भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- विक्रम साराभाई

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक: पद्मविभूषण डॉ. विक्रम साराभाई

“वे संकट और संदेह के क्षणों में, असफलता और सफलता के क्षणों में, मेरे साथ खड़े रहे, मेरा मार्गदर्शन करते रहे। आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने मुझे सही रास्ता दिखाया। वह एक विशालकाय व्यक्तित्व थे,और मैं भाग्यशाली था कि मैं उनकी छाया में विकसित हो सका।” – राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने डॉक्टर विक्रम साराभाई को याद करते हुए यह बात कही।
विक्रम साराभाई का पूरा नाम विक्रम अंबालाल साराभाई था। वैसे तो विक्रम गुणों के भंडार थे परंतु उन्हें सर्वाधिक यश एक विलक्षण भौतिक विज्ञानी और असाधारण उद्योगपति के रूप में मिला। और उद्योग भी कैसा – परमाणु और अंतरिक्ष एक साथ; वस्त्र और फार्मा एक साथ! जनमानस को शिक्षित करने की दिशा में अमूलचूक परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने “संचार उपग्रहों” का सपना उस समय देखा जब एक मामूली रॉकेट कार्यक्रम भी असंभव लगता था! उन्होंने परमाणु शक्ति और डीसेलीनेटेड समुद्री जल द्वारा पोषित विशाल कृषि परिसरों का सपना देखा। उन्होंने एक संपन्न फार्मास्युटिकल व्यवसाय का निर्माण किया, भारत का पहला कपड़ा सहकारीअनुसंधान – (अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीस रिसर्च एसोसिएशन- अतिरा) खोला; पहला बाजार अनुसंधान संगठन- ऑपेरशनस रिसर्च ग्रुप (ORG) बनाया, अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM-A) की नींव रखी। इन सब व्यवसाय सम्बंधित कार्य के साथ-साथ उन्होंने कॉस्मिक किरणों में अनुसंधान किया और परमाणु ऊर्जा आयोग का नेतृत्व किया।
इन्होंने कुल 40 संस्थान खोले एवं 86 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे। कैसे एक व्यक्ति, छोटे से जीवन काल में इतने विविध क्षेत्रों में नेतृत्व कर के जमीनी परिवर्तन ला सकता है। विक्रम एक वैज्ञानिक, एक अन्वेषक, उद्योगपति और एक दूरदर्शी का दुर्लभ मेल थे। उनमें निरंतर कड़ी मेहनत और बहुर्मुखी कार्य करने की उल्लेखनीय क्षमता थी। वे अतीत का सम्मान करते लेकिन परंपराओं को अनदेखा करने या चुनौती देने के लिए सदा तत्पर रहते। वे इतने साहसी थे कि मुखर बहुमत के बावजूद भी अपने कोर विज़न और प्रमुख सिद्धांतों के प्रति दृढ़ रहते। उदाहरण के लिए वे परमाणु हथियारों पर ‘अलोकप्रिय’ विचार रखने से नहीं कतराते थे। लेकिन समझौता करना भी उनकी फितरत में शरीक था। उन्होंने स्वतन्त्रता की नई रश्मियों में आँखें खोलते भारत को विकास के मार्ग पर संचालित किया। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो, की स्थापना की और 1 963–1971 तक वे इसके चेयरमैन रहे। इसलिए उन्हें भारत के स्पेस प्रोग्राम का जनक भी कहा जाता है। अपने इन संस्थानों से विक्रम साराभाई की बस एक ही आशा थी कि भारत देश में भरपूर सुख समृद्धि लाने में वे मदद कर सकें। उन्होंने प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिकों के विकास में सहयोग दिया। विक्रम की दृष्टि अभी भी भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम को दिशा देती है और आज भी भारत के परमाणु कार्यक्रम को प्रेरित करती है।


