जेआरडी टाटा
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा का जन्म 29 जुलाई उन्नीस सौ चार को पेरिस, फ्रांस में हुआ । वे रतनजी दादाभाई टाटा और उनकी फ्रांसीसी पत्नी सुजैन ब्रीएयर की दूसरे संतान थे। उनके माता-पिता की कुल 5 संतानें थीं। जिसमें जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा दूसरे नंबर पर थे। उन्होने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथेडरल और जॉन कोनोन स्कूल मुंबई से ग्रहण की और इसके पश्चात वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ‘कैंब्रिज विश्वविद्यालय’ चले गए। उनकी माताजी फ्रांसीसी थी इसलिए उनके बचपन का ज्यादातर वक्त फ्रांस में बीता । उन्होंने फ्रांसीसी सेना में एक वर्ष का अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण भी प्राप्त किया और सेना में कार्य करते रहना चाहते थे पर उनके पिता की इच्छा कुछ और थी इसलिए उन्हें सेना छोड़ना पड़ा ।
सन 1925 मे वे अवैतनिक प्रशिक्षु के रूप में टाटा एंड संस कंपनी का हिस्सा बने उनके कार्य को देखते हुए ही कुछ वर्षों बाद यानी 1938 में उन्हें टाटा एंड संस के अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया। उनकी अध्यक्षता में टाटा समूह की संपत्ति $100000 से बढ़कर 5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई। उन्होंने 1945 में टाटा कंप्यूटर सेंटर और टाटा मोटर्स की स्थापना की । उन्होंने इंजीनियरिंग क्षेत्र में कार्यरत टाटा समूह की कंपनियों का निर्देशन किया। उन्होंने अपने नेतृत्व की शुरुआत की थी। जो आगे बढ़कर एक विशाल समूह बन गया था। 1945 में जमशेदपुर में टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव की स्थापना की जिसे आज टाटा मोटर्स के नाम से जाना जाता है ।जेआरडी टाटा जब 14 साल की उम्र के थे तभी से शौकिया तौर पर हवाई जहाज उड़ाते थे।
जेआरडी टाटा भारत में पायलट लाइसेंस पाने वाले प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने 1929 में पायलट का लाइसेंस हासिल किया । सन 1948 में इंडिया इंटरनेशनल की शुरुआत की ।यह पश्चिमी देशों के लिए उड़ान भरने वाली एशिया की पहली इंटरनेशनल फ्लाइट थी । आजादी मिलने के बाद सरकार ने एयर इंडिया के 49% शेयर खरीद लिए। साल 1953 में सभी नौ निजी हवाई कंपनियों का इंडियन एयरलाइंस में विलय कर दिया गया। इसके बाद एयर इंडिया की सरकार के नियंत्रण वाली कंपनी बन गई। जेआरडी टाटा के लिए यह बहुत बड़े झटके की तरह था, लेकिन उन्हें एयर इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। साल 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और उन्होंने जेआरडी टाटा को एयर इंडिया से बाहर निकाल दिया। वे लंबे वक्त तक एयर इंडिया से जुड़े रहे और एयर इंडिया की बेहतरी के लिए काम करते रहे। टाटा ने महाराजा को उसका पुराना गौरव लौटाने के लिए व्यापक योजना बनाई है। आने वाले दिनों में एयर इंडिया अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। सच्चाई यह भी है कि एयर इंडिया के विमान पुराने पड़ चुके हैं और उसे सरकारी कार्यशैली से बाहर निकालना भी टाटा के लिए बड़ी चुनौती है।सरकार ने टाटा एयरलाइंस की 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के 5 साल बाद साल 1953 में एयर कॉरपोरेशन कानून बनाया और टाटा एयरलाइंस अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली। बाद में सरकार ने इसका नाम बदलकर ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल’ कर दिया। वे ५० वर्ष से अधिक समय तक , सन् 1932 में स्थापित सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी थे। उनके मार्गदर्शन में इस ट्रस्ट ने राष्ट्रीय महत्व के कई संस्थनों की स्थापना की , जैसे टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टीआईएसएस, 1936),टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान( टीआईएफआर, 1945), एशिया का पहला कैंसर अस्पताल, टाटा मेमोरियल सेंटर और प्रदर्शन कला के लिए राष्ट्रीय केंद्र।
जेआरडी टाटा के पास नीले रंग की बुगाती कार हुआ करती थी जिसमें मडगार्ड और छत नहीं होते थे।
एक दिन उन्होंने उस कार का पैडर रोड पर एक एक्सिडेंट कर दिया और पुलिस ने उनके खिलाफ़ एक केस दर्ज कर लिया।
इससे बचने के लिए वो उस समय बंबई के चोटी के क्रिमिनल वकील जैक विकाजी के यहाँ गए जहाँ उनकी मुलाकात विकाजी की सुंदर भतीजी थेली से हुई।कुछ समय बाद दोनों ने विवाह कर लिया।
