आओ बुद्ध हो जाएं

आओ बुद्ध हो जाएं

आओ बुद्ध हो जाएं क्षण भर के लिए उतारकर बोझ संबोधनों का,जिम्मेदारियों का,ओढ़ ले पलभर के लिए उन्मुक्तता उस विहंग भाँति जो बेशक़ उड़ान भरता है अपने नीड़ ख़ातिर विस्तृत आसमाँ में…!!

माना बुद्ध होना आसान नही हम स्त्रियों को,नही त्याग सकती वे अपने निर्वाण हेतु घर की दहलीज़, एकांतवास नही ले सकती पर सुनो पल भर के लिए एकांतवास को ओढ़ सकती हो अपनी मन की शांति के लिए…!!ब्रह्म ज्ञान हमे जन्मजात विरासत में मिला है उपदेशों की घुट्टी हमे पालने में ही पिला दी जाती है।मंत्रोच्चार कम परंपराओं की कई अनसुलझी गुत्थियाँ हमे उसी वक्त फूँक दी जाती है हमारे कानो में…!!
कुछ और न सिखाया गया हो पर तुम स्त्री हो यह बार बार जतला दिया जाता है।

नतीजा हम श्रेष्ठ होकर भी स्वीकार कर लेती है अपनी कमज़ोरी..!ऊँचाबोलना शोभा नही देता बस खामोश हो सहम जाती है उसकी आवाज़..!मैं कहाँ कहती हूँ कि विरोध करो तुम हर बात का सुनो जीवंत रहना है तो थोड़ा विरुद्ध भी तो जाना होगा न…!!बस जी लो पल भर सही बुद्ध सी जिंदगी सोने से पहले या दिन में एक बार…!!जिम्मेदारियों का क्या है वह तो परछाई सँग चलती रहेगी ताउम्र..!!रही बात स्वच्छन्दता की तो हम इतनी डरी हुई है की कदम आगे बढ़ते ही नही।ओर आगे बढ़ भी गए तो रोज मरती है सोच सोच कर…!!तो सुनो आओ पल भर ही सही चले आँगन को बना लिम्बुनी उपवन उठा ले एक आराम चेयर,मन को बाँध एक आसन में बंद करले पल भर आँख हो मुद्रा फिर योग की पल भर करले बुद्ध सा विश्राम।निर्वाण की चाह नही रखनी स्वछंद उड़ान को भींच मुठ्ठी में चलो पल भर हो जाएं हम बुद्ध…!!जानती हूँ आसान नही बुद्ध होना ।ना ही धारण करना।


सुरेखा अग्रवाल

लखनऊ, उत्तरप्रदेश

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