ऐसे बहुमुखी और विलक्षण प्रतिभा के धनी विक्रम का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद के एक समृद्ध व्यवसायी परिवार में हुआ। उनके पिता अंबालाल सराभाई और माँ सरला देवी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पक्षधर थे। कहते हैं कि दो वर्ष के बालक विक्रम को देख कर गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि यह बालक विलक्षण होगा। आठ भाई -बहन वाले घर में विक्रम बचपन से ही जाँबाज़ और वैज्ञानिक अभिरुचियों वाले थे। वे साइकिल पर कलाबाज़ियाँ करते और छोटे-छोटे वैज्ञानिक परीक्षणों में लगे रहते। गणित तथा भौतिकी उनके अतिप्रिय विषय थे। विक्रम बचपन से लोकप्रियता के शौक़ीन, मस्त मौला बालक थे। 1934 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद विक्रम ने गुजरात कॉलेज, अहमदाबाद से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। 1937 में विक्रम इंग्लैंड चले गए और 1940 में उन्होंने कैंब्रिज से गणित और भौतिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध की छाया गहरा रही थी और वे इंग्लैंड से भारत लौट आए। स्वदेश लौटने पर उन्होंने बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science) में काम करना शुरू किया और नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी वी रमन के मार्गदर्शन में ब्रह्मांडीय किरणों (कॉस्मिक रेज़) पर शोध करने लग गए। वे 1945 में पुन: केम्ब्रिज गए और उन्होंने “Cosmic Ray Investigations in Tropical Latitudes” पर अपनी रिसर्च थीसिस लिखी। 1947 में इस अनुसंधान के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्हें पीएचडी की उपाधि मिली। 1947 में विक्रम ने भारत में अंतरिक्ष विज्ञान के अनुसंधान के लिए, अपने आवास पर ही भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की नींव रखी। पीआरएल में कॉस्मिक किरणों और ऊपरी वायुमंडल पर शोध किया जाने लगा। बाद में डॉ विक्रम के सुझाव पर भारत सरकार ने गुलमर्ग की चोटियों पर आधुनिक उपकरणों से लैस एक प्रयोगशाला की स्थापना करी।
1942 में विक्रम का विवाह नृत्यांगना मृणालिनी स्वामीनाथन से हुआ। दोनों ने मिल कर नृत्य अकादमी ‘दर्पण’ की स्थापना की। इनके पुत्र एवं पुत्रियों ने भी अपने कार्यक्षेत्रों में दक्षता हासिल की है।अति विशिष्ट प्रतिभा से संपन्न इस परिवार के हर व्यक्ति को भारत सरकार के सर्वोच्च सम्मान मिले हैं।1962 में विक्रम को डॉ शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में 1966 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण प्रदान किया गया। 1972 में डॉ विक्रम साराभाई को मरणोपरांत पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। मृणालिनी जी को 1965 में पदमश्री और1992 में पद्मभूषण मिला। विक्रम के पुत्र कार्तिकेय दुनिया के अग्रणी पर्यावरणविद हैं। उनको 2012 में पद्मश्री मिला। विक्रम की बेटी मल्लिका जो की एक नृत्यांगना और एक्टिविस्ट है, उनको पदमभूषण से सम्मानित किया गया है।
अब आगे बढ़ते हैं विक्रम की कहानी पर। भारत के राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम को विक्रम साराभाई ने मेंटोर किया। कलाम के शब्दों में साराभाई अनोखे थे और कार्यक्षेत्र के सबसे कनिष्ठ व्यक्ति को भी प्रेरित करने की क्षमता रखते थे। वे लोगों की बात सुनने को सदा तैयार रहते। भारतीय संस्थानों की सामान्य तानाशाह प्रवृत्ति के विपरीत, डॉ साराभाई युवा, अनुभवहीन इंजीनियरों पर भी काफी भरोसा रखते। वे उन्हें बड़े स्वप्न, बड़ी दृष्टि का हिस्सा बना कर परिश्रम करने को प्रेरित करते। वे युवा पीढ़ी को नेतृत्व के लिए तैयार करते। उनमें टीम बनाने की अद्भुत क्षमता थी। नौकरी के लिए सही व्यक्ति को चुनने के लिए उनके पास एक विशेष कौशल था। हार होने पर भी विक्रम जल्दी से घबराते नहीं थे, सबसे खराब परिदृश्य में भी वे रौशनी की किरण ढूँढते, टीम की प्रशंसा करते, कार्य क्षेत्र में निहित तनाव को कम करने के लिए हास्य का उपयोग करते। लोग उनके साथ जुड़ते तो लम्बे समय तक जुड़े रहते।
विक्रम साराभाई एक महान दूरदर्शी थे। डॉ कलाम बताते हैं कि डॉ साराभाई दो रेंडम विचारों को आपस में जोड़ सकते थे। उन्होंने भारत के अपने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के निर्माण और साथ ही एक रॉकेट-असिस्टेड टेक-ऑफ सिस्टम (RATO) बनाने की कल्पना की। RATO सैन्य विमानों को सबसे प्रतिकूल इलाके से भी उड़ान भरने में सक्षम बनाएगा। यह उनकी दृष्टि के कारण था कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम किसी अन्य राष्ट्रों का पिच्छ्लग्गू नहीं बना। विक्रम हमेशा ‘वास्तविक जीवन की समस्याओं को कम करने के लिए उन्नत तकनीकों’ को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करते रहे।
1960 के दशक की शुरुआत में भी, जब कोई मोबाइल फोन नहीं था, कोई कंप्यूटर नहीं था और कोई इंटरनेट नहीं था, उस समय साराभाई वैश्विक स्तर पर जुड़े हुए थे। वे फोन उठा कर किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति को कॉल कर सकते थे। उनकी व्यापारिक समृद्धि और परिवार के स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति मैत्री के चलते ररवींद्रनाथ ठाकुर से ले कर महात्मा गांधी से उनके अच्छे सम्बन्ध थे। 1961 में, विक्रम को अमेरिकी उपग्रह एक्सप्लोरर -II से टेलीमेट्री सिग्नल प्राप्त करने के लिए नासा से उपकरण मिले। इस प्रकार वह उपग्रह से लाइव सिग्नल प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बन गए। अपने समय के सबसे प्रभावशाली लोगों के साथ उनकी निकटता थी – सी.वी. रमन और जवाहरलाल नेहरू, ब्रूनो रॉसी, लुई कान और जॉन रॉकफेलर।


