भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की-गोपाल कृष्ण गोखले

श्री गोपाल कृष्ण गोखले

महान स्वतंत्रता संग्रामसेनानी गोपाल कृष्ण गोखले
भारत के प्रति सच्चा प्रेम और श्रद्धा रखते थें। देश सेवा के लिए अपने सारे सुख और  निजी स्वार्थ से परे रहने वाले वे एक महान व्यक्ति थे।उन्होंने अपना सारा जीवन देश और समाज की सेवा में अर्पित कर दिया ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी पर चर्चा करने  का विचार मात्र ही सम्मान और समर्पण की अनुभूति प्रदान करता है ।उनको नमन करते हुए भी गर्व का अनुभव हो रहा है।उनके चरणों में सादर नमन।

हम एक ऐसे शिक्षाविद ,एक ऐसे राजनेता के बारे में  चर्चा करने जा रहे हैं,जिन्होंने महात्मा गांधी जैसी महान विभूति को भारतीय परिस्थितियों के अनुसार स्वतंत्रता संग्राम  का पहला पाठ पढ़ाया। तभी तो महात्मा गांधी उनके बारे में लिखते हैं …
“मुझे भारत में एक पूर्ण सत्यवादी आदर्श पुरुष की तलाश थी और वह आदर्श पुरुष मुझे गोखले के रूप में मिला”, -महात्मा गांधी

इस महान सेनानी का जन्म 9 मई 1866 अर्थात आज से लगभग 156 वर्ष पूर्व जिला कोतलुक, महाराष्ट्र में हुआ ,जो मुंबई प्रेसीडेंसी का एक भाग था । सरल स्वभाव के माता पिता, कृष्ण राव गोखले व बालू भाई गोखले के घर इस रत्न का जन्म हुआ । उन्हीं के संस्कारों ने एक बालक को अग्रिम पंक्ति का राजनेता व उच्च मूल्यों का पालन करने वाला शिक्षक बनाया। उनके एक बडे भाई थे, जिनका त्याग ही गोखले जी के जीवन की दिशा बनी। यदि अपने सुखों का त्याग कर वे गोपाल को नही पढ़ातें तो हमारा देश, इस महान सैनानी के योगदान से वंचित रह जाता।1880 में सावित्रीबाई उनकी जीवन संगिनी बनी, परंतु 1887 में उनकी इहलीला समाप्त होने से ऋषी बामा  से वे परिणय सूत्र में बंधे ।

शिक्षा
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पिता की असमय मृत्यु ने और अभावों भरे जीवन में भी वे देश के प्रति निष्ठावान थे और स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु कटिबद्ध थे ।यद्यपि शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें अनेक कठिनाइयां आईं पर बड़े भाई के त्याग को उन्होंने व्यर्थ नहीं जाने दिया। संयमित  जीवन जीते हुए भूखे रहे ,सड़क की बत्ती के नीचे बैठकर पढ़ाई की, परंतु विद्या अध्ययन जारी रखा। अंग्रेजी भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था ।
1884 में उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की । गणित और अर्थशास्त्र में उनकी अद्भुत पकड़ थी ।वे तथ्यों व आंकड़ों की विवेचना और विश्लेषण करने में  माहिर थे। यही कारण था कि वे अंग्रेजों की गलत आर्थिक नीतियों को जनता के सामने उजागर कर पाए । उनकी मांगें आर्थिक तथ्यों के साथ होती थी । इतिहास का उनका गहरा ज्ञान उनकी स्वतंत्रता के प्रति निष्ठा का आधार बना ।
वे सरलता से भारतीय प्रशासनिक सेवा, इंजीनियरिंग या वकालत जैसे लाभदायक व्यवसाय में जा सकते थे परंतु वे अपने भाई पर और अधिक आर्थिक बोझ डालना नहीं चाहते थे । अतः उन्होंने अध्यापन का कार्य जीविका हेतु चुना ।

