अटल बिहारी वाजपेयी:भारतीय राजनीति के अजातशत्रु
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अपने नाम के ही समान अटल एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे।
अपने प्रारंभिक जीवन में खुद का परिचय देते लिखते है –
“हिन्दू तन मन, हिन्दू जीवन, रग रग हिन्दू मेरा परिचय…”
जीवन परिचय :
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एक महान राजनीतिक व्यक्तित्व के स्वामी होने के साथ-साथ, एक निडर पत्रकार, वक्ता एवं बहुत अच्छे कवि भी थे। अपने प्रधानमत्री पद पर रहते हुए सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्ष भी उनका बहुत सम्मान करता था। अटल जी अपने जीवन काल में तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने जो उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है।
प्रारंभिक जीवन :
अटल बिहारी के दादा पंडित श्यामलाल वाजपेयी बटेश्वर के अपने पैतृक गांव से पलायन कर ग्वालियर चले आए थे। बटेश्वर चंबल के बीहड़ों से सटा यमुना के किनारे बसा गांव था। यह गांव ब्रिटिश शासन के अधीन था। श्यामलाल के बेटे कृष्ण विहारी एक स्कूल टीचर थे और ग्वालियर में शिंदे की छावनी नाम के इलाके में रहते थे। कृष्ण बिहारी और उनकी पत्नी कृष्णा के घर अटल का जन्म हुआ उस दिन क्रिसमस था और सुबह के 5:00 बजे जब उस नवजात शिशु ने आंखें खोली तब चर्च की घंटियों की आवाज सुनी जा सकती थी । अटल के कई बड़े भाई बहन थे। भाई तीन थे। अवध बिहारी, सदा बिहारी और प्रेम बिहारी । दो बहने थी बिमला और कमला। एक और बहन थी उर्मिला जिनका जन्म उनके बाद हुआ था।
इनका जन्म 1924 में हुआ था, परंतु इनके पिताजी ने इनकी जन्म की साल 1926 दर्ज करवाया था उन्होंने सोचा था कि बेटे को सरकारी नौकरी मिलने में अधिक सुविधा होगी किंतु उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उनका बेटा सरकारी नौकरी कभी करेगा नहीं।
अटल सामान्य भारतीय मध्यम वर्ग परिवार से थे जो पूरी तरह से शिक्षा और अपने बच्चों के लालन पालन मेँ उन्हें सुसंस्कृत बनाने का विश्वास रखते थे।जाति से ब्राह्मण होने के कारण अटल के मन में उच्च नैतिकता की बातें डाली गई थीं। उनके दादा श्याम लाल संस्कृत के विद्वान थे और अक्सर उनकी बातों में श्लोक का समावेश रहता था। उनके पिता कृष्ण बिहारी भी साहित्य प्रेमी थे और खड़ी बोली तथा ब्रज भाषा में काव्यरचना किया करते थे। इस प्रकार इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अटल जी में भी पढ़ने और काव्य रचना करने की अभिरुचि पैदा हो गई थी।
अटल बिहारी वाजपेयी जी आरंभिक जीवन ग्वालियर में ही गुजरा जहाँ उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के बारा गोरखी के गवर्नमेंट हायरसेकण्ड्री विद्यालय से ली। उसके बाद विक्टोरिया कॉलेज जो कि अब लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है से की। इसके बाद अटल जी ने कानपुर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से राजनीतिक विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद लॉ की पढ़ाई शुरू किए जहां उनके एक सहपाठी कोई और नहीं बल्कि उनके ही पिता कृष्ण बिहारी थे। ये मजबूत इरादों और दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे। वे सेवानिवृत्त हो चुके थे। फिर भी अपने आप को बहुत ही चुस्त दुरुस्त रखना चाहते थे। कुछ समय के लिए पिता और पुत्र हॉस्टल के एक ही कमरे में रहते थे । हालांकि अटल अपने एलएलबी