नए दौर की नई कहानी – डाॅ. वर्गीज कुरियन
डाॅ. वर्गीज कुरियन से मेरा पहला परिचय हुआ था यू.पी.एस.सी. की परीक्षा की तैयारी करते हुए। उनके ‘अमूल’ और ‘श्वेत क्रांति’ की चर्चा किताबों में थी। 1948 से लेकर 1965 तक मैनेजर ‘अमूल’ की जबाबदारी उन्होंने बड़ी बखूबी निभाई और उस आदमी की सूझ बूझ और देश को आगे बढ़ाने की ललक ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उनके बारे में और जानने की इच्छा हुई, लेकिन कोर्स का दबाव था और वो इच्छा वहीं रह गई।
फिर मसूरी अकादमी में आई.ए.एस. के परिक्षण के समय डाॅ. वर्गीज कुरियन से पहला साक्षात्कार हुआ। उनके भाषण, उनके लगन और भारत को ‘वन बिलियन लीटर’ दूध से श्वेत क्रांति लाने वाले साधारण कद काठी के डाॅ. वर्गीज कुरियन हमें किसी हीरो से कम नहीं लगे। सवालों के बौछारों से घिरे डाॅ. कुरियन ने हम नवचयनित अधिकारियों को संदेश दिया – ‘चुने हुए रास्तों में संघर्ष से डरना नहीं है। अपनी बात को बेबाकी से कहना भी कला है।’ उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को इस मिशन में उनका साथ देने के लिए भी याद किया। नौजवान अधिकारियों के प्रश्न ‘कि क्या ‘मंथन’ फिल्म उन पर आधारित है?’ वो हल्के से मुस्कुराए थे, कहा कुछ नही। ‘मंथन’ जो कि अमूल द्वारा ही निर्मित थी, गुजरात में दुग्ध क्रांति और किसानों के सहयोग को दर्शाती थी। गाँवों में कुछ करने के लिए सबका प्रयास जरूरी है, यह सहकारिता का संघर्ष था और मूल्य भी।
भारत वर्ष जो कभी ‘सोने की चिड़िया’ थी, आजादी के समय कम अनाज उत्पादन और दूध इत्यादि की कमी से जूझ रहा था। उसे अपने निर्माण और भविष्य की दिशा तय करनी थी। किसान, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी, बदहाली और गरीबी के चक्र से बाहर ही निकल नहीं पा रहे थे। लेकिन देश के निर्माताओं ने हिम्मत नहीं हारी। नए सिरे से देश की सम्पन्नता को बढ़ाने में जुट गए। डा. कुरियन के साथ श्री त्रिभुवन दास किशीबाई पटेल का भी उनकी यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
कहानी शुरू होती है गुजरात के खेड़ा जिले से। किसानों की आमदनी सुधारने कि लिए दुग्ध उत्पादन और संग्रहण के लिए खेड़ा जिला दुग्ध उत्पादन सहकारी संघ की स्थापना 1946 में हुई थी। उसके लिए 1950 में एक नए मैनेजर की नियुक्ति हुई जिसका नाम था डा. वर्गीज कुरियन। 1950 से लेकर 2005 तक डा. वर्गीज कुरियन अमूल और उसकी सहयोगी और पूरक संस्थाओं से जुड़े रहे। सहकारिता क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन की यह अनोखी मिसाल थी। ‘अमूल’ के नाम से प्रसिद्ध यह पहल आज 75 सालों के बाद भी भारत की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। डा. वर्गीज कुरियन केरल राज्य के कोजिकोड में 26 नवम्बर 1921 में पैदा हुए थे। उन्होंने डेरी इंजीनीयरिंग में अमेरिका में उच्च शिक्षा भी प्राप्त की थी। डेयरी ऑफिसर की तरह नियुक्त होने पर उन्होंने किशीभाई पटेल जो कि सहकारी संघ के चेयरमैन थे, उन्हें समय बद्ध सलाह दिया और किसानों को दूध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया। अमूल की विशेषता थी कि पूरा ढाँचा ही किसानों द्वारा चालित था। दूध की गुणवत्ता की जाँच करना, दूध का संग्रहण सब कुछ उनकी देख रेख में था। किसानों को दूध का सही मूल्य मिले यह डा. कुरियन का विशेष प्रयास था। संग्रहित दुध को शीतचालित संयत्र से रखने की प्रक्रिया को भी शुरू किया था। लोगों को शक था कि सहकारिता क्षेत्र में यह प्रयास सफल नहीं होगा। अपनी आत्मकथा ‘आई दू हैड ड्रीम’ में उन्होंने बखूबी वर्णन किया है इस क्षेत्र में आनेवाली चुनौतियों को। अमर चित्र कथा ने 1971 में 32 पेज वाली पुस्तक में डा. वर्गीज कुरियन की यात्रा और उनके द्वारा लाई गई ‘श्वेत क्रांति’ को चित्रों के माध्यम से समझाया है।