आजीविका
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1885 में पुणे के न्यू इंग्लिश कॉलेज में अध्यापन कार्य करने लगे । शिक्षकीय निपुणता के चलते वे शीघ्र ही छात्रों के चहेते शिक्षक बन गए। एम.जे बापट के साथ मिलकर अंक गणित की एक पुस्तक संकलित की, यह एक आज भी लोकप्रिय रहने वाली पुस्तक है तथा इसका अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है । यहीं पर वह बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आए और प्रोफेसर गोपाल गणेश आगरकर का उनकी तरफ ध्यान गया ।
उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्होंने “डेक्कन एजुकेशन सोसायटी” में गोखले जी को आमंत्रित किया। 20 वर्ष तक वे शिक्षक रहे । डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी में उनका प्रवेश उनकी सक्रिय राजनीति का शुरुआत थी। उन्होंने गणित ,अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,इतिहास सभी विषयों के लिए निष्ठा और दक्षता प्रदर्शित की। यही कारण है कि गोखले जी को “जन्म जात प्राध्यापक” कहा जाता है ।20 वर्ष की उम्र में ही वे सक्रिय राजनीति में आ गए थे और समाज सेवा उनके जीवन का प्रारंभ से ही अभिन्न हिस्सा थी।
अपनी वित्तीय मामलों की असाधारण समझ के कारण  व प्राथमिक शिक्षा के प्रति उनके लागव के कारण उन्हे’ “भारत का ग्लेडस्टोन”कहा जाता है ।

राजनीतिक कैरियर
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न्यूझीलंड इंग्लिश कॉलेज में जब वे अध्यापन कार्य कर रहे थे ,उसी दौरान जिस प्रकार एक जौहरी ही हीरे को पहचान कर सकता है उसी प्रकार बाल गंगाधर तिलक ,महादेव गोविंद रानाडे, आगरकर, बापट इन विभूतियों ने उनकी शैक्षिक, राजनीतिक संभावनाओं को पहचाना और तराशा और इस प्रकार हमारे देश को मिला एक अमूल्य रत्न!जो स्वयं एक ऐसा जौहरी बन गया कि उन्होंने ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भारतीय राजनीति की गहराई से परिचित करवाया ।
1886 में 20 वर्ष की उम्र में वे सक्रिय राजनीति में आ गए थे ।1899 में वे मुंबई विधानसभा के लिए चुने गए ।1902 में इंपीरियल विधान परिषद में निर्वाचित किए गए। 1912 में वे गांधी जी से मिले परंतु उनका और गांधी जी का साथ अधिक लंबे समय तक ना चल पाया क्योंकि अगले 3 वर्षों में ही 1915 में ही हमने इस महान विभूति को खो दिया ।  उनका राजनीतिक कैरियर सरलता ,बौद्धिक क्षमता से भरपूर, दीर्घकालीन स्वार्थहीन सेवा से ओतप्रोत परिलक्षित होता है।
उदारवादी विचारधारा के वे अग्रणी प्रवक्ता थे। । हम यह कह सकते हैं कि जिस उदारवाद की बदौलत हमें अंग्रेजी हुकूमत में कई राजनीतिक अधिकार मिले जो कि रानाडे आगरकर जैसे विचारकों के मंथन के पश्चात सामने आया था उसको मुखर करने का महती  प्रयास गोखले जी ने किया था ।