पूरी नहीं कर सके क्योंकि भारत को आजादी मिल गई और उनकी शैक्षणिक योजना बदल गई । पढाई पूरी करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पत्रकारिता में अपने करियर का आरम्भ किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि समाचार पत्रों का संपादन किया। राष्ट्रीय सेवक संघ की विचारधारा और जिन साधना, सेवाभाव से चलता था उससे काफी हद तक प्रभावित थे। वास्तव में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के कई वर्ष बाद एक लेख में उन्होंने कहा था राष्ट्रीय सेवक संघ उनकी आत्मा है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे राष्ट्रीय सेवक संघ लोगों की सोच को प्रभावित करता है इस संघ में शामिल होने से काफी पहले ही अटल पर हिंदू विचार शैली का काफी प्रभाव था। यह बात उस कविता में उन्होंने लिखी थी जब वह कक्षा दसवीं में पढ़ते थे…. “हिंदू तनमन हिंदू जीवन” ।
मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा मंदिरों को तोड़े जाने को लेकर इस कविता में पूछा “कोई बताएं काबुल में जाकर कितने मस्जिद तोड़े।“
व्यक्तिगत जीवन
अटल बिहारी वाजपेयी एक सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से हैं। भले ही उन्होंने राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया, लेकिन उनके भाई बहन अपना मध्यमवर्गीय जीवन ही जीते रहे। अटल के बड़े भाई अवध बिहारी मध्यप्रदेश सरकार से 1997 उप सचिव के पद से रिटायर हुए। उनके एक और भाई सदाबिहारी ग्वालियर में किताबों के प्रकाशन का कारोबार चलाते थे। हालांकि उनकी बेटी करुणा शुक्ला ने बीजेपी की सदस्यता ली और विधायक भी बनी। प्रेमबिहारी जो अटल जी के सबसे करीब थे, वे मध्यप्रदेश सरकार के सहकारिता विभाग में शामिल हुए। अब बिलासपुर में तैनात थे। अटल जी प्रधानमंत्री बने तो प्रधान मंत्री होने पर भी वह परिवार से हमेशा मिलते जुलते रहते थे और शादी विवाह में उपस्थित होना कभी भूलते नहीं थे।
गुलज़ार की कलम से निकली फ़िल्म खामोशी की इन अविस्मरणीय पंक्तियों से अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण पहलुओं की व्याख्या उपयुक्त रूप से की जा सकती है, भले ही उनके सहयोगियों के लिए अनजान रहा हो। फिर भी अटल की जीवन यात्रा के इस अहम पक्ष को सार्वजनिक चर्चा से दूर रखा गया।
मई 2014 में जब राजकुमारी कौल की मृत्यु हुई तब कई अखबारों ने यह खबर छपी थी। यह कहा कि वे अटल के घर की एक सदस्य है। लेकिन टेलीग्राफ में लिखते हुए पी नैयर ने कहा, श्रीमती कौल को कई वर्षों तक उन्हें जानने वाले एक शर्मीली, निस्वार्थ किसी अर्धांगिनी के रूप में याद रखेंगे, जिन का सौभाग्य कभी अटल को नहीं हुआ। जबकि वह हमेशा उनके साथ रहे। तब तक जब तक कि वह बीमार नहीं पड़ गयी और दिल के दौरे से उनकी मृत्यु नहीं हो गई।
राजनैतिक जीवन :
1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने बड़े नेताओं के साथ स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में हिस्सा लिया और जेल भी गए। इसी आन्दोलन के दौरान अटल जी की मुलाकात जनसंघ के संस्थापक श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेतृत्व में उन्होंने राजनीति की बारीकियां सीखी और उनके विचारों को आगे बढ़ाने लगे। अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्यों में भी थे। वह अपने लेखन कौशल के लिए भी जाने जाते थे।इस कारण राष्ट्रीय सेवक संघ में पत्रकारिता के कार्यों में लगाने का फैसला किया। इसका मतलब यह था कि अटल को अपने कानून की पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी । संगठन ने लखनऊ से ‘ राष्ट्र धर्म ‘ पत्रिका शुरू की और अटल को उसका सहायक संपादक बनाया गया जिन्हें दीनदयाल उपाध्याय के मार्गदर्शन में कार्य करना था।