भारत को एक नए राष्ट्र से ‘महानायक राष्ट्र’ के सपने देखने में डा. कुरियन का योगदान स्मरणीय है। उन्होंने सपना देखा किसानों, महिलाओं के लिए एक सम्मानजनक जीवन का जिसमें सहयोग और सहकारिता से उन्हें खुद ही संबल लेना था। उन्हें किसी बैशाखी का सहारा नहीं चाहिए’ अगर किसान उत्पादन करता है तो उसके लाभ का हकदार भी वही है। 1960 से लेकर 2006 तक डा. कुरियन अनेक संस्थाओं से जुड़ें रहे – नेशनल डेयरी डेवलपेंट बोर्ड, ई.र.मा., आंनद, अमूल डेवलपेंट बोर्ड इत्यादि। इन सारी संस्थाओं ने ग्रामीण क्षेत्र में सराहनीय योगदान दिया। कृतज्ञ राष्ट्र ने उन्हें पद्म श्री (1965), पद्म भूषण (1966) और पद्म विभूषण (1999) से नवाजा जो कि उनके योगदान और योग्यता के लिए काफी कम था। श्री लाल बहादुर उनकी क्षमताओं से इतने प्रभावित थे कि एक नए संस्था के निर्माण का भार ही उन्हें दे दिया था।
1997 में आई हुई किताब ‘एन अनफिनिशड ड्रीम’ जो कि उनकी भाषण और वक्तव्यों का संग्रह है उनके संघर्ष को दर्शाती है। डा. कुरियन को अगर पिछली शताब्दी का सबसे बड़ा ‘सामाजिक क्रांतिकारी’ कहा जाए तो कम नहीं होगा। 2005 में अमृता पटेल से विचार मतभेद होने पर उन्होंने चेयरमैन के पद को छोड़ दिया था। उनका मानना था कि ‘अमूल’ को सहकारिता के लक्ष्य पर ही रहना चाहिए जबकि अमृता पटेल इसे नए कॉर्पोरेट में बदलना चाहती थीं। सिद्धांतों से समझौता न कर उन्होंने अपनी राह पर ही रहना उचित समझा।
देश निर्माण और देश को आत्मनिर्भर बनाने में ‘अमूल’ और डा. कुरियन के ‘आपरेशन फ्लड’ को कोई नहीं भूला सकता है। 1700 करोड़ रुपए की लागत से 25 वर्षों में दूध उत्पादन बढ़ाने की उनकी पहल को बहुत लोगों ने उनके आत्मविश्वास की अतिश्योक्ति समझा। लेकिन आज 10 से भी ज्यादा राज्यों में 18 कॉपरेटिव क्षेत्र में डेयरी स्थापित हैं और 2.5 करोड़ से भी ज्यादा किसानों की आमदनी का जरिया है। शहरी क्षेत्रों में दूध की खपत आज 2 करोड़ लीटर से ज्यादा करने में डा. कुरियन का योगदान और समझदारी है। हर सहकारी संस्था करीब 300 से 350 किसान सदस्यों से बनाई जाती है। किसान एक भैंस या गायों के साथ उसमें जुड़ जाते हैं। दूध के उचित मूल्य मिलने से उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होती है। शहर में रहने वालों को डा. कुरियन के इस क्रांति का पता भले ही नहीं चले लेकिन दुग्ध उत्पादन और उसके संचालन में आने वाले बदलाव से किसान और गांवों में रहने वाले वाकिफ है। डेयरी द्वारा दुग्ध क्षेत्र में मक्खन, पनीर, पाउडर इत्यादि बनाने पर भी जोर दिया गया ताकि देश को विदेशों पर निर्भर नहीं होना पड़े। दुग्ध उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे कि अच्छा चारा, मेडिकल सुविधाएं, पशुओं के लिए मेडिकल मोबाइल क्लिनिक इत्यादि समग्र विकास पर जोर दिया। डा. कुरियन हमेशा उत्पादक संघों को अत्मनिर्भर होने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि विदेशी फंड हमें आत्मनिर्भर बनने से रोकते है और संघों को अपने ऊपर ही दायित्व लेना चाहिए। यह अभी के राजनीतिक सोच से भी मेल खाती है कि हमें अपनी समस्याओं का समाधन खुद ही निकालने होंगे। दूध के साथ ही तेल उत्पादन के लिए भी उन्होंने काम किया। ‘धारा’ के नाम से 1979 में खाद्य तेल का उत्पादन शुरू किया।
डा. कुरियन के आत्मविश्वास और मैनजमेंट में सबके साथ की बड़ी मिसाल है। वर्ल्ड बैंक के लोन पर उन्होंने कहा था – आप लोन देकर भूल जाएं एन.डी.डी.बी. को 1965 में वर्ल्ड बैंक से धनराशि मिली और आज राज्यों में ‘नंदिनी’ ‘वक्का’ जैसे बने। 2021 उनके जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया गया। देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने में दूर दराज के नेताओं, विचारकों और यह राह दिखाने वालों को होती है। डा. कुरियन ने एक नई सोच और कमर्ठ को पहचान दी। निरक्षर और गरीब किसान भी अपनी अच्छी देख रेख कर सकते हैं। डा. कुरियन मॉडल बहुत सारे मैनजमेंट इंस्टीच्यूट में पाठ्य क्रम का विषय है। 9 सितम्बर 2012 में डा. कुरियन इस दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन उनके पचास वर्ष से भी उपर राष्ट्र निर्माण के योगदान का पाठ अभी भी राह दिखा रहे हैं।
डाॅ अमिता प्रसाद
कर्नाटक, भारत