उपलब्धि व विशेष योगदान
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गोपाल कृष्ण गोखले जी की विशेष उपलब्धि रही ,”सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी “के रूप में। साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मार्गदर्शन प्रदान करना ।
भारत की सक्रिय राजनीति में भाग लेने हेतु उन्होंने महात्मा गांधी को  मार्गदर्शन दिया। उसी मार्गदर्शन पर की बदौलत हमें हमारा राष्ट्रपिता मिल पाया ।यह इनकी विशेष उपलब्धि रही।” सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी” की स्थापना में उनकी विशेष भूमिका थी और उसमें ही महात्मा गांधी जी की भी अग्रणी भूमिका थी । इस सोसायटी की सदस्यता के लिए गोखले जी एक एक सदस्य की कड़ी परीक्षा लेते थे। मसलन उसका धैर्य ,इमानदारी ,बौद्धिक क्षमता, लगन देश प्रेम सेवा भावना और वैचारिक स्तर। उनका मानना था कि यदि हमारी युवा पीढ़ी इन सब गुणों से युक्त होगी तब निश्चित ही हम स्वतंत्रता को शीघ्र हासिल कर लेंगे ।
“सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी” के माध्यम से उन्होंने कईं महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की।सोसायटी की ओर से उन्होंने सिफारिश की थी कि
1..संपूर्ण देश में प्राथमिक शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य बनाने का कार्य प्रारंभ किया जाए।
2..इस कार्य हेतु सरकारी और गैर सरकारी अधिकारियों का एक संयुक्त आयोग शीघ्र ही नियुक्त किया जाए ।
हमारे देश का संविधान का 86 वां संशोधन जिसके द्वारा प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निशुल्क बनाने के लिए घोषणा हुई थी और उसे 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के मूलभूत अधिकार के रूप में संविधान में शामिल किया गया, इस संविधान संशोधन की नींव गोखले जी द्वारा रखी गई थी ।
1910 और 11 में गोखले विधायक के नाम से जो एक बिल आया था वह शिक्षा के अधिकार को लेकर ही था और उसमें ही प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निशुल्क बनाने का प्रस्ताव सर्वप्रथम गोखले जी द्वारा प्रस्तुत किया गया था । उसके 90 वर्ष बाद 86 वा संविधान संशोधन के द्वारा यह अधिकार हमारे देश के बच्चों को मिल पाए। आइए देखते हैं कि गोपाल कृष्ण गोखले जी प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए किस प्रकार उत्सुक हुए ।
बीसवीं सदी के प्रारंभ में भारतवासी यह जान चुके थे कि भारत को एक ऐसी शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है जो राष्ट्रव्यापी हो तथा भारत की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा पर आधारित हो ।1906 के कोलकाता कॉन्फ्रेंस में एनी बेसेंट ने यह घोषणा कर दी थी कि समस्त राष्ट्र के लिए समान शिक्षा की योजना बनाई जाएगी यही वह समय था जब बड़ौदा में महाराजा सयाजीराव गायकवाड ने प्राथमिक शिक्षा निशुल्क कर दी थी। यह घटना गोखले जी के लिए प्रेरणादाई सिद्ध हुई और उन्होंने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रस्ताव 1910  में रखा।उनके प्रस्ताव रखने के पश्चात सरकार ने झूठा आश्वासन दिया और गोखले जी के कुछ प्रस्तावों को ही मान्यता दी गई । शिक्षा विभाग की स्थापना हुई जोकि गोखले जी की मांग थी। केंद्र सरकार में प्राथमिक शिक्षा का रिकॉर्ड भी पब्लिश होने लगा। यह भी उन्हीं की मांग थी। परंतु प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क करने हेतु कोई कदम नहीं उठाया गया । गोखले जी ने हार नहीं मानी ,लोगों का ध्यान आकर्षित करते रहे ।
भारत और इंग्लैंड में 16 मार्च 1911 को लेजिस्लेटिव काउंसिल में गोखले जी ने बिल प्रस्तुत किया। उनका बिल 13 के मुकाबले 38 वोटों से हार गया जिसका अंदेशा उन्हें पहले से ही था। बिल प्रस्तुत करते समय ही उन्होंने इस बात का उल्लेख कर दिया था कि यह बिल पास नहीं होने दिया जाएगा। इस बिल के पास होने का मतलब था भारतीय जनमानस को बौद्धिकता की ऊर्जा देना जो अंग्रेज सरकार किसी भी कीमत पर करना नहीं चाहती थी। पर उन्होंने कहा ,” हम भारतीय अपनी असफलताओं के साथ ही, मातृभूमि की सेवा के लिए वचनबद्ध हैं ,जिस पीढ़ी को हमारी मातृभूमि की सेवा सफलताओं के साथ करने को मिलेगी वह पीढ़ी बाद में आएगी ।
बहुत बड़ी बात कह दी थी गोपाल कृष्ण  गोखले जी ने। हम वह आज की पीढ़ी हैं जो कि उनकी असफलताओं के बाद की जो मेहनत थी उसका मीठा फल चख रहे हैं । बार बार असफल होने के बाद भी निराश ना होते हुए गोखले जी जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जो समर्पण दिया था उसकी बदौलत हम सुख भोग रहे हैं ।
हालांकि 1911का गोखले बिल पास नहीं हुआ, पर यह एक ऐसी शानदार हार थी जो हार होकर भी जीत थी । जिसने नींव रखी, हमारी शिक्षा की, जिसने उस लड़ाई की नींव रखी जो 1911 में शुरू हुई और 90 वर्ष बाद 86 व संशोधन के  रूप में फलीभूत हुई।जिसके द्वारा 2002 में 6 से 14 साल तक के बच्चों की शिक्षा को प्रत्येक बच्चे के मूलभूत अधिकार में शामिल किया गया ।
भारत के संसद में “द राइट ऑफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपलसरी एजुकेशन एक्ट” को नोटिफाई किया 26 जनवरी 2013 को।
उनकी एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि थी “अंग्रेजी हुकूमत के अधीन ” विषय पर कोल्हापुर में दिया हुआ उनका प्रथम भाषण। अपनी अभिव्यक्ति और भाषा प्रवाह की निपुणता के कारण गोपाल कृष्ण गोखले जी ने ओजस्वी और तथ्यपरक भाषण दिया ।  उन्हें अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई।
इस भाषण का जोरदार स्वागत हुआ।
पुणे की नगर पालिका के सदस्य के रूप में तथा अध्यक्ष के रूप में भी उनकी उपलब्धियां सराहनीय  थीं ।1898 से 1906 के बीच वे पूणे नगर पालिका के सदस्य और बाद में अध्यक्ष भी रहे ।लोग अपनी विभिन्न समस्याएं लेकर उनसे मिलते थे और बहुत ही व्यवहारिक ढंग से उनकी समस्याओं का समाधान गोखले जी करते थे।

“सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी” उन्होंने गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए 1905 में स्थापित की जो कि उनकी अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। इस सोसाइटी के माध्यम से उन्होंने ,भारत के लिए संघर्ष करने वाले तत्पर युवा उत्साही और निस्वार्थ कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने का कार्य किया।

उन्होंने इस बात का भी ध्यान रखा कि उनके कार्यकर्ता पढ़े-लिखे भी हो।
उनकी अधिकांश उपलब्धियां इसी सोसाइटी से संबंधित है।

1.इस सोसाइटी के माध्यम से उनकी एक बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, आदिवासियों के उत्थान के लिए विभिन्न कार्य करना।
2 इसके अलावा इसी सोसाइटी के माध्यम से समय-समय पर ,बाढ़ पीड़ितों की मदद भी की, अपने उत्साही और निस्वार्थ कार्यकर्ताओं की मदद से  ।
3 सोसाइटी के माध्यम से ही स्त्रियों को शिक्षित करना उनकी उल्लेखनीय उपलब्धी रही । विदेशी शासन से मुक्ति को लेकर संघर्ष करना यह उनकी स्थाई उपलब्धि थी  ।
एक बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि जो गोपाल कृष्ण जी गोखले की दिखाई देती है वह यह कि कार्यकर्ताओं पर गोखले जी का अत्यंत गहरा प्रभाव था  ।
उसे देखते हुए किसी ने टिप्पणी की थी, “केवल एक गोखले से ही हमारी रूह कांपती है ,उसके जैसे बीसियों बन रहे हैं ,सोसाइटी में, अब हम क्या करेंगे? ”
ऐसी टिप्पणी गोखले जी के लिए होना यह किसी उपलब्धि से कम ना था। जो स्नेह , जो प्रेम ,जो अनुकरण गोखले जी को प्राप्त हुआ वह अन्य सभी पुरस्कारों और सम्मान उसे सर्वोपरि है।उन दिनों अंग्रेजी हुकूमत के चाटुकारों को जो सम्मान पुरस्कार मिल जाते थे उसकी आशा आजादी के लिए लड़ने  वाले नहीं कर पाते थे और नहीं गोखले जी का चरित्र कैसा था कि वह किसी पुरस्कार और सम्मान के पीछे दौड़ते । अतः जो आजादी हमें प्राप्त हुई वह पुरस्कार स्वरूप ही मानी जाएगी गोखले जी के और हम तो यह कहते हैं कि हमारी मातृभूमि को जो एक महान स्वतंत्रता सेनानी मिला वह हमारे लिए पुरस्कार है उनका सम्मान और पुरस्कार हम अपने कृति से दे सकते हैं अपने चरित्र से दे सकते हैं ।श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी से संबंधित कुछ रोचक घटनाएं  श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी के जीवन की कुछ रोचक घटनाएँ ।गोखले जी उदारवादी दल के मुख्य प्रवक्ता तो थे परंतु सिद्धांतों को लेकर वे जरा भी समझौता ना करते थे । उनकी जीवन की कुछ रोचक घटनाएं ऐसी हैं जो उनके दृढ़ संकल्प और देश के नवनिर्माण के प्रति उनके कटिबद्धता को प्रदर्शित करती है।
गरीबों के उत्थान के लिए उन्होंने 1905 में “सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसाइटी” की स्थापना की थी । इस सोसाइटी में वह प्रत्येक सदस्य की परीक्षा लेकर ही सम्मिलित करते थे। वे यह देखते थे कि जो नौजवान इस सोसाइटी में सम्मिलित होना चाहते थे, देश की सेवा करना चाहते थे क्या वास्तव में उनके अंदर इतना धैर्य ईमानदारी और देश प्रेम था ,जो कि स्वतंत्रता संग्राम के लिए आवश्यक था। साथ ही यह भी देखते थे कि जो नौजवान सम्मिलित हो रहे हैं या सम्मिलित होना चाहते हैं ,शिक्षा की दृष्टि से कितनी उपलब्धता हासिल कर चुके हैं।

