भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- घनश्याम दास बिरला

उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला

आजादी के लम्बे संघर्ष में जिसने भी हिस्सा लिया उसने इस आन्दोलन में एक अलग आयाम को जोड़ा।किसी ने सत्याग्रह का रास्ता अपनाया,किसी ने अस्त्र-शस्त्र का रास्ता चुना,किसी ने आस्था और अध्यात्म,तो किसी ने
बौद्धिकता से आजादी की अलख जलाने में मदद की।
आजादी के लम्बे संघर्ष के उपरांत भारत को स्वतंत्रता मिली।भारत के स्वतंत्रता का तात्पर्य ब्रिटिश शासन द्वारा १५ ऑगस्ट १९४७ को भारत की सत्ता का हस्तान्तरन भारत की जनता के प्रतिनिधियों को किये जाने से है।
जो भी व्यक्ति अपने स्वार्थ को त्याग देशहित में अपना कर्म या धर्म लगा देता है और अपने देश की सुरक्षा  अथवा स्वतन्त्रता के लिए लड़ाई में भाग लेता है बिना प्राणों की परवाह किये, वह किसी न किसी रूप में स्वतंत्रता सेनानी कहलाता है।
वैसे भारत की स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला की चिंगारी ,१८५७ में हुए सिपाही बिद्रोह के नायक  मंगल पांडे से प्रज्वलित हुई ।दरअसल १८५० के दशक के उतरार्ध में ,सिपाहियों के लिए ,नई ईन्फिल्ड रायफल लाई गयी ।जिसमे गाय और सूअर  की चरबी से बने कारतूस होते थे।.उन कारतूसों को मुंह से काटकर लोड करना पड़ता था जो कि हिन्दुओ और मुस्लिमों की भावनाओं से खिलवाड़ था । मंगल पांडे ने सिपाहियों को भी विद्रोह के लिए प्रेरित किया जिसे हम आज ‘सिपाही विद्रोह के नाम से जानते हैं ।इस ज्वाला की लहर पूरे  देश में फैलने लगी जिससे अंग्रेज भयभीत हो मंगल पांडे को फांसी की सजा दे दी ।
बिगुल बज चुका था ,आजादी के दीवानो की जिसमें भारत के स्वतन्त्रता सेनानी ,नेता ,सैन्य अधिकारी ,प्रशासनिक अधिकारी ,उधोगपति ,डॉक्टर ,इंजीनियर ,शिक्षक ,लेखक ,समाजसेवी ,अथवा आम नागरिक  भी सक्रिय हो चुके थे।जिसमें उद्योगपति भी ,तन -मन- धन-से देश को आजाद करने में सक्रिय हो गये .जिसमे अन्य उधोगपतियों में अग्रणी घनश्याम दास बिड़ला का नाम प्रमुख है वही मेरे महानायक हैं ।
जिन्हें युगपुरुष कहें तो अतिश्योक्ति ना होगी ।बिड़ला शब्द ही भारतीय जनमानस पर अमिट है .पहले तो बोलचाल की भाषा में किसी धनाढ्य व्यक्ति की तुलना होती थी ,तो  लोग कहते आप टाटा – बिड़ला हो क्या ?
घनश्याम दास बिड़ला शब्द से ही राष्ट्रीयता ,राष्ट्र निर्माण ,समाजसेवा ,शिक्षाविद और सात्विकता ‘हमारे जेहन में प्रगट होने लगता है ।समकालीन भारत को आकार देने में घनश्याम दास बिड़ला का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।वे एक स्वनिर्मित व्यक्ति थे। वे अपनी सच्चरित्रता एवं ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध रहे ।महात्मा गाँधी जी से उनका आंतरिक सम्बन्ध था .पहली बार बापू से बिड़ला जी की मुलाकात १९१६ में हुई .जब बापू साउथ अफ्रीका से लौटे थे ।तत्पश्चात बिड़ला जी गाँधी जी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थें .उसके बाद बिड़ला जी तो गाँधी जी के करीबी मित्र ,सलाहकार,एवं सहयोगी बन गये ।
उद्योगपति और बिड़ला समूह के संस्थापक घनश्यामदास बिड़ला सवतन्त्रता सेनानी भी थे। वे अपने देश को आजाद करने के लिए तन-मन-धन न्योछावर किये।हर समय स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए धन इकठ्ठा करने में मदद की और दुसरे पूंजीपतियों से भी राष्ट्रीय आन्दोलन का हर तरह से समर्थन करने की अपील करते रहें ।बापू के अलावे वे पटेल से भी काफी प्रभावित थे।
घनश्याम दास बिड़ला का जन्म १८९४ में रामनवमी के दिन राजस्थान के पिलानी में हुआ था ।उनके पिता का सूद -व्याज का व्यापर था ।अतएव पिलानी में ही हिसाब-किताब और हिंदी की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद ,छोटी उम्र में ही कलकत्ता आ गये ।कलकत्ते में एक जुट की कंपनी की स्थापना की .क्योंकि बंगाल में सबसे ज्यादा जूट का उत्पादन होता है .जूट के व्यवसाय में यूरोपियन और ब्रिटिश व्यापारियों को घनश्याम दास बिड़ला जी से घबराहट होने लगी ।अत: अनेक अंनैतिक तरीकों से उनका व्यापर बंद करने की कोशिश की ,पर बिड़ला जी डटे रहें .