पत्रकारिता के प्रति अटल का अनुराग इस बात से भी बढ़ गया कि वे लोगों की सोचने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते थे इस प्रकार राष्ट्र के विकास में सकारात्मक योगदान कर सकते थे।
हालाँकि पहले उन्होंने अपना करियर पत्रकारिता से शुरू किया था लेकिन 1951 में उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी और राजनीति में अपना कैरियर बनाया।
अटल बिहारी बाजपेई एक बहुत ही मंझे हुए कुशल वक्ता थे और अपनी इस वाक् शक्ति के कारण राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ने लगी।
1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में उन्होंने विजय प्राप्त किया और बलरामपुर लोकसभा सीट से चुने गए।
राष्ट्र भक्त कवि
अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता नहीं बनते तो वह एक बेहतरीन कवि बन गए होते। जैसा कि उन्होंने अपने काव्य संग्रह “मेरी 51 कविताएँ ” के परिचय में लिखा है। उनका राजनीतिक कार्य और उससे पहले पत्रकारिता से जुड़े कार्य उन्हें उस लगन के साथ कविता नहीं देखने देते थे, जैसा कि वह चाहते थे। उसी परिचय में अटल ने लिखा कि अपने घर के साहित्यिक माहौल में वे अपने बड़े भाइयों के साथ काफी कम उम्र में ही कवि सम्मेलनों में जाने लगे थे। अटल ने कहा कि उन्होंने अपनी पहली कविता ताजमहल पर लिखा था जो न तो ताजमहल की खूबसूरती पर न की मुमताज के लिए शाहजहाँ के प्यार पर आधारित था बल्कि उन श्रमिकों के शोषण पर आधारित था, जिन्होंने उस भव्य भवन का निर्माण किया था।
कविता की पहली कुछ पंक्तियाँ इस तरह है …
ये ताजमहल, ये ताजमहल
यमुना की रोती धार विकल
उनकी सबसे जानी मानी कविताओं में से एक ऊँचाई पर लिखी गई थी, जब उन्हें 1992 में पद्म विभूषण सम्मान मिला था। उनका समापन इन पंक्तियों से हुआ था।
“हे प्रभु,
मुझे इतनी उचाई कभी मत देना।
गैर को गले न लगा सके।
इतनी ऊँचाई मत देना।“
कवि के रूप में उनकी लोकप्रियता सीमित थी क्योंकि वे राष्ट्रभक्ति की कविताओं में विशिष्टता रखते थे। आजादी के बाद इस तरह की विषय कारगर नहीं रहे। उनकी राजनीतिक कार्य उनके अंदर की कवि के लिए बाधा बन जाते। एक बार उन्होंने जिक्र करते हुए कहा था, राजनीति के रेगिस्तान में कविता की धारा सूख गई।
एक कविता जिसमें वे चिंतन की मन स्थिति में दिखते हैं।
“क्या खोया, क्या पाया जग मे,
मिलते और बिछुड़ते मग मे
मुझे किसी से नहीं है शिकायत,
यद्यपि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें।“
अटल की सबसे विख्यात कविताओं में से एक है।
गीत नया गाता हूं। जब नायक का मन बुझा बुझा सा है
“गीत नहीं गाता हूँ
और बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलिस्म आज,
सच से भय खाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूं।“
दूसरे छंद में नायक का आत्मविश्वास लौट आया और वह कहता है
“ गीत नया गाता हूँ,
टूटे हुए तारों से ,
फूटे बासंती स्वर ,
पत्थर की छाती में
उग आए नव अंकुर।“
और अंत में
“काल के कपाल पर लिखता हूँ मिटता हूँ।“
कविता के अलावा अटल को शास्त्रीय संगीत भी बहुत अच्छा लगता। विशेष रूप से भीमसेन जोशी, अमजद अली खान और हरिप्रसाद चौरसिया का।
