भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की- बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा का उलगुलान

तब भगत सिंह का जन्म नहीं हुआ था, सुभाष अपनी माँ की गोद में थे, गाँधी को अफ्रीका से लौटना बाकी था और छोटानागपुर के घने जंगलों में एक आदिवासी नवयुवक अपने सीमित संसाधनों और सेना के साथ अंग्रेजों के शासन से आजादी का बिगुल फूंक रहा था | स्वराज्य की घोषणा कर रहा था | वह नवयुवक और कोई नहीं वरन बिरसा मुंडा थे जिनका नाम आज भी भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में आदर से लिया जाता है | छोटानागपुर में उन्हें बिरसा भगवान की संज्ञा प्राप्त है |
मात्र २५ वर्ष की आयु में अंग्रेज शासन के हाथों, रांची सेन्ट्रल जेल में मृत्यु का वरण करने वाले बिरसा मुंडा के उलगुलान* ने जो क्रांति का बिगुल फूंका था, उसके दूरगामी परिणाम हुए | यदि अंगरेजों ने भूमि-अधिग्रहण की अपनी कानून व्यवस्थी में परिवर्तन किए, आदिवासियों की जमीन से सम्बंधित अधिकारों की सुरक्षा के लिए १९०८ में छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट लागू किया तो उसका श्रेय बिरसा मुंडा के उलगुलान को जाता है जिसे अंगरेजों ने “ग्रेट टुमल्ट” की संज्ञा दी थी |
१५ नवम्बर १८७५ में जन्मे बिरसा मुंडा की बुद्धि अत्यंत तीक्ष्ण थी | | छोटानागपुर में ईसाई मिशनरियाँ तेजी से पर पसार रही थीं | उनका परिवार ईसाई हो चुका था| बिरसा की शिक्षा ईसाई मिशनरी स्कूल में हुई| ईसाई मिशनरी के स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने के साथ उनकी समझ में जल्दी ही आ गया कि ईसाई मिशनरियाँ जनजातियों के हितों के विरुद्ध कार्य कर रही हैं |उन्होंने ईसाई धर्म का त्याग कर दिया और चर्च की नीतियों का खुलेआम विरोध करना आरम्भ कर दिया| १८९५ में बीस वर्ष की आयु में बिरसा मुंडा ने घोषित कर दिया कि वह “धरती आबा ” यानि धरती का पति/ ईश्वर है | उसे भगवान ने धरती पर भेजा है कि वह अत्याचारी दिकू ( तंग करने वाला ) को मार कर मुंडाओं को उनके जंगल- जमीन वापस दिलाए और छोटानागपुर के सभी परगनों में पुन: मुंडा राज्य कायम करे | इसका व्यापक असर हुआ | ब्रिटिश शासन से तंग , दूर- दूर से आदिवासी उनके दर्शनों को आने लगे और उन्होंने बिरसा के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया | छोटानागपुर के जंगलों में उनका नारा “अबुआ राज एते जाना, महारानी राज तुंडु जाना ( अपने राज्य की स्थापना हो , महारानी विक्टोरिया का राज्य ख़त्म हो ) गूंजने लगा| आदिवासियों की जमीन को सुनियोजित तरीके से हड़प रहे चर्च और ब्रिटिश सरकार के नुमाईंदों की नींद उड़ गई |
बिरसा का उद्देश्य शोषित, गरीब, अशिक्षित और विभिन्न अंधविश्वासों से ग्रस्त आदिवासी जनजातीय समाज का विश्वास जीतना और उनके उत्थान के लिए कार्य करना था| वे इसमें सफल भी हुए | आदिवासियों के लिए उन्होंने “बिरसाइयत” धर्म की स्थापना की जिसके अनुयायी आज भी मांस- मदिरा एवं किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहते हैं, अपना भोजन स्वयं पकाते और श्वेत, साफ़ वस्त्र धारण करते हैं ।बिरसा ने बहुविवाह का भी विरोध किया और स्त्री की यश – प्रतिष्ठा की रक्षा और सुरक्षा का पक्ष लिया।वे आदिवासी धर्म- संस्कृति के समर्थक और रक्षक थे।
बिरसा मुंडा ने छोटानागपुर में क्रांति का बिगुल ही नहीं बजाया, अंगरेजों से लड़ने के लिए आदिवासियों को संगठित किया और उस लड़ाई का नेतृत्व किया।यह और बात थी कि अंगरेजों की बंदूक और तोपो के सामने वे अपने आदिम हथियार – तीर कमान और गुलेल के साथ एक तरह से अस्त्र- शस्त्र विहीन ही थे।२४ अगस्त १८९५ को बिरसा को पहली बार गिरफ्तार किया गया।वे दो वर्षों तक जेल में रहे।१८९८ में चर्च को खुल कर चुनौती दे रहे और आदिवासियों को ईसाई बनाने में व्यवधान पैदा कर रहे बिरसा और उसके साथियों को ईसाई मिशनरियों ने गिरफतार कराने की कोशिश की। बिरसा को पता चल गया और वे भूमिगत हो गए।दो सालों तक भूमिगत हो कर भी वे गुप्त सभाएँ करते रहे।
१८९९ के क्रिसमस तक बिरसा ने कुछ सात हजार आदिवासी स्त्री- पुरुषों की सेना का गठन कर लिया था।उन्होंने घोषणा की कि आदिवासियों के असली शत्रु अंग्रेज ही हैं , न कि ईसाई बन गए दूसरे आदिवासी ।दो वर्षों तक उनके नेतृत्व में चुन- चुन कर अंग्रेजों और उनके स्वामीभक्तों के ठिकानों पर हमले किए गए।जनवरी १९०० में उन्होंने दो कांस्टेबल की हत्या की और फिर खूंटी पुलिस स्टेशन पर भी हमला किया।एक कांस्टेबल की मृत्यु हुई और कई स्थानीय दूकानदारों/ जमींदारों के घर- दूकान नष्ट हुए ।लगातार उग्र हो रहे आदिवासी विद्रोह को दबाने के लिए कमिश्नर ने, डिप्टी कमिश्नर के साथ सैनिकों को लेकर आनन-फानन में खूंटी कूच किया और गुरिल्ला युद्ध कर रहे आदिवासियों की अंतत: दुम्बारी पर्वत पर पराजय हुई ।बिरसा मुंडा तब भी बचने में सफल रहे और सिंहभूम के जंगलों में जा छुपे।