बिड़ला जी का संयुक्त परिवार था .परिवार के साथ व्यापार एवं उद्योग का विस्तार आलग -अलग क्षेत्रों में किया पर  कार्यक्षेत्र के विस्तार में उनकी सोच हमेशा ,देश के विकाश से जुड़ा रहता .सबसे पहले उन्होंने १९१९ में ‘बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड ‘ की स्थापना की ।उसी साल ग्वालियर में एक मिल की स्थापना की ।१९४० के दशक में उन्होंने ‘हिंदुस्तान मोटर्स ‘की स्थापना कर ,देश में मोटर कार उद्योग को बढ़ावा दिया ।
वे व्यक्ति नहीं ,एक संस्था थें।.वे हमेशा धरती से जुड़े रहने की बात करते उस समय किसी मंदिर के निर्माण हो अथवा किसी कारखाने का निर्माण ,पर्यायवाची बिड़ला जी का ही नाम था .राजनितिक,आर्थिक और सामाजिक मूल्यों पर वे ,हमेशा शिखर पर रहें .सादा जीवन ,उच्चविचार ,उनकी प्रवृति थी .खुद को कभी उद्योगपति का साम्राज्य स्थापित करने वाला मालिक समझाने के बजाये अपने आप को देश और समाज के सम्पति के संरक्षक के तौर पर समझते थे ।उनकी व्यावसायिक सूझ -बुझ ,हमेशा देश के विकास के हित में रहती हालाँकि महात्मा गाँधी और उनका रहन-सहन विपरीत था पर विचारधारा एक थी ।उन दोनों के सम्बन्ध की रोचक किस्से आज लोककथाओं के रूप में प्रचलित है ।एक अंग्रेज ओफिसर ने अपनी रिपोर्ट में यहाँ तक लिख डाला की भारत की राजधानी दिल्ली नहीं बाम्बे का बिड़ला हॉउस है ।गाँधी जी बोम्बे या दिल्ली में बिड़ला हॉउस में ही रुकते हालाँकि यह एकमात्र संयोग कहेंगे की अंत समय में गाँधी जी बिड़ला जी के दिल्ली आवास पर ही छह महीने से रुके थें और उनकी हत्या भी बिड़ला मंदिर में हुई।

विधि के विधान को बदलना मुश्किल है खैर अब हम आगे बढ़ते हैं ।सरदार पटेल और गाँधी जी कई मुद्दों पर उनसे राय विमर्श लेते ।गाँधी जी के खादी आन्दोलन में बहुत सहयोग दिया बिड़ला जी ने ,समाज  सुधारक के रूप में हरिजनों को मंदिर में प्रवेश के लिए लड़ाई भी किये बिड़ला जी ने.कई सालो तक हरिजन सेवक संघ के सदस्य भी रहें ।वे हमेशा सामाजिक कुरीतियों का जम कर विरोध करते।.सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया और राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए अनेक अवसर पर  आर्थिक मदद करते रहें ।गाँधी जी के अनुयायी बिड़ला जी ,गाँधी जी के साथ मिलकर देश के इतिहास को ही बदल डाला
।मानवतावादी और सच्चे कर्मयोगी थे बिड़ला जी ।भागवत गीता के अनुयायी बिड़ला जी का जीवन एक  महाकाव्य के भांति था .देश के विकास के लिए धन कमाये । १९२६ में उन्हें ब्रिटिश इंडिया के केंद्रीय विधान सभा के लिए चुना गया ।इनके कर्मयोग से लाखो करोड़ो भारतीयों के जीवन में बदलाव आया जो उनकी दूरदर्शिता का परिणाम रहा ।अपने किसी भी कार्यक्षेत्र के कर्मचारियों को अपने परिवार जैसा समझते तथा परिवार जैसा ही सुविधा देते.अपने सभी  उद्योगिक स्थान पर कर्मचारियों एवं उनके परिवार के स्वास्थ की रक्षा के लिए अस्पताल की भी स्थापना की ।वैसे बाम्बे और कलकत्ता में दो बड़े -बड़े अस्पताल बनवाये ।


