भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू एक विशिष्ट व्यक्तित्व

यदि हम भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की समीक्षा करें तो पाते हैं कि देश को आजादी दिलाने में अनेक राजनेताओं, क्रांतिकारियों देशभक्तों ,रचनाकारों,लेखकों,पत्रकारों व साहित्यकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विभिन्न महान व्यक्तियों की असीम संख्या में जवाहरलाल नेहरु जी का विशिष्ट स्थान है ।यदि हम देश की आजादी की लड़ाई में नेहरू की भूमिका का मूल्यांकन करना चाहते हैं तो हमें नेहरू की पारिवारिक पृष्ठभूमि उनका बचपन उनकी शिक्षा-दीक्षा उनका बौद्धिक व मानसिक स्तर,उनका दृष्टिकोण तथा देश के प्रति समर्पण की भावना का समग्र अध्ययन करना होगा ।वस्तुतः देश की आजादी की लड़ाई में असंख्य देशवासियों की भूमिका रही है लेकिन नेहरू जी एक ऐसे राजनेता के रूप में उभर कर आते हैं जिनका प्रारंभिक जीवन कुछ इस प्रकार रहा है की कहा जा सकता है कि वे अपने मुंह में चांदी की चम्मच लेकर लेकर इस धरा पर अवतरित हुए थे।हमें पता है की आपके पिता श्री मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील थे तथा उनकी गिनती इलाहाबाद के रईस परिवारों में हुआ करती थी। कहा जाता है कि इलाहाबाद नगर में आने वाली पहली कार उनकी ही थी।इलाहाबाद का आनंद भवन जो आज नेहरू परिवार द्वारा देश को समर्पित कर दिया गया है में संरक्षित संग्रहालय नेहरू परिवार की विलासिता को परिलक्षित करता है।आजादी के आंदोलन के समय यह विशाल नेहरू भवन तत्कालीन बड़े बड़े राजनितिज्ञों की बैठकों का अड्डा बन गयाथा।महात्मा गांधी जी जब भी प्रयाग आते तो आनंद भवन में ही उनके रहने की व्यवस्था की जाती।इसके अतिरिक्त आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले आंदोलनकारियों का आश्रय स्थल भी बना रहा आनंद भवन।यहां एक गुप्त छापाखाना भी था जो समाचार पत्र प्रकाशित कर देश को आजाद कराने के लिए जनता से अपील करता था।

जब कभी प्रदर्शनकारियों पर ब्रिटिश पुलिस के सिपाही लाठी चार्ज करते तो घायल आंदोलनकारियों की प्राथमिक चिकित्सा भी यहां की जाती थी।आनंद भवन का भौगोलिक क्षेत्रफल जितना विशाल था उससे कहीं अधिक उस भवन के स्वामी नेहरू परिवार की उदारता व सदाशयता थी।धनाड्य परिवार की पृष्ठभूमि में पिता श्री मोती लाल नेहरू तथा माता स्वरूप रानी के घर जन्म लेने वाले जवाहर लाल नेहरू जी की परवरिश विलासितापूर्ण परिवेश में हुयी। नेहरू जी ने प्रयाग के आनंद भवन में निवास करते हुए समस्त विलासी सुविधाओं का उपभोग किया व उसके स्वाभाविक रूप‌ से अभ्यस्त भी हो गए।उन्हें बचपन से ही अध्ययन हेतु उच्च शिक्षण संस्थानों में भेजा गया ।उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु वे विदेश भी गए तथा वहां भी अमीर घराने के विद्यार्थी के रूप में ही स्थापित रहे।स्कूली शिक्षा लंदन के हैरो तथा कॉलेज शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज से प्राप्त करने के पश्चात आपने कैम्ब्रिज कैम्पस से लॉ की डिग्री पूर्ण की।बॉर एट ला की उपाधि लेकर जवाहर लाल नेहरू भारत लौटते हैं व 1912में कांग्रेस से जुड़ जाते हैं।1920 ई० में वे प्रतापगढ़ के पहले किसान मोर्चे में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।जब 1928में साईमन कमीशन का भारत में आगमन होता है तो कांग्रेस के आह्वान पर नेहरू जी साईमन कमीशन के विरोध में सड़क पर उतरकर आंदोलन प्रदर्शन करते हैं।पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किए जाने पर जवाहर लाल नेहरू जी घायल हो जाते हैं।पुन:1930के नमक आंदोलन में आप पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाते हैं तथा छ:महीने की जेल सजा भुगतकर रिहा किए जाते हैं।भारतीय स्वतत्रंता आंदोलन में खुलकर भागीदारी करने व ब्रिटिश सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने के कारण आप पुन:अल्मोड़ा की जेल में डाल दिए जाते हैं।अल्मोड़ा जेल में रहते हुए आपका लेखकीय मन आत्मकथा लिखने को प्रेरित करता है व आप कलम उठाकर लेखन प्रारम्भ करते हैं।आजादी के आंदोलन में आप अनेक बार जेल गए व कुल नौ साल से अधिक की अवधि का कारावास जीवन बिताया। जेल गए।जवाहर लाल छ:बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।(1929 लाहौर,1936 लखनऊ,1937 फैजपुर,1951 दिल्ली,1953 हैदराबाद तथा 1954 कल्याणी)l