सांसद से प्रधानमंत्री
सन् 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार चुनाव जीतकर सांसद बने। इस चुनाव में जनसंघ को मात्र चार सीटें मिली थीं। और अटल को संसदीय दल का नेता बनाया गया। भले ही उन्होंने अभी 30 साल के पड़ाव को पार किया था। फिर भी भाषण के शानदार कौशल के कारण उन्हें नेता चुन लिया गया क्योंकि पार्टी अपनी बात रखने के लिए उनकी मदद ले सकती थी। सांसद को बहस के दौरान बोलने की जो समय निर्धारित किया जाता, पार्टी के सांसदों की संख्या पर आधारित होता था । जनसंघ को बोलने के लिए बहुत समय मिलता था। उसमें अटल पर संगठित तरीके से संवाद करने का दबाव बना। जिसमें अपनी दलील स्पष्ट और प्रबल रूप में जल्दी से रख देनी पड़ती थी । इससे कुछ मायने में अटल को और भी बेहतर वक्ता बना दिया। अटल भले ही पिछली सीट पर बैठते थे लेकिन जवाहर लाल नेहरू जैसे व्यक्ति भी बहस उनके हस्तक्षेप बड़े गौर से सुनते थे। किसी विदेशी मेहमान के लिए आयोजित सम्मान समारोह में नेहरू अटल जी का परिचय भारत के
‘ उदीयमान युवा सांसद ‘ कहकर कराया। अर्थात पंडित नेहरू भी अटल की काबिलियत का लोहा मानते थे!
जनता सरकार जब सत्ता में आई तो अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। यह स्वाभाविक था क्योंकि उन्हें अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों का विषय 1957 में संसद में प्रवेश करने के समय से ही अटल का सबसे पसंदीदा विषय था। विदेश मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान अटल ने कई देशों का दौरा किया। चीन के अलावा अफगानिस्तान, ईरान और रोमानिया और सोवियत संघ का भी दौरा किया। अटल जी को हिंदी भाषा से काफी लगाव था। इस लगाव का असर उस वक्त भी देखा जा सकता था जब 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर काम कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में देकर सभी के दिल में हिंदी भाषा का गहरा प्रभाव छोड़ दिया था। संयुक्त राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ। यह पहला मौका था जब यूएन जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को मिली थी। हिंदुस्तान की सियासत के कई दशकों का इतिहास इस चेहरे में सिमटा हुआ है। ज़ुबां के उस्ताद और भारत की राजनीति में एक कविता हैं अटल बिहारी वाजपेयी।
“टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी
अंतर को सुन व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता और मिटाता हूं।“
जनता सरकार अधिक समय तक नहीं चली। मोरारजी देसाई ने प्रधान मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया,
अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेएस और आरएसएस के कई सहयोगियों के साथ, विशेष रूप से उनके लंबे समय के और करीबी दोस्त लाल कृष्ण आडवाणी और भैरों सिंह शेखावत ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना की। वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने।
1995 में मुंबई में होने वाली भारतीय जनता पार्टी की वार्षिक बैठक में बिना किसी को बताए या संघ से बातचीत किए बगैर ही आडवाणी खड़े हो गए और वहाँ मौजूद लोगों से कहा कि 1996 में होने वाले अगले चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। सभागार में कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया, और फिर खुशी की लहर दौड़ गई। सबने ज़ोर शोर से उनका स्वागत किया,
‘ अगली बारी अटल बिहारी’….