बिड़ला जी की पैनी नजर देश के नागरिक की शिक्षा पर भी थी । चूँकि एक शिक्षित नागरिक ही देश का भविष्य बना सकता है यह सर्वविदित है । अत:बिड़ला जी ने अपने जन्म स्थान पिलानी को ही शिक्षा केंद्र बना दिया ।.उन्होंने शिक्षण केंद्र के हर रूप की स्थापना की।.आमलोगों के शिक्षा सेवा के लिए पिलानी में पिलानी इंस्टिट्यूट खोला .जो आज के दौर में भी एक सम्मानित इंस्टिट्यूट है ।अभी तो पिलानी विद्या   की नगरी के रूप में स्थाई है ।विद्या निकेतन,बिड़ला स्कूल झुंझनु ,बिड़ला वालिका विद्यापीठ जैसी अनेक शिक्षा संस्थाए है .इस दौरान इन्होंने ४०० से ज्यादा स्कूल की स्थापना की ,जो अपने आप में बहुत बड़ी कामयाबी रही ।
३० वर्ष की आयु तक पहुचतें बिड़ला जी औ औद्योगिक साम्राज्य  में अपनी जड़े मजबूत कर ली .भारत सरकार के अनुसन्धान एलेक्ट्रोनिकी अभियांत्रिकी अनुसन्धान संस्थान (सिरी )की स्थापना की .इन सबको देखते भारत सरकार ने १९५७ में घनश्याम दास बिड़ला को ;पद्मविभूषण ;की उपाधि अलंकृत किया ।
हालाँकि इतना सहज नहीं होता व्यवसाय में आगे लगातार बढ़ना .उनके भी जीवन के रास्ते में  अनेक समस्याए आई ।बैंक से कर्ज लेना चाहें ,पर बैंक कर्ज देने से मना कर दिया बहुत कठिनाई आई पर वे कर्मयोगी थे। बाद में खुद अपना बैंक ‘यूनाइटेड कमर्शियल बैंक की स्थापना की जिसकी पहली शाखा कलकते में स्थापित की गयी जो आज युको .बैंक के नाम से प्रसिद्ध है। हिंदुस्तान टाइम्स  की भी स्थापना की ।
उद्योग जगत के उतर चढ़ाव के साथ उनके पारिवारिक जीवन में भी काफी समस्याएं आई ।बिड़ला जी का विवाह १९०५ में हुआ था .तदुपरांत एक बेटे के जन्म बाद लाईलाज  बीमारी की वजह से पत्नी का असमायिक निधन हो गया ।फिर १९१२ में पुनर्विवाह हुआ .फिर संतानों को जन्म दे दूसरी पत्नी भी चल बसी बाद में भाईयों के परिवार ने बिड़ला जी के बच्चों का लालन -पालन किया संयुक्त परिवार  खथा , जिन्दगी के काफी उतार -चढ़ाव के बाबजूद बिड़ला जी की विकास यात्रा कंही रुकी नहीं .देश के विकास के हित में हर संभव -असम्भव कार्य करते गये .
उन्होंने अन्य उद्योगपति के  साथ मिलकर ‘इंडिया चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ‘ की स्थापना की १९२७ में ।चूँकि उनके बढ़ते व्यवसाय अथवा कार्यक्षेत्र में बहुत अड़चने आ रही थी।व्यवसाय हो अथवा जिन्दगी की कोई पहलू ,उन्हें जोखिम लेने और पैसे की जबरदस्त समझ थी ।इस समूह का व्यवसाय हर क्षेत्र में फल- फूल रहा  था। कई यूरोपियन कंपनी को खरीद कर चाय और टेक्स्टटाइल उद्योग को बढ़ावा दिया ।
चुनौती भरा समय था स्वतन्त्रता संग्राम की पीड़ा ,विश्वयुद्ध का परिणाम ,इन सबके बीच ,राष्ट्र के रूप में उभरते भारत को ,नई विकास की दिशा देना भी  आसान नहीं था .
राष्ट्र की स्वतंत्रता ,अप्रबंधित व्यापार ;जिसका परिणाम अंततः मानवीय भावनाओं के विजय के रूप में हुई। अंत में स्वतंत्रता ,जो अपने -आप में एक महापर्व होना चाहिए था ,वह विभाजन का दंश लेते आई .दंश से देश क्षत -विक्षिप्त  होने लगा पर घनश्याम दास बिड़ला के सभी व्यवसाय अंधकार को चीरते ,प्रकाश की भांति देश में उभरने लगा .आजादी के बाद हर पथ चुनौती पूर्ण था ही ,पर उनकी सूझ -बुझ राष्ट्र के विकाश से प्रेरित थी ।उनकी ईमानदारी और देश की विकास की सोच की वजह से राजनीतिक ,आर्थिक ,और सामाजिक मूल्यों पर वे हमेशा शिखर पर रहें ।
इतनी सफलता के बाद भी ,उनके अन्दर नई -नई चीजों की सिखाने की ललक बनी रहती .कभी चित्रकारी तो कभी कविता लेखन ,संगीत,और कभी -कभी रसोई में भी अपनी कौशल दिखाते .पर कविता लेखन ने तो सबको अचम्भित कर दिया।.इतना सहज उनका व्यक्तित्व था  .हिंदी साहित्य में उनकी रूचि के उपलक्ष में के के बिड़ला फाउंडेशन की स्थापना ,१९१९ में ,उनके पुत्र कृष्णकुमार जी के द्वारा की गई .इसका उद्येश्य साहित्य और कलाओं के विकास को प्रोत्साहित करना है .
बिड़ला जी हिंदी भाषा का सम्मान करते थें .वैसे वे स्वदेशी वस्तु के इस्तेमाल के कट्टर समर्थक थे ।उन्होंने भारतीय समाज और देश हित में जिन -जिन नवीन मूल्यों की स्थापना की उसको शब्दों में समेट  नहीं सकते ।
.१९४५ में उनके पास 20 कम्पनियां थीं ।१९६२ तक १५० कंपनियों की श्रृंखला बना ली .वह भी बिना किसी सरकारी मदद के .कहा जाता है की उन्ही के भय से एम आर टी पी एक्ट और लाइसेंस राज एक्ट्स जैसे कानून लागू किये थे।एम आर टी पी  कानून का नियम है प्रतिबंधात्मक या अनुचित व्यापर रोकना यह १९६९ में लागु हुआ हालांकि लाइसेंस राज एक्ट अब लगभग ख़त्म हो गया ।
बिड़ला जी की कुछ उक्तियाँ है ,जो काफी प्रचलित है ,जैसे –
१ /दुनियां की सभी खजाने और धन बेकार है ,जब तक की आप उस धन को किसी और पर खर्च नहीं करते या किसी और से साझा नहीं करते .