आनंद भवन के धनाड्य परिवार का लाड़ला सदस्य होने के कारण उन्हें बचपन से ही समस्त प्रकार की तत्कालीन भौतिक सुविधाएं प्रदान की गईं थीं। कह सकते हैं की वे फूलों की सेज पर रहते हुए पले बढ़े व बड़े हुए। एक ऐसा युवा जो पढ़ने के लिए विदेश जाता है विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश वापस आता है तथा महात्मा गांधी जी के आव्हान पर देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़ता है।वह न केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में उभरते हैं वरन विभिन्न आंदोलनों में प्रतिभाग करने के कारण ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा जेल में भी डाल दिए जाते हैं। एक ऐसा व्यक्ति जो सदा मखमली कालीन पर चला हो जो सदा डनलप के गद्दे में सोया हो जिसने सदा चांदी के बर्तनों में भोजन किया हो जो सदैव उच्च कोटि के खाद्य पदार्थों का सेवन करता रहा हो,जिसने सदैव महंगे व साफ सुथरे कपड़े पहने हों। जो भोग विलास के चरम का उपभोग कर चुका हूं वह व्यक्ति देश की आजादी के लिए सहर्ष जेल जाना स्वीकार करता है। वह कारागार में भूमि शयन करता है। वह जेल के कैदियों की तरह साधारण कपड़े पहनता है।जेल में टूटे-फूटे बर्तनों में दिए जाने वाले अत्यंत साधारण स्तर के भोजन को ग्रहण करता है।वह जेल की कोठरी में कैदियों सा जीवन व्यतीत करता है। और यह सब इसलिए की उसके दिल में तड़प है देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने की। वह गुलाम भारत को स्वतंत्र देखना चाहता है। वह देश की स्वतंत्रता के लिए पुलिस व जेल कर्मियों की यात्रा यातना सहता है यंत्रणा सहता है।परेशानी व दुख में रहता है,कष्ट भोगता है। लेकिन नेहरू जी जेल की कोठरी में यूं ही निराशा में डूब कर मन मलिन नहीं करते। वरन वह लेखन करते हैं। उनके लिखे पत्र ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हो जाते हैं ।वह भारत की सांस्कृतिक, प्राकृतिक विरासत ,भारत के प्राकृतिक सौंदर्य, भारत की प्राचीन संस्कृति,भारत की अमूल्य थाती से अनुराग रखते हैं व उस पर सच्चे भारतीय की भांति गर्व करते हैं।वह भारत के विविधता में एकता के सूत्र को पिरोकर समग्र राष्ट्र को एकीकृत करने की तमन्ना रखता है।देश को आजादी मिलने के बाद जब यह प्रश्न उठता है की कौन देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनेगा तो सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा आचार्य कृपलानी जी के समर्थन में अधिक मत पड़ते हैं लेकिन गांधीजी देश की आजादी में नेहरू के योगदान को देखते हुए तथा न केवल योगदान को आधार मानते हुए वरन यह समझते हुए की राजनेताओं के समूह में नेहरू एक अकेले ऐसे व्यक्ति के रूप में खड़े नजर आते हैं जो कि केवल विदेशों के उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन का अनुभव लेकर अपने बौद्धिक स्तर से स्वत: ही विशिष्ट नजर आते हैं । जिनका मानसिक शैक्षणिक व तार्किक स्तर अत्यंत उच्च है। जिनके अनुभवों का लाभ लेकर स्वतंत्रता प्राप्त राष्ट्र को विकास के मार्ग पर आगे ले जाया जा सकता है । नेहरू जब स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनते हैं तो अपने उच्च स्तरीय चिंतन व्यापक दृष्टिकोण व खुली सोच के कारण देश की प्रगति के लिए नवीन मॉडल की संकल्पना करते हैं। वह देश की औद्योगिक, आर्थिक राजनीतिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक प्रगति के लिए के लिए शतत चिंतनशील रहते हैं।वह जब भाखड़ा नांगल जैसे बांध का उद्घाटन करते हैं तो घोषित करते हैं की इस प्रकार की जल विद्युत परियोजनाएं व बांध आधुनिक भारत के तीर्थ हैं। अर्थात भविष्य दृष्टा के रूप में वे संकल्पना करते हैं कि आने वाले समय में देश को ऊर्जा की आवश्यकता होगी तब इसी प्रकार के बांध बिजली परियोजनाएं बनाने की जरूरत महसूस होगी इसी प्रकार से देश के उद्योगपतियों पूंजी पतियों से वे आह्वान करते हैं की आप देश की आर्थिक प्रगति के लिए पूंजी निवेश कर अपना योगदान प्रदान करें। नेहरू जी ने कार्ल मार्क्स के साम्यवाद का भी गहन अध्ययन किया था किंतु वे उसके व्यवहारिक पक्ष से अधिक प्रभावित नहीं थे उनका मानना था कि व्यावहारिक स्तर पर साम्यवाद के स्थान पर समाजवाद कहीं अधिक उपयोगी व लाभकारी सिद्ध हो सकता है। नेहरू जी संपूर्ण विश्व में शांति के प्रबल समर्थक थे। उनका पंचशील का सिद्धांत दुनिया में शांति स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। नेहरू जी का चिंतन व बौद्धिक स्तर इतना अधिक व्यापक था की वह एक उच्च कोटि के विचारक,चिंतक ,राजनेता, कूटनीतिज्ञ, लेखक, साहित्यकार के रूप में विश्व स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाते हैं।