सन् १९५३ में भारत सरकार ने उन्हें एयर इंडिया का अध्यक्ष और इंडियन एयरलाइंस के बोर्ड का निर्देशक नियुक्त किया। वे इस पद पर २५ साल तक बने रहे। जेआरडी टाटा ने अपने कम्पनी के कर्मचारियों के हित के लिए कई नीतियाँ अपनाई। सन् १९५६ में, उन्होंने कंपनी के मामलों में श्रमिकों को एक मजबूत आवाज देने के लिए ‘प्रबंधन के साथ कर्मचारी एसोसिएशन’ कार्यक्रम की शुरूआत की।उन्होंने प्रति दिन आठ घंटे काम , नि: शुल्क चिकित्सा सहायता, कामगार दुर्घटना क्षतिपूर्ति जैसी योजनाओं को अपनाया।
जेआरडी टाटा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भारतीय वायु सेना ने उन्हें ग्रुप कैप्टन की मानद पद से सम्मानित किया था और बाद में उन्हें एयर कमोडोर पद पर पदोन्नत किया गया और फिर १ अप्रैल १९७४ को एयर वाइस मार्शल पद दिया गया। विमान के लिए उनको कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया । मार्च १९७९ में टोनी जेनस पुरस्कार ,सन् १९९५ में फेडरेशन ऐरोनॉटिक इंटरनेशनेल द्वारा गोल्ड एयर पदक,सन् १९८६ में कनाडा स्थित अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन द्वारा एडवर्ड वार्नर पुरस्कार और सन् १९८८ में डैनियल गुग्नेइनिम अवार्ड। सन् १९५५ में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनके नि: स्वार्थ मानवीय प्रयासों के लिए ,सन् १९९२ में जेआरडी टाटा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
इतने बड़े महानायक होने के बावजूद भी वह बहुत ही साधारण और ज़मीन से जुड़े हुए थे । उनके बारे में बताते हुए
दिलीप कुमार ने अपनी बायोग्राफी में लिखा, ‘जब मैं अपने करियर की बुलंदी पर था, तब मैं एक बार एयर इंडिया से सफर कर रहा था। मेरे पास की सीट में एक बुजुर्ग शख्स बैठे थे, जो एक दम साधारण पैंट और शर्ट पहने हुए थे। उनको देखकर लग रहा था कि वो मिडिल क्लास परिवार से हैं, लेकिन अच्छे पढ़े- लिखे हैं। फ्लाइट के बाकी यात्री मुझे पहचान गए थे लेकिन ये शख्स मेरी मौजूदगी से बेखबर थे। वो अखबार पढ़ रहे थे और खिड़की से बाहर देख रहे थे, वहीं जब चाय आई तो उन्होंने एक दम शांति से चाय पी। ऐसे में उनसे बातचीत शुरू करने के लिए मैं मुस्कुराया, तो उन्होंने भी मुझे देख कर स्माइल की और हैलो कहा । आगे दिलीप कुमार ने लिखा, इसके बाद हमारे बीच बातचीत शुरू हुई और फिर फिल्मों का मुद्दा आया तो मैंने कहा- क्या आप फिल्में देखते हैं? इस पर शख्स ने जवाब देते हुए कहा- हां, थोड़ी बहुत। मैंने कई साल पहले एक देखी थी। इसके बाद मैंने कहा कि मैं फिल्मों में काम करता हूं। तो उन्होंने कहा- ये तो बहुत अच्छा है, आप क्या करते हैं? तो मैंने कहा- जी मैं अभिनेता हूं। इस पर उस शख्स ने कहा- अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है।’
इसके बाद जब फ्लाइट का सफर खत्म हुआ तो मैंने हाथ बढ़ाते हुए उस शख्स से कहा- आपके साथ सफर करके अच्छा लगा, वैसे मेरा नाम दिलीप कुमार है। इसके बाद उस शख्स ने मुझसे मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया और कहा- धन्यवाद, आपसे मिलकर अच्छा लगा… मैं जेआरडी टाटा हूं।’ अपनी बायोग्राफी में इस किस्से को शेयर करते हुए दिलीप कुमार ने लिखा, ‘उस दिन मुझे समझ आया कि कोई फर्क नहीं पड़ता आप कितने बड़े हैं, क्योंकि हमेशा कोई न कोई आपसे बड़ा मौजूद रहेगा। हमेशा विनम्र रहें…।
ये रतन टाटा के रतन हैं जिन्होंने रतन टाटा को रतन टाटा बनने प्रेरित किया । इनकी धर्मपत्नी जब कैंसर से जूझ रही थी तब इन्होंने पहला कैंसर हॉस्पिटल बनवाया जिसे आज भी आधूनिक भारत मे प्रेम की निशानी के रूप में देखा जाता हैं। इन्होंने होमी भाभा के साथ मिलकर देश का पहला रिसर्च सेंटर स्थापित किया । यही वह व्यक्ति थे जिन्होंने कर्मचारियों के पक्ष मे सोचा और कार्य के लिए लिए निश्चित 8 घंटे तय किए। देश मे कर्मचारियों के लिए निर्वाह निधि या भविष्य निधि की योजन भी इन्हीं के द्वारा प्रस्तावित की गई थी। जेआरडी टाटा द्वारा स्थापित कंपनी टीसीएस को 2021 मे नंबर 1 कंपनी का खिताब मिला । जेआरडी टाटा भारत देश को नई राह देने वाले व्यक्ति हैं ।
29 नवंबर 1993 को 89 वर्ष की आयु मे गुर्दे संक्रमण के कारण जिनेवा मे उनको स्वर्गवास हो गया । उन्हे पेरिस में पेरे लचास कब्रिस्तान में दफनाया गया ।
वेदिका मिश्रा
मध्यप्रदेश, भारत