२/ जब गुलाब में सौन्दर्य और चुभन दर्दनाक होते हुए ,एक दुसरेके साथ सहयोग करते हैं ,तो हम क्यों नहीं कर सकते  ?
३/  किसी की भावनाओं के साथ ना खेलें ,क्योंकि आप स्वयं अनिश्चितताके अधीन हैं .
४ / कभी – कभी आपको इस तथ्य को स्वीकार करना पड़ेगा की कुछ चीजें कभी भी इस्तमाल करने के लिए ,वापस नहीं आएगी ।
५ / कभी भी उस व्यक्ति को अपना जीवन चलाने के लिए नहीं कहें जो की कभी भी आपके जीवन का हिस्सा नहीं रहा हो ।
अनेक उक्तियाँ है उनके जीवन काल से जुड़ी .उनके हर भाषण और बातचीत में कोई  ना कोई सीख होती .उनकी उक्तियाँ उन्हें डिग्री से नहीं बल्कि काव्यमय और गीता पर आधारित जीवन शैली की उपज थी .उन्होंने अपने पुत्र बसंत कुमार को जो एक पत्र लिखे ,वह पत्र उनकी सर्वश्रेष्ठ उक्ति  मानी जाती है ।.
आज हम देख रहें हैं की देश जिस विकास के पथ पर अग्रसर है और आत्मनिर्भर होते जा रहा है ……….आज से बर्षो पहले ,घनश्याम दास बिड़ला ईसी लक्ष्य को हासिल करने का  अथक प्रयत्न ,आजीवन करते रहें .बी आई टी एस ,पिलानी आज उन्ही का सपना साकार कर रहा है .उनका सभी इंस्टिट्यूट आज भारत के प्रमुख संस्थानों में है .
देश  के विकाश हेतु ,देश में सबसे बड़े इंडस्ट्रियल  क्रांति के जनक के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले घनश्याम दास बिड़ला की  २९ वी पूण्य तिथि आज मनाई जा रही है।.११ जून १९८३ में उनका निधन मुम्बई में हुआ  .पर ऐसे कर्मवीर मर के भी अमर रहते हैं ।
शत -शत नमन है उस युग पुरुष और कर्मवीर को जो सदा देश की हित में सोचते रहें .। उनकी गाथा को शब्दों की सीमा में बांधना मुश्किल है ।

रागिनी प्रसाद

भारत

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