स्वतंत्र भारत के प्रथम बार प्रधानमंत्री बनने के बाद 27मई 1964निधन होने तक आप देश के प्रधानमंत्री पद के उत्तरदायित्वों का कुशलतापूर्वक पालन करते हैं।चीन द्वारा 1962में भारत पर किया गया आक्रमण नेहरू जी को मित्र राष्ट्र की छलनीति लगता है।वे इस युद्ध में भारत की पराजय व विश्वासघात से अत्यंत क्षुब्ध हुए व सदमे से उबर ना पाए।वस्तुत:आप भारत को शांत व प्रेम का संदेशा प्रसारित करने वाले निर्गुट देशों का अग्रणी नेतृत्व प्रदान करने को तत्पर रहे।वह विश्व स्तर पर भारत की गुटनिरपेक्ष व तटस्थ नीति के प्रबल समर्थक थे।


यदि हम नेहरू जी के लेखकीय संसार पर दृष्टि डालें तो पाते हैं कि उनकी लिखित पुस्तकें जैसे कि ‘लेटर्स फॉर ए नेशन फ्रॉम जे एल नेहरू टू हिज चीफ मिनिस्टर ‘,डिस्कवरी ऑफ इंडिया, विश्व इतिहास की एक झलक, पिता के पुत्री के नाम पत्र, इंडिया एंड वर्ल्ड ,”द एग्रेरियन प्रॉब्लम इन इंडिया, ए जनरल सर्वे “, विजिट टू अमेरिका, हिंदुस्तान की कहानी, इंडियन इमेजेस,इंडियन इकोनामिक थॉट एंड डेवलपमेंट, व्हाट इज रीलीजन, अर्बन चौक, लेटेस्ट द यूनिटी ऑफ इंडिया, जम्मू एंड कश्मीर 1949 आदि ऐसी तमाम पुस्तकें हैं जो नेहरू को एक लेखक के रूप में स्थापित करती हैं। नेहरू एक विशिष्ट लेखक के रूप रूप में अपनी अलग पहचान बनाते हैं। वह प्राचीन भारत की संस्कृति के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखते हैं।आपके द्वारा द्वारा लिखी पुस्तक ‘भारत एक खोज’ पर अनेक टेलीविजन सीरियल व फीचर फिल्म बन चुकी हैं जो कि भारत की संस्कृति व विरासत को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करती हैं। जवाहरलाल नेहरू जब बांडुंग सम्मेलन में प्रतिभाग करते हैं तो विश्व स्तरीय राजनेताओं के समक्ष एक प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में उपस्थित होते हैं।साथ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बैठकों में अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को साथ लेकर जाते हैं तो वे एक प्रकार से अपनी राजनीतिक विरासत की जमीन तैयार कर रहे होते हैं ।इंदिरा गांधी को बचपन से ही देश की आजादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निर्धारित करने के लिए प्रेरित करते हैं।