Bharat ke mahanayak/telanga kharia/dr uma singh kislay

वीर महापुरुष तेलंगा खड़िया

“धन्य हुई मिट्टी हमारी
जहां सूर्य किरण सा चमका तेलंगा
अंग्रेजों से लोहा ले
आजादी का मार्ग दिखाया तेलंगा ”

सोने की चिड़िया कहलाने वाले हमारे देश भारत ने लगभग एक हजार साल की गुलामी झेली । हमारी संस्कृति एवं प्राकृतिक परिवेश, हमारी राजसी ठाठ बाट, राज वैभव एवं आर्यव्रत संस्कृति ने जिस अखंड भारत का विस्तार किया वह विशिष्ट एवं अनुकरणीय है। बीती शताब्दियों की फेरहिस्त देखें तो अफगानिस्तान, नेपाल ,भूटान, कंबोडिया, इंडोनेशिया ,थाईलैंड ,बांग्लादेश, पाकिस्तान यह सब हमारे देश का कभी हिस्सा रहे थे। आज वैश्विक नक्शे पर ये अलग राष्ट्र के रूप में दिखाई देते हैं । भारतीय सीमाओं में धीरे -धीरे जब विदेशी शासकों ने प्रवेश किया तो पहले पुर्तगाली, फिर मंगोल, फिर मुगल साम्राज्य और व्यापारिक नीतियों के साथ अंग्रेजों ने भारत को अपना गुलाम बनाया। एक लंबी गुलामी की गिरफ्त से मुक्ति का पहला प्रयास सन 1857 की क्रांति को जाता है ।

इतिहासकारों की माने तो देश के लगभग हर कोने में लोगों के अंदर बगावत घर कर रही थी ।अंग्रेजों की नई- नई नीतियां और दमनकारी शासक व्यवस्था लोगों के अंदर विद्रोह पैदा कर रही थी। भारतीय छोटा नागपुर पठारी क्षेत्र में जंगल ,खेत ,पहाड़ जमीन को पूजने वाली आदिवासी जनजाति समूह ने भी सक्रियता दिखाते हुए अंग्रेजों से लोहा लेने की शुरुआत की। तेलंगा खड़िया से पहले तिलका मांझी ,बुधु भगत और बाद में शेख भिखारी और गणपत राय जैसे सेनानी, उमराव सिंह टिकैत, विश्वनाथ शाहदेव, नीलाम्बर-पीताम्बर जैसे वीर, नारायण सिंह, जतरा उरांव, जादोनान्ग, रानी गाइडिन्ल्यू और राजमोहिनी देवी जैसे नायक नायिकाएँ, ऐसे कितने ही स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान कर आज़ादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया।

सन 1857 की क्रांति से पहले ही इस क्षेत्र के आदिवासी लोगों ने धीरे-धीरे विद्रोह आरंभ कर दिया था जिसमें तेलंगा खड़िया का नाम सूर्य के प्रकाश के समान उभरा। इनका जन्म 9 फरवरी 1806 गुमला के सिसई के अंतर्गत मुर्गू गांव में हुआ । इनका सरना धर्म प्रति प्रेम अटूट था, इन्होंने अपना संगठन बनाया जिसका नाम “जुड़ी पंचायत” रखा। यह अखाड़ा में प्रशिक्षण देते थे जहां हत्यारे बोधन सिंह ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इनकी समाधि स्थल को “तेलंगा तोपा डांड” कहा जाता है तथा 23 अप्रैल को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आजादी मिलने से पहले भारत के लगभग हर प्रांत ,हर कोने में अंग्रेजों के अत्याचार से जनता त्रस्त थी इसलिए लगभग हर जगह बगावत का बिगुल बज रहा था। छोटा नागपुर पठार के आदिवासी जनजाति भाला, तलवार और तीरंदाजी में निपुण थी । सन 1849-50 में भारतवर्ष में अंग्रेजों का शासन चरम पर था। जहां आए दिन शोषण और अत्याचार की घटनाएं घटती रहती थी। उन दिनों छोटा नागपुर पठार के लोग ही नहीं पूरा भारत वर्ष अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से त्रस्त था परंतु आपसी एकजुटता का अभाव होने के कारण अंग्रेजों का बल दिन-ब-दिन बढ़ता चला जा रहा था।” फूट डालो और शासन करो की नीति” के साथ अंग्रेज अपनी ताकत फैला रहे थे, जो तेलंगा को सहन नहीं होती थी । वह अपने पिता के साथ कभी कभार महाराज के दरबार में जाया करते थे जिसके कारण उन्हें सामाजिक कार्य की साधारण जानकारी होती रहती थी । अंग्रेजों का विरोध के लिए आपसी एकजुटता अनिवार्य थी इसलिए उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों के साथ संपर्क करना प्रारंभ किया ताकि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सके ।जगह-जगह जूरी पंचायत का गठन करके उन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए बीज बोना शुरु कर दिया । उनकी ईमानदारी ,सत्यवादिता ,
साहस व हथियार चलाने की कला लोगों को आकर्षित करने लगी। खड़िया भाषा में लिखे लोकगीतों में उनके नाम और गुणों की प्रशंसा होने लगी। तिलंगा की तलवारबाजी अंग्रेज के राइफल और बंदूक से निकलने वाली गोली को भी रोक दिया करते थी । उनके जूरी पंचायत अभियान से लोग जुड़ने लगे और देखते ही देखते तेलंगा के बहुत से अनुयाई बना ली। तिलंगा के संगठनात्मक कार्य से अंग्रेजों की नींद हराम होने लगी और उन्होंने उन्हें पकड़ने के आदेश जारी कर दिया ।

