भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- गुलजारी लाल नंदा

ईमानदारी की एक मिसाल-गुलज़ारी लाल नंदा

किसी घर में एक बुजुर्ग व्यक्ति अकेले किराया पर रहते थे ।वह अत्यंत निर्धन थे तथा कुछ महीनों से किराया भी नहीं दे पा रहे थे ।अंततः एक दिन मकान मालिक ने उन बुजुर्ग का सारा सामान सड़क पर फेंक दिया ।सामान भी क्या ,दो चार बर्तन और दो चार कपड़े, यही उन बुजुर्ग की थाती थी ।वे बार बार मकान मालिक से कुछ दिनों का और समय देने का अनुरोध कर रहे थे ।परंतु मकान मालिक या तो सारा किराया तुरंत देने या मकान ख़ाली कर देने की ज़िद्द पकड़कर बैठा था । अड़ोस पड़ोस के लोग जमा हो गए ।बुजुर्ग के सरल स्वभाव वह उनकी दयनीय स्थिति से अवगत पड़ोसी भी मकान मालिक से कुछ और दिन का समय देने का अनुरोध करने लगे ।बहुत मान मनौव्वल के बाद मकान मालिक कुछ दिनों का समय देने को तैयार हुआ ।बुजुर्ग धीरे धीरे अपना सामान समेटकर अंदर ले जाने लगे।

जिस समय यह सारा घटनाक्रम चल रहा था उस समय वहाँ से एक पत्रकार गुज़र रहा था ।उसे लगा कि यह उसके समाचार पत्र के लिए एक अच्छा विषय होगा ।यदि इस समाचार को सही ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो एक ज्वलंत सामाजिक समस्या बन जाएगी ,ऐसा सोचकर उसने कुछ फ़ोटो भी खींच लिए ।अति उत्साह के साथ उसने अपने संपादक को पूरा वाक़या सुनाया और फ़ोटो दिखाया। संपादक महोदय ने सभी फ़ोटो ध्यान से देखने के बाद संवाददाता से पूछा कि क्या वह उस बुजुर्ग व्यक्ति का नाम जानता है ?संवाददाता ने नकारात्मक उत्तर दिया।

अगली सुबह उस समाचार पत्र के मुखपृष्ठ पर छपा “देश के दो बार रह चुके प्रधानमंत्री का सामान किराया न दे पाने के कारण सड़क पर फेंका गया “।साथ में फ़ोटो भी छपा।विस्तृत समाचार में इसका विवरण था कि देश के दो बार रह चुके प्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा किस तरह ग़रीबी में अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं ,किराया न दे पाने के कारण कैसे उनका सामान सड़क पर फेंक दिया गया इसका भी विस्तार से वर्णन था।
इस समाचार के प्रकाशित होते ही सारा देश सदमे में आ गया ।तात्कालिक सरकार की चारों ओर आलोचना होने लगी ।फिर क्या था ,श्री नंदा के घर के आगे बड़े बड़े नेताओं का ताँता लग गया । सभी श्री गुलजारीलाल नंदा को मदद पहुँचाने में सबसे आगे रहना चाहते थे ।सरकार ने भी बड़ी पेंशन देने की घोषणा की ।परंतु कट्टर गांधीवादी श्री नंदा ने इन सभी अनुदानों को लेने से मना कर दिया। बाद में अपने गांधीवादी मित्रों के दबाव में उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाला पेंशन जो मात्र पाँच सौ रुपया प्रतिमाह था,लेना स्वीकार किया ।इस रक़म से उन्होने सबसे पहले बाक़ी का किराया चुकाया ।ऐसे कर्मठ व सरल स्वभाव नेता के बारे में हम बहुत कम जानते हैं।

श्री नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को पंजाब के सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ । इनकी शिक्षा लाहौर, अमृतसर ,आगरा और प्रयागराज में हुई। इन्होनें श्रमिकों की समस्या पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सन 1920-21 में शोध किया ।तत्पश्चात् मुंबई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य किया। महात्मा गांधी के संपर्क में आने पर वे उनसे काफ़ी प्रभावित हुए और उनकी ही विचारधारा में ढल गए । असहयोग आन्दोलन के दौरान वे दो बार जेल गए।
अपने जीवन काल में श्री गुलजारीलाल नंदा ने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। सन 1937 में वे बम्बई लेजिस्लेटिव एसेंबली में चुने गए और श्रम एवं उत्पादन विभाग के संसदीय सचिव बने । तत्पश्चात 1946 से 1950 तक मुंबई के श्रम सचिव रहे । इस पद पर कार्यरत रहते हुए उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना में सहयोग दिया और बाद में उसके अध्यक्ष भी बने ।सन 1947 में जिनेवा में हुए अंतरराष्ट्रीय श्रम कान्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया जिसमें वे फ्रीडम आफ एसोशिएशन कमिटी के सदस्य भी रहे ।

श्री गुलजारीलाल नंदा भारत सरकार के कैबिनेट में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे । 1951 में वे भारत के योजना मंत्री बने ।अगले वर्ष लोक सभा चुनाव में विजयी होने के बाद उन्हें सिंचाई और ऊर्जा मंत्रालय का भी कार्यभार दिया गया । बाद में वे श्रम और रोज़गार , रेल तथा गृह मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण मंत्रालयों मैं भी मंत्री रहे ।वह पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू और फिर श्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद तात्कालिक प्रधानमंत्री भी बने । इतने महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बाद भी श्री गुलजारीलाल नंदा ने अत्यंत सरल वह सत्यवादी जीवन जिया। अपने परिवार को उन्होंने कभी भी सरकारी गाड़ी का उपयोग नहीं करने दिया । एक बार उनके पोता ने कार्यालय से एक पेपर लेकर उस पर चित्रकारी की । यह बात जब उन्हें पता चली तो अपने कार्यालय के कर्मचारियों को उन्होने काफ़ी डाँटा तथा अपने पैसा से कागज़ ख़रीद कर कार्यालय में रखवाया।

सार्वजनिक जीवन से रिटायर होने के बाद वे अहमदाबाद में किराया के घर में रहते थे ।जब 1998 में 99 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ उस समय घर ख़ाली करने के समय उनका सारा सामान एक या दो बॉक्स में समा गया । इतनी ही उनकी जमापूंजी थी ।देश ने उन्हें पहले पद्म विभूषण और बाद में भारत रत्न पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
श्री नंदा को कुशल लेखक के रूप में भी जाना जाता है । एप्रोच टू सेकेंड फ़ाइव ईयर प्लान, गुरु तेग़ बहादुर सन्त एंड सेवियर, सम बेसिक कंसिडरेशन आदि कई पुस्तकें इन्हों ने लिखी । ऐसी विलक्षण प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को हमारा शत शत नमन।

अनिता सिन्हा
गुजरात, भारत

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