ब्रह्मांड
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड
ईश्वर मेरे लिऐ।
रहने को धरती दी ,
नक्षत्रों से भरा आकाश।
सूर्य, चन्द्र, नदी, वन ,उपवन
वायु प्राण आधार
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड,
ईश्वर मेरे लिऐ।
सूर्य, चन्द्र समय से आते,
ऋतुएं भी आती और जाती।
फल फूल समय से खिलते,
अन्न का भरा भंडार
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड,
ईश्वर मेरे लिऐ।
असंख्य जीव जन्तु दिऐ,
भरण-पोषण सबका किऐ
ये तेरी अनमोल सौगात,
संजोए हम ऐसा उपहार
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड
ईश्वर मेरे लिऐ।
छेड़छाड़ ना करे हम,
प्रकृति के नियमों को भंग,
फिर तो सजा भोगनी होगी,
प्रकृति ही देगी दंड
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड,
ईश्वर मेरे लिऐ।
बोलते नही,दे जाते है,
चक्रवात, बाढ़,भूकंप, अकाल,
अल्पवृष्टि और अतिवृष्टि,
संतुलन बनाये रखने का,
यही है मापदंड
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड,
ईश्वर मेरे लिऐ।
ब्रह्मांड की रक्षा करना ही ,
है मेरा कर्तव्य।
प्रकृति का ऋण चुकाने को,
करो ऐसा उपकार
तूने रचा ऐसा ब्रह्मांड,
ईश्वर मेरे लिऐ।
छाया प्रसाद
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड