मोटेराम जी शास्त्री

मोटेराम जी शास्त्री कौआ चला हँस की चाल, अपनी भी भूल गया, प्रस्तुत पंक्ति ही जैसे आधार है मुंशी प्रेमचंद जी की हास्य कथा पंड़ित मोटेराम जी शास्त्री का। बड़े ही सरल एवं सहज भाव से इस पूरी कहानी को आकार दिया है मुंशी जी ने। बहुत ही कम पात्रों के साथ इस कहानी का…

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फ़रिश्ता

फ़रिश्ता सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई सुशीला काफ़ी कमजोर लग रही थी।परन्तु उसकी आँखों में एक अद्भुत चमक थी। वह अपने नवजात शिशु को जो बग़ल के पालने में लेटी थी , उसे ममता से भरी वात्सल्य से एकटक निहार रही थी।उसका पति हरिया उसके पास ही बैठा था।हरिया दिहाडी मज़दूर था। सुशीला…

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निर्मला

निर्मला मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास निर्मला का प्रकाशन१९२७ में हुआ था । यह उपन्यास मुझे बहुत ही ज़्यादा पसंद है। निर्मला उपन्यास बेमेल विवाह एंव दहेज प्रथा पर आधारित है।यह बेहद मार्मिक कहानी जो दिल को छू जाती है।यह एक प्रकार से मनोवैज्ञानिक उपन्यास है। मानस पटल पर एक छाप छोड़ देती…

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प्रेमचंद -युग प्रवर्तक

प्रेमचंद -युग प्रवर्तक प्रेमचंद उन साहित्यकारों में से हैं जिनकी रचनाओं से भारत के बाहर रहने वाले साहित्यप्रेमी हिंदुस्तान को पहचानते हैं। प्रेमचंद का साहित्य हमें सीखलाता है कि किस तरह क्रांतिकारी लफ्फेबाजी से बच कर सीधे सादे ढंग से जनता की सेवा करने वाला साहित्य रचा जा सकता है। अच्छी कहानी लिखने के लिए…

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नथ

नथ सकीना आफ़ताब से लिपट कर ,हिचकी ले लेकर रोये जा रही थी ,बड़ी-बड़ी पनियाई आंखें कमल पर गिरे ओस की बूंदों सी खूबसूरत लग रही थीं। आफ़ताब किसी छोटे से बच्चे की तरह सकीना को बाहों में भरे कभी उसके माथे को चूमता तो कभी उसकी बिखरी लटों को संवारते हुए उसे समझाने की…

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दूध के दाम

दूध के दाम प्रेमचंद साहित्य की समीक्षा करना थोड़ी जुर्रत की बात है! कहानी विधा के दूसरे उन्मेष काल के चमकते सितारे प्रेमचंद थे।कोई सोच भी नहीं सकता था कि किसी की लेखनी से कहानियों की ऐसी गंगा प्रवाहित होगी जिसमें भारतीय ग्रामीण समाज केंद्र में होगा और बरसों ये कहानियाँ समय की धारा में…

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पेच्ची

पेच्ची कितना मुश्किल है जीवन का यथार्थ ये तो सभी जानते हैं। इतना कि दुःख ही सत्य लगता है सुख नहीं! हाट की चहल-पहल व धूल के बीच पेच्ची उदास बैठी है।साथ में लचकी खड़ी है।उसकी बड़ी-बड़ी आँखें ख़ुशी व्यक्त कर रहीं हैं या उदासी कहना कठिन है। सत्य यही है कि दोनों की आँखों…

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बड़े घर की बेटी

बड़े घर की बेटी ‘बड़े घर की बेटी’ सामाजिक जीवंतता की एक कालजयी रचना है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियां सीधी-साधी होती हैं और सामान्य ढंग से बातें करती हैं। इस कहानी में के चरित्र आने स्वाभाविक रूप में हैं और कथाकार ने कहीं भी भाषा कौशल या अभिव्यक्ति चतुराई का प्रयोग नहीं किया है। इन्हीं…

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पगली

पगली धूप पड़ती थी तो पड़ती ही रहती थी जैसे उसको पड़ने का मशगला हो आया हो ,उसकी तपिश के विरोध में यहां-वहां से छायाएं निकल आती थी, मग़र उसे कभी छांव में नही देखा था, वो तपती धूप में भी उसी नल वाले चबूतरे के पास बैठी रहती थी, जिसके एक तरफ बहते पानी…

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कैक्टस

कैक्टस दस दिन के दुधमुँहे मुन्ना को गोदी में लिए, देहरी पर खड़ी संचिता, कुछ अधिक खीझ और कम भय के साथ सामने बैठक में दीवान पर लेटे सचिन को देख रही थी। उसकी सास मनियादेवी अभी-अभी पैर पटकती इसी देहरी से बाहर निकली हैं। उनके स्वर का ताप संचिता के समूचे तन से लिपटा…

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