का नारा गूंज उठा। 1996 के चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी जिसने 161 सीटों पर जीत दर्ज की जो कांग्रेस को मिली 140 सीटों से ज्यादा थी। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने बीजेपी के नेता अटल को सरकार बनाने का न्यौता दिया। हालांकि पार्टी को 272 की आधी सीटों की संख्या में काफी कम सीटें मिली थीं। अटल जी ने न्योता स्वीकार कर लिया और 16 मई 1996 में बीजेपी से आने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए। हालांकि 13 दिनों बाद अटलजी को अहसास हो गया कि वे बहुमत नहीं जुटा पायेंगे क्योंकि लेफ्ट और कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए हाथ मिला लिया। केवल शिवसेना, अकाली दल और समता पार्टी बीजेपी के साथ आने को तैयार थी। अटल ने लोकसभा में ऐलान कर दिया कि वह इस्तीफा देंगे। और दूरदर्शन पर देश भर में प्रसारित अपने भाषण में उन्होंने देश की जनता से पुरज़ोर अपील की। पहली बार किसी राजनीतिक भाषण का प्रसारण देश भर में लोगों के लिए किया गया था। अटल ने अपने मार्मिक भाषण में नकारात्मकता और बदले की राजनीति पर हमला किया। यह ऐसी राजनीति है जो हमें हर कीमत पर रोकने और अछूत बनाने की राजनीति है, यह स्वस्थ राजनीति नही है। उस दिन बीजेपी अकेली थी और सरकार बचाने में नाकाम रही, लेकिन अटलजी की प्रभावशाली भाषण में भारी संख्या में लोगों को प्रभावित किया। इसका असर निश्चित रूप से भविष्य में होने वाले चुनावों पर रहा जो 2 साल बाद होने वाले थे। अटल की 13 दिनों की सरकार के बाद वामपंथी गठबंधन वाली सरकार सत्ता ने इसका नेतृत्व कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर रहे थे और जिसने जून 1996 में शपथ ली। सरकार अप्रैल 1997 के तीसरे हफ्ते तक चल सकी, इसके बाद गुजराल के नेतृत्व वाली सरकार कुछ महीने चली और फिर गिर गई।
इसके बाद मार्च 1998 में नए सिरे से चुनाव जिसमें बीजेपी सबसे ज्यादा सांसदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसमें 182 सीटें जीती और उसे 25% मत मिले। इस बार कई पार्टियां बीजेपी के साथ आने को तैयार थी। इस प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 मार्च 1998 में मामूली बढ़त के साथ एक बार फिर प्रधानमंत्री बन गए। यह सरकार 13 महीने तक चली।इस बार सरकार तब गिरी जब एआईएडीएमके ने समर्थन वापस ले लिया। एआईएडीएमके के सुप्रीमो जयललिता ने तमाम तरह के मांगे सामने रखी। जिन्हें अटल सरकार पूरी नहीं कर सकी। सरकार बचाने की जीतोड़ प्रयास के बावजूद कठिन परिस्थितियों में सरकार लोकसभा में महज एक वोट की कमी से गिर गई। सरकार के गिर जाने के बाद अटल का दिल टूट गया। वह बहुत मायूस रहने गए।
अटल बिहारी बाजपेयी ने संसद में एक बात कही थी जो भारतीय जनता पार्टी की एक स्लोगन लाइन भी कही जा सकती और वो काफी मशहूर है। अटल जी ने एक बार संसद में कहा था
अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा
आखिरकार वो वक्त आ ही गया जब उनकी कही बातों ने आकार लेना आरम्भ कर दिया और अटल बिहारी बाजपेई भारत में प्रधानमंत्री बने। सिर्फ एक या दो बार नहीं अटल जी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने।
1999 के चुनावों में उतरने से पहले बीजेपी के पास कई मुद्दे थे। सबसे पहला तो यही कि सरकार को काम नहीं करने दिया गया, जिससे जनता में इस सरकार के लिए हमदर्दी थी। दूसरा मुद्दा था करगिल युद्ध में जीत का। एनडीए ने यह जताने की कोशिश की कि उसने पाकिस्तान को कश्मीर पर बुरी नजर नहीं डालने दी। देशभर में देशभक्ति का माहौल भी पैदा किया गया। पिछले दो सालों के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में भी सुधार हुआ था, इसका लाभ भी एनडीए के साथ था।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी
13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नई गठबंधन सरकार के प्रमुख के रूप में भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया।और अपने पांच साल के कार्य काल पूरा किया।
कार्य काल और महत्वपूर्ण निर्णय
अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कदमों के कारण ही वह भाजपा के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं।