यही कारण है कि कालांतर में इंदिरा गांधी अपने पिता से विरासत पाई प्रतिभा व समृद्ध अनुभवों के आधार पर देश की चर्चित प्रभावशाली प्रधानमंत्री बनती हैं। नेहरू जी अपने उच्च स्तरीय व्यक्तित्व के कारण संपूर्ण राष्ट्र में एक सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित होते हैं।यही कारण है कि आज हम भारत ही नहीं यदि विदेशों के प्रमुख नगरों पर दृष्टिपात करें तो हमें नेहरू जी के नाम पर नेहरू पार्क,नेहरू मार्ग, नेहरू पुस्तकालय,नेहरू सभागार, नेहरू चौराहा,नेहरू प्रेक्षागृह ,नेहरू विद्यालय, नेहरू शिक्षण संस्थान ,नेहरू शोध संस्थान, नेहरू स्मारक आदि के सजीव चिन्ह दृष्टिगोचर होते हैं।नेहरू जी अपने देश से इतना प्रेम करते हैं की वे चाहते हैं कि उनकी मृत्यु होने फर दाह संस्कार के पश्चात उनकी राख को संपूर्ण हिमालय में बिखेर दिया जाए ।नेहरू जी को देश का प्राकृतिक सौंदर्य अत्यंत आता है लुभाता है। नेहरू जी हिमालय के असीम सौंदर्य से अत्यंत प्रभावित रहे।आपने हिमालय के बारे में लिखा था कि- ‘हिमालया इज द एबोड आफ गाड’ अर्थात हिमालय देवताओं का निवास स्थल है।वे लिखते हैं कि ‘हिमालय किसी बेहद सुंदर स्त्री की तरह सुंदर है वासना और कामना से परे।इसकी नदियां, झीलें, घटिया और पेड़ों का सौंदर्य स्त्री सुलभ है तो इसका दूसरा पहलू पुरुषोचित है।मजबूत निर्मम और जबरदस्त।पहाड़ कभी कराहते हैं दुख से तो कभी मुस्कुराते हैं। जैसे जैसे मैं इन दृश्यों को निहारता हूं मुझे लगता है यह एक सपना है।आपने अमरनाथ की पैदल यात्रा की। हिमालय को बहुत समीप से देखा, उसके रोमांच को महसूस किया, उसकी आध्यात्मिक अनुभूति को अनुभव किया, तथा उस यात्रा के रोमांचकारी संस्मरण को लिखा भी ।’मेरी अमरनाथ यात्रा ‘ संस्मरण यह प्रमाणित करता है कि वे एक सामान्य घुमंतू की तरह हिमालय पर्यटन पर नहीं गए वरन एक चिंतनशील वह कल्पनाशील साहित्यकार की भांति।वे अपने अनुभवों को कलम बद्ध करते हैं । उपरोक्त विश्लेषण प्रमाणित करते हैं कि नेहरू वस्तुतः एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धारक थे। तथा ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे जो कि उन्हें समाज देश वह दुनिया में एक अलग पहचान दिलाती है। आजादी के महोत्सव के अवसर पर नेहरू जैसी महान विभूति का पुनीत स्मरण करना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना है।

माधुरी नैथानी
उत्तराखंड, भारत

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