भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की-अमर्त्य सेन

डॉ अमर्त्य सेन

अमर्त्य सेन अर्थशास्त्री हैं। इनका अध्ययन,चिंतन और अनुसंधान अद्वितीय है।बचपन से ही प्रतिभावान एवं कुशाग्रबुद्धि  थे।

इनका जन्म 3 नवंबर 1933 में बंगाल के शांति-निकेतन  में हुआ था। सेन के पिता का नाम आशुतोष सेन था और मां का नाम अमिता सेन ।
अमर्त्य सेन के पिता ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक थे।इनकी माता जी भी विश्व भारती में  कुलपति के पद पर थीं। सेन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। इनके नानाजी क्षितिज मोहन थे और वे पेशे से शिक्षक थे। इस तरह पूरा परिवार शिक्षित था।

इन्होंने तीन‌ शादियां की।पहली पत्नी का नाम नवनीता सेन जो लेखिका और विदुषी थीं। दो बच्चे होने के बाद  इनका तलाक हो गया। दूसरी शादी इवा कोलोरीना से हुई। इवा का कैंसर से देहांत हो गया। फिर एमा जोर्जिना रोथस्चिल्ड तीसरी पत्नी हुईं।डॉ सेन को पांच बच्चे हैं ।

अमर्त्य सेन की बचपन की शिक्षा ढाका में हुई थी। उसके बाद शांति निकेतन और प्रेसिडेंसी कालेज से(स्नातक) शिक्षा ग्रहण करने लेने के बाद कैंब्रिज के टि्निटी कोलेज से शिक्षा प्राप्त की तथा 1959 में पीएचडी की डिग्री हासिल की।

डॉ अमर्त्य सेन जब 10 साल के थे तब बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था।अकाल पड़ ने कारण बहुत लोग मर गए थे।इस घटना ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने अर्थ शास्त्र और दर्शन शास्त्र का गहन अध्ययन किया था। इसी से उनका मानना था कि अर्थ शास्त्र का सीधा संबंध समाज के निर्धन और उपेक्षित लोगों से है। इसलिए हमें समाज में शिक्षा के महत्व पर अधिक बल देना होगा। नारी को शिक्षित करने के बाद उन्हें आत्मनिर्भर बनाना अनिवार्य है। सामाजिक समानता का मूल्य समाज में निरूपित करना होगा। आम जन को सामर्थ्यवान बनाने केलिए असमानताओं को कम करना पड़ेगा।  मानवीय क्षमताओं के संपूर्ण विकास पर जोर देने की जरूरत है ।साथ ही नारी की सशक्तिकरण पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा।

देश के विकास के लिए इन्होंने तीन बातों को मुख्य माना है:-

स्वास्थ्य,
आर्थिक वृद्धि
और शिक्षा में वृद्धि।

स्पष्ट रूप  से उनका मत है कि जब तक इन तीनों बातों को व्यवहारिक रूप नहीं देंगे तब तक राष्ट्र की उन्नति संभव नहीं है।
अर्थ शास्त्री होने के नाते आपने लगभग 215 शोध किए हैं। अपने शोध में मानवीय मूल्यों की स्थापना तथा लोगों में अपनी क्षमता को ऊर्जावान करने के सिद्धांत को बताया है। उन्होंने पूंजी वादी सरकार को जनता की सेवा हेतु समय-समय पर या विषय परिस्थितियों में खाद्य पदार्थ आपूर्ति करते रहना अनिवार्य कहा है। दोष पूर्ण वितरण प्रणाली को सही करने की बात कही है।
उनका कहना है कि अच्छी किस्मों का अन्न गरीब जनता के घर नहीं पहुंची पाती है। जिससे देश की ग़रीबी समाप्त नहीं हो सकती है।
अमर्त्य सेन कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के जनक माने जाते हैं। इन्होंने लोक कल्याण अर्थशास्त्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया है। कल्याण और विकास के विभिन्न पक्षों पर अनेक पुस्तकें तथा पर्चे भी लिखें हैं।

नौकरी के दौर में वे यादवपुर विश्व विद्यालय, दिल्ली स्कूल आंफ इकोनोमिक्स और आक्सफोर्ड में प्राध्यापक रहे थे। अमर्त्य सेन 1961 में संयुक्त राज्य अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विजिटिंग प्रोफेसर थे। वैसे बहुत विश्व विद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर थे।1998 से लेकर 2004 तक ये टि्निटी कालेज के व्याख्याता रहे।


डॉ सेन हार्वर्ड सोसायटी आंफ फेल्लोस में एक विशिष्ट  फेलो रहे हैं।आप बिहार नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं।
अमर्त्य के पुरस्कार व सम्मान की लंबी सूची है। इन्हें 15 से ऊपर ही  पुरस्कार मिल चुके हैं।
1998 में अर्थ शास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।कल्याणकारी अर्थ शास्त्र की बुनियादी समस्याओं के शोध में महत्त्वपूर्ण योगदान हेतु अमर्त्य सेन को1999 में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया।

अर्थशास्त्री का नाम इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया।हम भारतवासी को इन गर्व है। शोध के समय इन्होंने प्राइमरी शिक्षा में महिलाओं को आगे बढ़ाने की बात कही थी।मुझे याद है मेरे स्कूल में भी उनकी शोध टीम हमलोगों का साक्षात्कार करने हेतु आए थे क्योंकि हमारा विद्यालय लड़कियों का था। स्वास्थ्य सेवा पर प्रकाश डालने कारण उन्हें जर्मन बुक टे्ट‌ ने 2020 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया।

इस तरह देखा जाए तो डॉ सेन ने राष्ट्र और विश्व के लिए बहुत कुछ किया है| तभी तो कल्याणकारी अर्थशास्त्र के लिए इन्हें “पेशे की अंतरात्मा” कहा गया है।
वर्तमान में वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थ शास्त्र और दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर हैं।इस उद्भट विद्वान को मेरा कोटि नमन।

अंशु माला झा अंश
भागलपुर, भारत

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