तुम लौट आओ

तुम लौट आओ

हे बुद्ध
तुम लौट आओ

क्योंकि
तुमने कहा था

“ईर्ष्या या घृणा को प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है”

पर
असंवेदनशील आत्माओं के साथ
जी रही मानव जाति
भूल चुकी है
किसी से भी
निःस्वार्थ प्रेम करना
लौटकर अब तुम
प्रेम क्या है
इन्हें
फिर से याद दिलाओ

हे बुद्ध
तुम लौट आओ

क्योंकि
तुमने कहा था

“इंसान का जैसा विचार होता है, इंसान धीरे-धीरे वैसा ही बन जाता है”

और
इस कलयुग में
चण्ड बन चुका है इंसान
एक दूसरे के लहू का
हाड़ माँस का जीवित पिपासु
इस शैतान बने इंसान को
फिर से इंसान बनाओ

हे बुद्ध
तुम लौट आओ

क्योंकि
तुमने कहा था

“इंसान के कर्म उसकी ही नहीं आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित करते हैं”

ये अधम
अपने कुकर्मों से
खोद रहा है
एक अंधा कुआँ
आने वाली पीढ़ियों के लिए
रोको इसे आकर
मानव जाति के
भविष्य को
अंधे कुएं में
गिरने से बचाओ

हे बुद्ध
तुम लौट आओ

क्योंकि
तुमने कहा था

“तीन चीजें ज़्यादा देर तक छुप नहीं सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य”

दिन-रात
ये सूर्य ओर चंद्रमा तो
छुपते रहते हैं
उगते रहते हैं
पर
सत्य को छुपे
काफी
लंबा समय हो गया
असत्य के बादल
लंबे समय से
ढाँके हैं सत्य को
मत करो देर
आकर जल्दी
सत्य पर से
असत्य के बादल हटाओ

हे बुद्ध
तुम लौट आओ

क्योंकि
तुमने कहा था

“वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए”

पर ये मूर्ख
अकर्मठ बन
बुनते रहता है
झूठे भविष्य के दिवास्वप्न
प्रपंच में पड़ा रहता
बीते हुए भूतकाल के
भूल गया है
वर्तमान की पगडंडी पर चलना
अकर्मठ बने मानव को
कर्मठता का पाठ पढ़ा
फिर से
वर्तमान की
पगडंडी पर चलाओ

हे बुद्ध
तुम लौट आओ

तृप्ति मिश्रा
इंदौर (भारत)

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