विक्रम का चुंबकीय व्यक्तित्व नेतृत्व करने के लिए ही बना था। साराभाई परिवार का व्यवसाय सँभालते हुए विक्रम ने देश के वस्त्र उद्योग की तकनीकी समस्याओं का हल निकालने के लिए अहमदाबाद में” टेक्स्टाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसिएशन “की स्थापना की। एक अन्य व्यावसायिक रिसर्च “ऑर्ग”( ORG) की स्थापना का उद्देश्य भारत में सांख्यिकीय और मात्रात्मक विश्लेषण तकनीकों और ऑपरेशन रिसर्च जैसे विश्लेषणात्मक उपकरणों के साथ-साथ व्यवसाय प्रबंधन में योजना, समस्या समाधान और निर्णय लेने के लिए आधुनिक कंप्यूटिंग सिस्टम के अनुप्रयोग को लाना था। वह प्रतिस्पर्धी बाजारों में विश्वास करते थे, बहुलवाद और समानता की जमकर वकालत करते थे।
भारत ने जब अंतरिक्ष में जाने का फैसला किया तब 1962 में भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) की स्थापना की गई। दूरदर्शी डॉ विक्रम साराभाई के नेतृत्व में, INCOSPAR ने ऊपरी वायुमंडलीय अनुसंधान के लिए तिरुवनंतपुरम में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की। थुम्बा मछली पकड़ने वाला क्षेत्र था और वहां के पादरी ने ईसाई मछुआरों को इस काम में मदद करने की प्रेरणा दी।
21 नवम्बर, 1963 को वहाँ से 2-स्टेज अमरीकी साउंडिंग रॉकेट नाइकी अपैची के प्रक्षेपण (लांच) से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। रॉकेट के हिस्सों को बैलगाड़ी और साइकिल की मदद से असेम्बली स्थान पर ला कर एक चर्च में उन हिस्सों को जोड़ा गया। आज इस चर्च को एक स्पेस म्यूज़ियम में बदल दिया गया है। थुम्बा विश्व का पहला इक्विटोरिअल लांच साइट था। इस कार्यक्रम में ए पी जे अब्दुल कलाम भी शामिल थे। इसके करीब 12 वर्ष बाद, 1975 में विक्रम साराभाई के दिखाए गए रास्ते पर चलकर भारत ने अपनी पहले सैटलाइट ‘आर्यभट्ट’ को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष भेजा। विक्रम का विश्वास था कि सामजिक क्रांति और ख़ुशी शिक्षा से ही संभव है, इसलिए उन्होंने नासा से डिरेक्ट टू होम टेलीविज़न की सर्विस के अनुबंध किया। यह कदम ब्रॉडकास्टिंग और कम्युनिकेशन में एक क्रांति ले कर आया। उन्होंने श्रीहरी कोटा में “सतीश धवन स्पेस सेंटर ” की स्थापना की।

