विश्वनाथ प्रताप सिंह
विश्वनाथ प्रताप सिंह जी का जन्म इलाहाबाद के जमींदार परिवार में 25 जून 1931 को हुआ था। आपके असली पिता का नाम राजा भगवती प्रसाद सिंह था। मांडा के राजा बहादुर राय गोपाल सिंह निःसंतान होने के कारण उन्होंने 1936 में 5 वर्ष की आयु में आपको गोद ले लिया था। 1941 में राजा बहादुर राय की मृत्यु के बाद आपको मांडा का 41 वां राजा बहादुर बना दिया गया।आपका परिवार मांडा के राजा के नाम से प्रसिद्ध था। 25 जून 1955 में आपकी शादी श्रीमती सीता कुमारी के साथ संपन्न हुई। इत्तफाक से शादी की तिथि तथा जन्मतिथि और माह भी एक ही है। आपके डॉ पुत्र श्री अजय प्रताप सिंह व अभय सिंह हैं।
शिक्षा- आपकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के कैम्ब्रिज स्कूल से हुई।आगे का अध्ययन इलाहाबाद, वाराणसी व पूना मे पूरा हुआ। वाराणसी के उदय प्रताप कालेज में शिक्षा के दौरान यूनियन में भी सक्रियता दिखाई और विद्यार्थी यूनियन के अध्यक्ष बने। राज घराने से तालुक रखने के कारण कालेज के साथ-साथ यूनियन में भी काफी लोकप्रिय रहें। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी आप छात्र यूनियन के उपाध्यक्ष रहे। छात्र संगठन की सक्रियता ने राजनीति की तरफ प्रेरित किया। आपने बहुत से आंदोलनों मे हिस्सा लिया। 1957 में भूदान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपनी काफी जमीन भी दान में दे दी, जिसकी वजह से पारिवारिक विवाद भी हुआ और मामला न्यायालय तक जा पहुंचा।पर आपने इसकी परवाह नहीं की और राजनीति में सक्रिय होते चले गए।
राजनीति में योगदान- 1969 में आपने अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली तथा उसी साल पहली बार विधान सभा का चुनाव लड़कर विधायक बने। आप ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ छवि के कारण लोकप्रिय होते चले गए। जनमानस मे एक ईमानदार और जुझारू नेता के रूप में पहचान बनने लगी। इसी लोकप्रियता के कारण आप 1980 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि आपका कार्यकाल 2 वर्ष का ही रहा पर अपनी कार्यशैली से सभी का ध्यान आकर्षित किया।मुख्यमंत्री रहते हुए आपने डाकुओं के खिलाफ कई अभियान चलाए थे।
जनवरी 1983 में आपको केंद्र सरकार में वाणिज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया।आपकी दूरदर्शिता और सूजबूझ से प्रभावित होकर 1984 में राजीव गांधी जी की सरकार में आपको वित्तमंत्री का दायित्व सौंपा गया। अपने कार्यकाल के दौरान आपने विदेशी खातों में भारतीय धनाढ्यों का जमा अकूत पैसा वापस लाने की योजना के तहत आपने अमेरिका की प्राइवेट जासूसी संस्था फेयर फैक्स की नियुक्ति कर उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप दी। फेयर फैक्स संस्था की खोजबीन के दौरान यह मामला भी सामने आया कि बोफर्स तोपों की खरीद में 60 करोड़ की दलाली ली गई है और उसमें प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम उभरकर सामने आया। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसे अत्यंत गंभीरता से लिया। बोफर्स तोपों की जांच से उनकी गुणवत्ता पर भी प्रश्न खड़े हुए। वी पी सिंह की उग्रता देख उन्हें मंत्री पद से हटाने के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी से भी निष्कासित कर दिया गया। निष्कासन के बाद वो चुप नहीं बैठे और असन्तुष्ट कांग्रेसी नेताओं के साथ मिलकर संपूर्ण देश में राजीव सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार अभियान चलाते रहें।
भ्रष्टाचार अभियान में उन्होंने उद्योग जगत के नामी गिरामी हस्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई अत्यंत निर्भीकता के साथ की। राष्ट्र और समाज के हितों के लिए वो हमेशा अपने निर्णयों पर अटल रहे तथा अपने विचारों को मूर्तरूप देने के समय किसी प्रकार के दबाव के आगे कभी झुके नहीं।
