सब माया है

सब माया है वह अकेला रह गया था। सोने के पिंजरे और सोने की कुर्सी पर बैठा ‘अकेला आदमी’। वह हमेशा से अकेला नहीं था। अपने भरे पूरे परिवार में पांच बहनों के बीच इकलौता भाई सबका लाड़ला था। पिता थोड़े कड़क स्वभाव के थे, सो बच्चों और पिता के बीच हमेशा एक कम्युनिकेशन गैप…

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योगेश

योगेश उसकी अक्सर याद आती रहती है। बल्कि शायद हमेशा ही वह मेरे जेहन में रहता है। मेरा चपरासी था। यूँ कहिये कि मेरा अभी-अभी चपरासी हुआ था। हुआ यूँ कि मैंने अपने स्थायी चपरासी को कई बार अचानक मेरे ऑफिस के सोफे पर लेटे देख लिया था और एक बार तो मेरे ही सोफे…

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नज़रिया

नज़रिया   कोरोना काल में समय कैसे गुजर जाता है पता ही नही चलता, एक दिन नीलू ने सोचा कि क्यों ना आज सुबह सुबह माया दीदी से बात की जाये ,फोन उठाया –दीदी कैसे हो,जीजाजी कैसे है,आपके शहर में कोरोना की स्थिति कैसी है? माया –अरे साँस तो लेने दो,कितने सवाल करोगी?? हम सब लोग…

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तिरस्कार

तिरस्कार टैक्सी जा कर बड़े से गेट के सामने रूक गई। दरवाजा खोल कर आशा बाहर निकली उस के पीछे दोनों छोटे बच्चें। आशा ने टैक्सी का किराया चुकाया, बैग कंधे पर डाला और दोनों बच्चों का हाथ पकड़ कर गेट के सामने आ खड़ी हुई। दरबान ने देखा तो सलाम किया फिर सिर झुका…

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अपराधी कौन?

अपराधी कौन?   “ले जाओ इसे। तुरंत उठाओ।” डॉ. साहब ने आदेश दिया। सिस्टर ने सहम कर पूछा “रामा को बुला लाऊँ ? बातचीत सुनाई तो दे रही थी पर समझ नही सकी शीला। वह अर्ध बेहोशी में थी।एक गूँज सी आवाज़ ही सुनाई पड़ी। ” हाँ ले तो वहीं जायेगा,पर,अभी नहीं। अभी नर्सरी में…

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कासे कहूं अपने जिया की

कासे कहूं अपने जिया की   हल्की हल्की सावन की रिमझिम फुहारें पड़ रही थी, मौसम बहुत खुशगवार था । नीता का मन चाय पीने का हो रहा था पर अपने लिये चाय बनाने में आलस आ रहा था इसलिये बैठकर अखबार पढ़ने लगी, हालांकि अखबार में कुछ पढ़ने के लिये होता ही कहाँ है…

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गीली हुई क़िताब

गीली हुई क़िताब आज सारे घर में सुबह से ही किसी उत्सव सा माहौल था। आखिर घर भर के आँखों के तारे गोलू बाबू अरे.. नहीं भाई माफ़ करना … श्रीमान चिन्मय नीलकंठ जोशी आज पहली बार विद्यालय जो जा रहे है। वैसे उन्हें घर में ही दादी ने कई श्लोक पथ करवा दिए थे।…

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रिटायरमेंट

रिटायरमेंट आज फिर उषा प्रियम्बदा की कहानी “वापसी” के किरदार गजाधर बाबू की याद मेरे ज़ेहन में बिजली की तरह कौंध गई। क्योंकि मेरे सामने दूसरे गजाधर बाबू दिखाई दे रहे थे। ४२ वर्ष का विद्यालय जीवन अनुभव कर २००२ में विद्यालय से रिटायर हो रहे थे आशू के पिताजी श्री दीनदयाल सिंह। बहुत खुश…

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अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न एक बार फिर… नहीं..नहीं.. इस बार आने दो मुझे। .. क्यों नहीं आने देती हो… मैं आना चाहता हूँ… नहीं वह सब नहीं होगा जिसका तुम्हें भय है… तुम बहुत अच्छी हो। .. वह भी बहुत समझदार है… देखा नहीं उसने अपनी जिम्मेदारियां कितनी खूबसूरती से निभाईं हैं… … माना उसका विश्वास उठ…

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लम्हे

लम्हे वक्त की तेज़ रफ़्तार में जिंदगी भले ही भागती रहे, पर कुछ लम्हे यूँ ही एक जगह पर आकर थम जाते हैं, मानों अंगद का पाँव हो, जिसे आप जरा सा भी हिला नहीं पाते अपनी जगह से। कभी सोचा ही नहीं था कि सत्ताइस साल के एक लंबे, व्यस्ततम, भागदौड़ भरे सफर के…

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