विक्रम साराभाई ने राष्ट्र के विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका और महत्व को पहचानते हुए ‘इसरो’ की स्थापना की। इसरो विकास की कर्मभूमि के रूप में कार्य करने लगा। इसरो ने राष्ट्र को अंतरिक्ष आधारित सेवाएं प्रदान करने और स्वतंत्र रूप से प्रौद्योगिकियों को विकसित करने को अपना मिशन बनाया। तब से अब तक इसरो ने आम आदमी की सेवा में, राष्ट्र की सेवा के लिए अपने मिशन को बरकरार रखा है। इस प्रक्रिया में, यह दुनिया की छह सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक बन गई है। इसरो संचार उपग्रहों (इनसैट) और रिमोट सेंसिंग (आईआरएस) उपग्रहों के सबसे बड़े बेड़े में से एक का रखरखाव करता है, जो क्रमशः तेज और विश्वसनीय संचार और पृथ्वी अवलोकन की बढ़ती माँग को पूरा करते हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद परमाणु ऊर्जा एक बहुत बड़ी जरूरत बन गयी थी। हर देश चाहता था कि उनके पास न्यूक्लियर प्लांट हो ताकि वह पर्याप्त ऊर्जा पा सके। भारत में डॉ होमी भाभा इस विषय पर काम कर रहे थे। उन्होंने भारत को एक न्यूक्लियर ताकत बनाने का सपना देखा था। विक्रम साराभाई होमी भाभा की उपलब्धियों से काफी प्रभावित थे। वह भी जानते थे कि किसी भी देश के लिए आज परमाणु ऊर्जा एक उज्जवल भविष्य का रास्ता है। 1966 में डाक्टर होमी जहाँगीर भामा के गुजरने पर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने विक्रम साराभाई को एटॉमिक एनर्जी कमीशन आफ इंडिया के चेयरमैन पद पर नियुक्त किया। यह चुनाव आसान नहीं था और होमी भाभा के साथ काम कर रहे कई वैज्ञानिक इससे नाराज़ हुए। परन्तु विक्रम हर चुनौती को अवसर की तरह देखते और कुछ पुख्ता करने की धुन में रहते। विक्रम को यहाँ विरोध का भी सामना करना पड़ा क्योंकि वे परमाणु हथियार के पक्ष में नहीं थे। 1960 के दशक के अंत में भारत के परमाणु विस्फोट की ओर उनके मजबूत प्रतिरोध ने एक शक्तिशाली लॉबी और साथी प्रौद्योगिकीविदों को आमने-सामने खड़ा कर दिया था।
होमी भाभा के कार्यों को आगे बढ़ाते हुए विक्रम साराभाई ने भारत में न्यूक्लियर प्लांट का निर्माण शुरू किया। उनका सपना था कि इन न्यूक्लियर प्लांट के निर्माण से भारत का हर एक कोना रोशन हो जाए। विक्रम ने काळपक्क्म में ब्रीडर रिएक्टर लगवाया और यूरेनियम कार्पोरेशन आफ इण्डिया की शुरुआत की।