सदस्यता को लेकर ही एक रोचक घटना है।

मुंबई म्युनिसिपालिटी में इंजीनियर थे ,अमृत लाल जी ठक्कर  । “सरवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी ‘में सम्मिलित होने के लिए यह नियम बनाया गया था कि पहले अंग्रेजी हुकूमत की सेवा से त्यागपत्र दिया जाए और फिर सोसायटी की सदस्यता ली जाए परंतु ठक्कर चाहते थे कि पहले सदस्यता मिले और फिर त्याग पत्र दिया जाए।वे किसी भी प्रकार का खतरा मोल लेना नहीं चाहते थे कि अगर सदस्यता ना मिली तो उनकी नौकरी तो बनी रहे।
परंतु   गोखलेजी सबकुछ जानते हुए भी नियम के बड़े पाबंद रहे उनका मानना था कि “नियम सिर्फ नियम था और वह सभी के लिए एक जैसा होना चाहिए।”स्पष्ट शब्दों में उन्होंने कह दिया  ,” दो नावों पर सवार होकर देश की सेवा नहीं की जा सकती।अंततः अमृतलाल भी ठक्कर को झुकना पड़ा पहले उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा ।बाद में उन्होंने सोसायटी की सदस्यता हासिल की ।
हालांकि अमृत लाल जी ठक्कर को सदस्यता प्रदान करते समय अत्यंत कठोर नियमों का पालन गोखले जी ने किया था परंतु उनके ही कठोर निर्णय निर्देशन में यही इंजीनियर महान देश प्रेमी ठक्कर बाप्पा के रूप में प्रसिद्ध हुए ।
वह समय भारत के स्वतंत्रता का बहुत महत्वपूर्ण समय था ।जब भंग भंग की घोषणा हुई तो निर्भीक होकर सभी और इसका विरोध किया गया। स्वदेशी आंदोलन चला और इसी दौरान गोखले जी अंग्रेजों के समक्ष इंग्लैंड गए और अत्यंत प्रभावी ढंग से ,समुचित तर्कों के आधार पर और अपार  आत्मविश्वास के साथ भारत की स्वतंत्रता की बात रखी आज हमें सुनने में बड़ा सरल लगता है कि सिर्फ भाषण ही तो देना था परंतु अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के मध्य ऐसे भाषण और यह सारी उपलब्धियां इतना सरल कार्य नहीं थी जैसे कि आज हमको प्रतीत होता है ।
ऐसी ही एक और घटना है । उनके मित्र पटवर्धन उनकी शैक्षिक उपलब्धियों, धाराप्रवाह भाषण कला और तर्क शक्ति से बेहद प्रभावित थे और वे चाहते थे कि श्री गोपाल कृष्ण गोखले वकालत करें । बार-बार इसका आग्रह भी करते थे गोपाल कृष्ण गोखले ने कई बार उन्हें मना किया और अंततः उन्हें गोखले जी ने कहा , “तुम मालामाल हो जाओ और गाड़ियों में घूमों!
मैंने तो जीवन में एक साधारण पथिक की तरह चलने का ही निश्चय किया है ,”
ऐसे विलक्षण थे गोपाल कृष्ण गोखले! वे क्या नहीं कर सकते थे अपने जीवन में, इंजीनियर बन सकते थे, वे वकालत कर सकते थे ,वे बड़े-बड़े पदों पर रहकर आईएएस ऑफिसर भी बन सकते थे। परंतु उन्होंने शिक्षक जीवन को स्वीकार किया और शिक्षक के जीवन के साथ उन्होंने देश की सेवा करने वाले नौजवानों की एक बड़ी सेना तैयार कर दी।वही आधार उन्होंने तैयार किया जिसके दम पर हमारे आने वाले समय के स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने का साहस किया  ।
समाज सुधार के द्वारा जो आधार उन्होंने प्रदान किया वह इस प्रकार है–
एक ऐसी नौजवानों की सेना तैयार करना , जिसके  अंदर धैर्य, ईमानदारी ,बौद्धिक क्षमता ,लगन, देश प्रेम सब कुछ हो, ”
उसी की बदौलत आने वाले समय में स्वतंत्रता संग्राम को आगे ले जाया जा सका ।