लोगों के बीच तेलंगा के व्यक्तित्व से जुड़ी बातें खड़िया भाषा में लोकगीतों के रूप में उभर कर आई। जिसमें खड़िया भाषा में लिखा इसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार से है-

” किधर से सूर्य की किरण जैसा निकला तिलंगा
सब आदमी का रक्षा किया (तिलंगा)
मुरगु गांव से सूर्य की किरण जैसा निकला तिरंगा
सब आदमी का रक्षा किया( तिलंगा)

ऐसे अनेक गीत लोगों ने तिरंगा खड़िया से जुड़े गाए। उनके साहस को प्रतीक मानकर लोगों ने उसका गुणगान किया। अंग्रेजों से संघर्ष, आजादी के आंदोलन में सभा- संवाद के द्वारा उनकी देशभक्ति और अंग्रेजों की खिलाफत उजागर होती है।

गुमला जिला के बसिया थाना के कुम्हारी गांव में जुरी पंचायत का गठन करने के लिए तेलंगा एक अभियान में शामिल हुए थे। उसी गांव के जमींदार दलालों ने पुलिस को सूचना दी और उसी समय अंग्रेज पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और कोलकाता जेल भेज दिया गया। तब तक तो उन्होंने छोटानागपुर क्षेत्र के कई गांव में जुरी पंचायत का गठन कर दिया था जो अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। लोगों में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश था और वे छिप कर ही आंदोलन कर रहे थे। तेलंगा के साहस और वीरता लोगों के लिए इतनी प्रभावशाली हो गई कि उन्होंने अपने गांव के बाग, बगीचे ,बांध, गांव सब के साथ तिलंगा नाम जोड़ दिया ।

सन 1880, 23 अप्रैल का दिन था कोलकाता जेल से छूटने के बाद तेलंगा ने अपने जूरी पंचायत के लोगों को इकट्ठा किया था। लोग धीरे-धीरे इकट्ठे हो रहे थे। सभा को संबोधित करने से पहले अखाड़े में नियमानुसार तीर, तलवार, गढ़का एवं लाठी सिखाने के पहले झंडे के पास घुटना टेक एवं सिर झुकाकर धरती माता ,सरना माता, सूर्य भगवान, महादान देव एवं अपने पूर्वजों का नाम लेकर प्रार्थना कर रहे थे। लोगों की भीड़ भी वहां इकट्ठा थी। उसी समय एक कुख्यात प्रवृत्ति वाले अंग्रेजों का दलाल बोधन सिंह ने तेलंगा खड़िया को अपनी गोलियों का निशाना बनाया और उनके प्राण निकल गए । लोगों ने तत्परता दिखाई और तेलंगा खड़िया के शव को उठाकर तुरंत घनघोर जंगल की ओर कोयल नदी के पास ग्राम सोसो में ले गए और वही उनका अंतिम क्रिया कर्म कर दिया ।इस बारे में अंग्रेजों को भनक तक नहीं लगने दी। तेलंगा की मृत्यु ने लोगों को बहुत आहत किया । जो अभियान तेलंगा द्वारा प्रारंभ किया गया था उसने और अधिक गति पकड़नी प्रारंभ कर दी। 1806 में जन्मा यह सितारा अपने अनुकरणीय व्यक्तित्व की छाप छोड़ कर लगभग 74 साल की आयु जी धरती से अलविदा कह दिया कह गया । खड़िया भाषा में लिखे लोक गीत की पंक्तियां सार्थक हो जाती हैं

“तुम्हारा नाम तिलंगा दुनिया में मशहूर हो गया है,
तुम्हारा नाम अमर रहेगा तेलंगा
सूर्य चांद धरती रहने तक तिलंगा
तुम्हारा नाम अमर रहेगा तिलंगा”

वीर पुरुषों के व्यक्तित्व सदैव अनुकरणीय होते हैं। इनके जीवन ,इनके संघर्ष एवं समाज को एकजुट करके आगे बढ़ने की नीति, दुष्ट दुराचारियों की मानसिकता से लोगों को आजाद दिलाने की प्रवृत्ति सदैव संघर्ष करती है। यह अपने प्राण जरूर त्यागते हैं परंतु कर्म की वंदना इन्हें सदैव अमर कर जाते हैं।

“संघर्ष नहीं होता है घायल
मातृ प्रेम करता है पागल
जाते जाते कह गया तिलंगा
अपनी मिट्टी का मैं कायल”

डाॅ उमा सिंह किसलय
गुजरात, भारत

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