यह डॉ. विक्रम साराभाई ही थे, जिन्होंने भारत में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (एफ बीआर) की अनिवार्यता और जटिलता को पहचाना और देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के दूसरे चरण को क्रियान्वित किया। इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने रिएक्टर इंजीनियरिंग, सामग्री, रसायन विज्ञान, रिप्रोसेसिंग यानि पुन: प्रसंस्करण, सुरक्षा, इंस्ट्रूमेंटेशन – उपकरण और अन्य संबद्ध विषयों में वास्तव में अंतःविषय (इंटरडिसिप्लिनरी) अनुसंधान के लिए एक रोड मैप बनाया। इसके कारण अंततः रिएक्टर अनुसंधान केंद्र की स्थापना हुई, जिसे बाद में ‘इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र ‘ (आईजीसीएआर) का नाम दिया गया।
विक्रम परमाणु ज्ञान का प्रयोग मानव हित के लिए करना चाहते थे, परमाणु शक्ति प्रदर्शन में उनकी कोई रूचि नहीं थी। यूनाइटेड नेशंस ने उन्हें अपनी कमिटी आफ एटॉमिक रिसर्च एंड आउटर स्पेस का साइंटिफिक चेयरमैन घोषित किया। डॉ विक्रम साराभाई सन् 1970 में वियेना शांति अंतर्राष्ट्रीय मंच के14वीं परिषद के प्रमुख बने थे। सन् 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ परिषद के उपाध्यक्ष तथा बाद वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बने।
विक्रम साराभाई दिन में 17-18 घंटे काम करते और अधिकतर दौरे पर रहते। उनका समय अहमदाबाद, बॉम्बे, नई दिल्ली, त्रिवेंद्रम और मद्रास और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के बीच बँट जाता। उनकी तबीयत पर इसका असर पड़ने लगा था। उनके गुरु सी वी रमन उनको कहते कि विक्रम तुम मोमबत्ती के दोनों सिरे जला रहे हो, थोड़ा आराम करो।
दिसंबर, 1971 में वे त्रिवेंद्रम के लॉन्चिंग स्टेशन चुम्बा में कार्य का निरीक्षण करने गए थे। वहाँ होटल में हद्दय गति के रुकने के कारण इनकी मृत्यु हो गई। 30 दिसंबर, 1971 को केवल बावन (52) वर्ष की अल्पायु में इस महान प्रणेता ने अपनी अंतिम साँसें लीं।
विक्रम साराभाई उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिन्होंने भारत को एक वैश्विक स्थान दिलाने का सपना देखा। ये उनकी कोशिशों का नतीजा ही है कि आज भारत सिर्फ चाँद नहीं बल्कि मंगल ग्रह तक पहुँच चुका है। भारत के निर्माण में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। वे भारतीय वैज्ञानिक और औद्यौगिक चेतना का एक चमकता सितारा हैं!

चित्र : भारत के चार बड़े वैज्ञानिक स्तम्भ : शांति स्वरुप भटनागर, होमी जहाँगीर भाभा, सी वी रमन और विक्रम साराभाई।

शार्दुला नोगजा

सिंगापुर

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