीर बात कह जाने वाली, हीरे की माफ़िक हैं, रहिमन हीरा…

Read More

पंगा: जीवन का व्यर्थता बोध

पंगा: जीवन का व्यर्थता बोध ‘यह हीनता, अपर्याप्तता और असुरक्षा की भावनाएँ हैं जो व्यक्ति के अस्तित्व के लक्ष्य को निर्धारित करती हैं।’ – एल्फ़्रेड एडलर ‘नया ज्ञानोदय’ के जुलाई २००८ में प्रकाशित दिव्या माथुर की कहानी ‘पंगा’ पहले भी पढ़ी थी, अच्छी लगी थी। दोबारा पढ़ते हुए उसके कुछ अनछूए पहलुओं पर ध्यान गया।…

Read More

दिव्या माथुर: मेमेन्तो मोरी

दिव्या माथुर: मेमेन्तो मोरी ब्रिटेन में रहने वाली प्रवासी भारतीय हिन्दी लेखक सुश्री दिव्या माथुर से हमारी पहली मुलाक़ात सितम्बर 1999 में हुई थी, जब मैं मास्को विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफ़ेसर बोरिस जाखारयिन के साथ छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाग लेने के लिए लन्दन गई थी। दिव्या जी ने बड़ी हार्दिकता के साथ…

Read More

घर से चलकर पूरी दुनिया तक की यात्रा हैं – दिव्या की कहानियाँ

घर से चलकर पूरी दुनिया तक की यात्रा हैं – दिव्या की कहानियाँ चुनिंदा कथाकार ऐसे होते हैं जो शून्य से शुरू तो होते हैं किन्तु वे किस हद तक चले जाएंगे, इस बारे में कयास लगा पाना बहुत मुश्किल होता है। हिंदी साहित्य की पहली और दूसरी पीढ़ियों के कथाकारों और यहाँ तक कि…

Read More

दिव्या माथुर की कविताओं में मानवीय चेतना के संघर्षों की आँच

दिव्या माथुर की कविताओं में मानवीय चेतना के संघर्षों की आँच कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक स्थापित हस्ताक्षर दिव्या माथुर समकाल की चर्चित कवयित्री भी हैं। नई कविता की टकराहटें हों या छंदबद्ध गीतों की मधुर तानाकशी, छोटी बड़ी बहर की ग़ज़लें या नज़्में, उनके अपने मौलिक व भावनात्मक बिम्ब-प्रतीक पाठक-मन को सहजता…

Read More

जब आप जंग पे निकली थीं, अस्पताल को

    जब आप जंग पे निकली थीं, अस्पताल को मेरे बाग़ में फलों से भरा एक दिव्य वृक्ष है, वृक्ष यह वृक्ष मेरे बाग़ की मुस्कुराहट है; मुस्कुराहट यह मुस्कुराहट जा रही है कल अवकाश पर! अवकाश उस अवकाश पर जहाँ सँवारा जाएगा मेरे पसंद की मुस्कुराहट की शाख़ को, शाख़ उस शाख़ को…

Read More

दिव्या माथुर का ‘आक्रोश’

दिव्या माथुर का ‘आक्रोश’ नेहरु केन्द्र के एक दूसरे कार्यक्रम के दौरान दिव्या ने मुझसे पूछा कि तुम्हें मेरी किताब पढ़ने का मौक़ा अभी मिला है कि नहीं? अट्ठारहवीं शताब्दी के अंग्रेज़ लेखक रेवरेंड सिडनी स्मिथ के एक प्रसिद्ध कथन के अनुसार, किसी पुस्तक की समीक्षा बड़ा घातक हो सकता है। मेरे दिव्या के आक्रोश…

Read More

दिव्या जी को जितना मैंने जाना

दिव्या जी को जितना मैंने जाना मिलना मिलाना कहते हैं ईश्वर के हाथों का खेल है और जीवन के किस मोड़ पर किसी ऐसी शख्सियत से भेंट करवा दें कि लगे जैसे आपको तो बहुत पहले से जानते हैं| प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन की प्रतिनिधि साहित्यकार जिनका रचना संसार बहुआयामी है, सुश्री दिव्या माथुर जी…

Read More