यह अधिक समय तक नहीं चल पाया। अंग्रेजों को भनक लग गई कि बिरसा चाईबासा के आसपास हैं।उन्होंने ग्रामीणों का जीवन दूभर कर दिया।उन्हें भूखों मारने का प्रबंध किया| बिरसा पर ५०० रुपये का इनाम रखा गया था। किसी ने अंग्रेजों को सूचना दे दी और बिरसा चक्रधरपुर से फरवरी १९०० में गिरफ्तार कर लिए गए ।उनके कई सहयोगी भी पकड़े गए जिन पर मुकदमे चले , जेल में डाला गया ।बिरसा के अतिरिक्त छह अन्य की मृत्यु रांची जेल में हुई ।

आश्चर्य होता है कि इतने अल्पकाल में पूर्ण मौलिक, स्वघोषित तरीकों से, कैसे इस युवा ने अंगरेजों द्वारा आरोपित जमींदारी और आदिवासी भूमि हड़पने के कार्यक्रम को इस तरह चुनौती दी कि अंग्रेजी शासन की जड़ें हिल गईं ।अंग्रेजों द्वारा १९०८ में छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट लाए जाने के साथ यह आंदोलन धीमा पड़ गया ।यह एक्ट गैर आदिवासियों द्वारा आदिवासी जमीन की खरीद पर रोक लगाता है ।यह बिरसा मुंडा के उलगुलान की सबसे बड़ी विजय थी।
बिरसाईयत को मानने वालों की संख्या अब ज्यादा नहीं रह गई है क्योंकि इस धर्म का पालन बहुत कठिन है किन्तु आज भी छोटानागपुर में बिरसा की प्रतिष्ठा “बिरसा भगवान” के रूप में है।

पूरे झारखंड राज्य में, विभिन्न स्थानों पर ,आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्पद, बिरसा भगवान की कई मूर्तियां लगाईं गई हैं ।यूँ तो बिरसा भगवान की विभिन्न मूर्तियां छोटानागपुर के बाहर भी मिल जाएंगी किन्तु रांची के मेन रोड के मुख्य चौराहे पर हथकडियों में जकड़े हाथों वाली बिरसा की मूर्ति कई सालों तक लगी रही, जिसकी स्मृति मुझे आज भी है।वह बिरसा भगवान से मेरी पहली पहचान थी।

२०१६ में झारखंड के तत्कालीन मुख्य मंत्री रघुवर दास ने आदेश पारित किया कि रांची के बिरसा मुण्डा चौक पर बिरसा की प्रतिमा के हाथों को हथकड़ियों से मुक्त कर दिया जाय। इससे युवाओं में गलत सन्देश जाता है।
मन में प्रश्न उठता है कि प्रतिमा के हाथों को हथकड़ियों से मुक्त तो आपने दिखा दिया लेकिन उन हथकडियों का क्या होगा जो आज भी झारखंड की जनता के जीवन को जकड़े हुए हैं ? ऐसे में अपनी कविता आज भी प्रासंगिक लगती है जो मैंने कई साल पहले बिरसा भगवान के जन्मदिन पर लिखी थी | आकाशवाणी, रांची से प्रसारित वह कविता आपके सामने है –

बिरसा मुंडा के प्रति
अब भी …
जब की एक युग बीत चुका है
काल के अंतहीन प्रवाह में ,
कितने ही जाने- अनजाने चेहरे
अपनी पहचान खो चुके हैं ,

सवेरे का सूरज
हर रोज आता है
और तुम्हारी कहानी
नए सिरे से
दुहरा जाता है |
शब्द वही रहते हैं
बस अर्थ बदलता जाता है |

छोटानागपुर की वन्ध्या होती जाती धरती
अब बस कराहती रहती है
कटते पेड़ , बदलता मौसम , बढ़ता शोषण ,
सब .. एक ही बिंदु की ओ र ले जाते हैं |
तुम्हारी गाथा सुना -सुना कर
हमारी नपुंसक होती जा रही चेतना को
झकझोरते रहते हैं |

बिरसा के वंशजो, सुनो !
बिरसा का दाय अभी पूरा नहीं हुआ
उसके हाथों की हथकड़ियाँ नहीं खुलीं
इस धरती की चेतना
आज भी बंदी है !

काश …….
उस जैसा कोई और आता
और इस बार
अपनों के द्वारा ही
हो रहे शोषण से
मुक्ति दिलाता…….

* उलगुलान मुंडारी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है क्रांति।

इला प्रसाद
अमेरिका

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