महाभिनिष्क्रमण
आखिर चले ही गए तुम
हाँ बताया था तुमने
जीवन का ध्येय
विश्व का उद्धार
बोध की पिपासा
बहुत से कारण थे
बस मैं ही नही थी
पिछले जन्म से
चाहा था तुम्हें सुमेध
भद्रा बनकर वादा लिया था
अगले जन्म का
क्या खूब निभाया
तेरह वर्षों की तपस्या
का प्रसाद था ‘राहुल’
पर उसका मोह भी न रोक सका
साथ दिवसीय प्रसूता को छोड़
चले गए थे, रोता छोड़, निरीह
हाँ बताया था,
सुनाया था फरमान
जाना चाहते हो
लोक कल्याण के लिए
भला स्त्री की इच्छा का
कब रहा है मान..!
नही रोका था मैंने
तुम्हारी प्राथमिकताएँ
तै थीं
और हमारा
प्रारब्ध..!
तुम लौटे थे
छ वर्ष पश्चात
तुम ही आये थे मिलने
नही पखारे थे तुम्हारे चरण
पूर्ण समर्पण और त्याग से उपजा
स्वाभिमान
अब भी शेष था
सरस दरबारी