श्री गोपाल कृष्ण गोखले के आदर्श

अनेक गुण संपन्न पुरुष की बात ,आज हम यहां पर कर रहे हैं, स्वाभाविक है ,हमारे मन में यह विचार आता है कि वह किन विभूतियों से प्रभावित हुए होंगे ।
उनका पहला आदर्श थे उनके माता-पिता, जो बहुत ही सरल स्वभाव के थे ।परंतु उन्होंने अपनी सरलता में ही ,अनेक ऐसे संस्कार बालक गोपाल में डाल दिए थे ,जिससे कि आगे चलकर वे एक महान पुरुष बन पाए ।
अपने शैक्षिक जीवन में और अपने शिक्षण  काल में गोपाल कृष्ण गोखले जी, महादेव गोविंद रानाडे, बाल गंगाधर तिलक ,आगरकर और बापट से बेहद प्रभावित हुए ।
इन सभी के साथ मिलकर उन्होंने अनेक कार्य किये।  इन सभी महान आदर्श पुरूषों और अपने माता-पिता के आदर्शों का निचोड़  था, श्री गोपाल कृष्ण गोखले जी के व्यक्तित्व में।
वह सारे आदर्श महात्मा गांधी जी को बहुत प्रभावित कर गए थे ।राष्ट्रपिता  महात्मा गांधी उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
अब बात आती है कि ऐसे कौन से आदर्श थे जो गोखले जी जीवन पर्यंत निभाते रहे। किसी एक या दो आदर्शों की बात क्या करें वह तो आदर्शों की खान थे । ऐसा विलक्षण  व्यक्तित्व कई हजारों लाखों सालों में जन्म लेता है और हम बहुत भाग्यशाली है कि भारत भूमि में ऐसा विलक्षण सपूत सेवा देकर और नक्षत्रों में स्थापित हो गया । उनके वे आदर्श विचार जो हमें अपने जीवन में उतारने चाहिए और हमें अपनी अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर देना चाहिए वे हैं…..—स्वाधीनता की ललक ,कर्तव्य परायणता, कार्य के प्रति निष्ठा ,लगन, वक्तृत्व कला पर अधिकार होना ,सरलता, बौद्धिक क्षमता का विकास, सेवा और शिक्षा को महत्व ।
इन सभी गुणों को मिला दें, तो जो व्यक्तित्व तैयार होता है, वह है श्री गोपाल कृष्ण गोखले!
उनको कोटिश नमन।

सुरेखा सिसौदिया

मध्य प्रदेश, भारत

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