वी पी सिंह एक ईमानदार नेता की छवि बना चुके थे इसी विश्वास के चलते कि भारत की जनता उनके साथ है, उन्होंने जनता दल पार्टी बनाई। 1989 के चुनाव के पहले अन्य विरोधी दलों की पार्टियों के साथ जनता दल का विलय करते हुए जन मोर्चा बनाया। देश का युवा आपको अपना नेता मान चुका था। चुनाव के दौरान यह नारा “राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है” बहुत लोकप्रिय हुआ था। चुनाव में कांग्रेस को परास्त कर आपका मंच विजयी हुआ। जीत के बाद अत्यंत नाटकीय ढंग से आप प्रधानमंत्री और देवी लाल उप-प्रधानमंत्री चुने गए।
अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान भी आप लोकप्रिय व कल्याणकारी निर्णय लेते रहें, उसमे सबसे अहम निर्णय था मण्डल कमीशन को लागू करना। अनुसूचित जाति और जन जाति को आरक्षण देने वाले इस कमीशन को लागू करते ही पूरा देश जन आक्रोश से जल उठा। सवर्ण वर्ग के सैकड़ों युवा विद्यार्थियों ने आत्मदाह कर लिया, पर वी पी सिंह अपने निर्णय पर अडिग रहे। उनके निर्णय का असर तबसे लेकर आजतक हर चुनाव में दिखाई देता है। एक तरह से यह देश का दूसरा विभाजन हुआ। आपसी दरारें बढ़ती चली गई। उन्होंने कहा था कि मैंने एक ऐसी पिच बना दी है जिस पर खेले बिना कोई भी पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती। एक साक्षात्कार में जब उनसे मण्डल आयोग लागू करने जैसे संवेदनशील विषय पर पूछा गया तो उन्होंने इस बार क्रिकेट के बजाय फुटबाल का उदाहरण देते हुए कहा था कि अपनी टीम को जिताने के समय विरोधी टीम का नाराज होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि गोल करने में मेरा पाँव जरूर टूट गया पर गोल तो हो गया।
अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए उनके निर्णय देश के लिए आत्मघाती सिद्ध हुए । उनके निर्णयों मे दूरदर्शिता का अभाव दिखाई देता था। वो दूरगामी परिणामों की परवाह किए बिना सस्ती लोकप्रियता भुनाने पर ज्यादा जोर देते रहे। इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वी पी सिंह सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए। चंद्रशेखर भी विश्वनाथ प्रताप सिंह से असन्तुष्ट थे। कांग्रेस की सपोर्ट से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने।
विश्वनाथ प्रताप सिंह का स्वभाव जहां एक तरफ काफी सरल था, वहीं; कहीं- कहीं उनका व्यक्तित्व काफी जटिल भी लगता था। वो अपनी समस्याओं को खुद ही हल करने में विश्वास रखते थे। एक चित्रकार और कवि होने के कारण वो अंतर्मुखी थे। दलगत राजनीति से हटने के बाद उन्होंने अपनी व्यक्तिगत रुचियों पर भी ध्यान केंद्रित किया और कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई। प्रकाशित पुस्तकों में मुफलिस , मैं और व्यक्ति, इश्तेहार आदि प्रमुख हैं।
मांडा के राजाओं की वंशावली मे उनके पूर्वजों मे काव्य और साहित्य की रुचि का वर्णन मिलता है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के पिता रामगोपाल सिंह के परबाबा मांडा नरेश रुद्र प्रताप सिंह को मांडा के कवि की उपाधि मिली हुई थी और उन्होंने 1825 के आस पास रामचरित मानस के किष्किन्धा कांड को तीन भागों में विभाजित कर रामखंड रामायण की रचना की थी। रामखंड को उन्होंने वंशपथ, दूत पथ और राजपथ ऐसे तीन खंडों में विभाजित किया था। उपलब्ध जानकारी के अनुसार वह रामायण करीब 4000 पृष्ठों की थी। हस्तलिखित इस ग्रंथ को बाद में 1901 से 1911 के बीच 9 खंडों में प्रकाशित किया गया। इन 9 खंडों का प्रकाशन चंद्रप्रभा प्रेस, वाराणसी द्वारा किया गया था। इन ग्रंथों का संपादन कवि रुद्र प्रताप सिंह के पौत्र राजा रामप्रताप सिंह की सहमति से पंडित सुधाकर द्विवेदी जी के द्वारा किया गया है। उन्होंने इस ग्रंथ को सरल सुबोध तथा बोधगम्य बनाने का प्रयास किया है, जिससे साधारण पाठक भी इस ग्रंथ का मर्म समझ सके।
सन 1991 से से ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी ग्रसित होने के बावजूद भी राजनीति मे सक्रिय भूमिका निभाते रहे। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया, गुर्दे की बीमारी से भी वे पीड़ित थे उनका इलाज अपोलो अस्पताल में चलता रहता था। 2008 में उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया था। किडनी की तकलीफ के कारण पुनः अपोलो अस्पताल मे भर्ती हुए और 27 नवंबर 2008 को अंततः ये सितारा डूब गया। आज सिर्फ स्मृतियाँ शेष हैं।
सुबोध कुमार मिश्र
महाराष्ट्र ,भारत
संदर्भ : इंटरनेट