साल 1999 में वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने आलोचना की थी। लेकिन वह बस पर सवार होकर लाहौर पहुंचे। वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की संज्ञा देकर सराहा गया। लेकिन इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ कराई और इसके हुए संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।
बात 1999 की है, जब कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी इस युद्ध को हर हाल जीतने के लिए बेताब थे। युद्ध जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगा, अटल जान चुके थे, ये युद्ध पहले हुए युद्ध सरीखे आसान नहीं हैं। इसलिए उन्होंने खुद मैदान-ए-जंग में जाकर अफसरों और जवानों का हौसला बढ़ाने का फैसला लिया। युद्ध के दौरान ही अटल कारगिल पहुंच गए और तीन दिन वहां रहे। वहां उन्होंने सेना के जवानों और अफसरों से युद्ध की स्थिति का जायजा लेते हुए वहीं रहकर उनकी हौसला आफजाई की। बाद में अटल जी को वापस दिल्ली भिजवाया गया। मई में कारगिल युद्ध की शुरुआत कर दी गई और 26 जुलाई को ऑपरेशन विजय यानी कारगिल पर फतेह कर युद्ध का औपचारिक समापन किया गया।
परमाणु परीक्षण
11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर अटल बिहारी वाजपेयी ने सभी को चौंका दिया। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था. इससे पहले 1974 में पोखरण 1 का परीक्षण किया गया था। दुनिया के कई संपन्न देशों के विरोध के बावजूद अटल सरकार ने इस परीक्षण को अंजाम दिया।जिसके बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह की रोक भी लगा दी थी जिसके बावजूद अटल सरकार ने देश की जीडीपी में बढ़ोतरी की पोखरण का परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक है।
एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।
– संरचनात्मक ढांचे के लिए कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिए केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया।
– राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास, नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढांचे को मजबूत करने वाले कदम उठाए।
– राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।
– आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतें नियंत्रित करने के लिए मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया।
भाषाण शैली का भारतीय राजनीति में बजता था डंका…
वह जब जनसभा या संसद में बोलने खड़े होते तो उनके समर्थक और विरोधी दोनों उन्हें सुनना पसंद करते थे। वाजपेयी अपने कवितामय भाषण से लोगों को अपना मुरीद बना लेते थे।
निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है। पिछले कई दशकों में वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते हैं।
महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक श्री वाजपेयी भारत को सभी राष्ट्रों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं। वह ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं जिस देश की सभ्यता का इतिहास 5000 साल पुराना है और जो अगले हज़ार वर्षों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।
भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचास से अधिक वर्षों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया। 1994 में उन्हें भारत का ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ चुना गया। 2015में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जब उनकी पार्टी की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र सरकार में थी।आखिरी बार उनकी तस्वीर साल 2015 में सामने आई थी जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनके आवास पर जाकर उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था।
काल के कपाल पर लिखने-मिटाने वाली वह अटल आवाज आखिरकार एक दिन हमेशा के लिए खामोश हो गई। वह 93 साल के थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 अगस्त 2018 को शाम 05.05 बजे अंतिम सांस ली। उनकी यह कविता उनके सम्पूर्ण जीवन को दर्शाती हैं _
“ ‘मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?’”
वो भाषाओं, विचारधाराओं और संस्कृतियों के भेद से परे एक कद्दावर और यथार्थवादी करिश्माई राजनेता थे। वो एक प्रबुद्ध वक्ता और शांति के उपासक होने के साथ साथ हरदिल अजीज और मंझे हुए राजनीतिज्ञ भी थे। वो वास्तव में भारतीय राजनीति के अजातशत्रु थे।
सुमन त्रिपाठी
पश्चिम बंगाल, भारत