भारत के महानायक:गाथावली स्वतंत्रता से समुन्नति की-अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्याबाई होल्कर
वैसे तो भारत की वीर भूमि पर बहुत से शूरवीरों ने जन्म लिया, मगर कुछ ऐसे भी शूरवीर हुए जो हमेशा के लिए अमर हो गए, जिनमें से एक नाम अहिल्याबाई होल्कर का है, महाराष्ट्र के अहमदनगर के चौंडी गाँव में सन् 1725  में जन्मीं अहिल्याबाई होल्कर के पिता माकोंजी शिंदे सम्मानित धांगर परिवार से थे, जो अपने गाँव के ‘पाटिल (प्रधान)’ भी थे।

अहिल्या बचपन से ही धर्म कार्य में रुचि रखती थीं। अहिल्या देवी की शिक्षा के पीछे उनके पिता का हाथ था, अहिल्या देवी का जीवन बहुत साधारण था मगर अचानक भाग्य ने करवट ली और वह 18 वीं सदी में मालवा प्रान्त की रानी बन गईं। बाजीराव प्रथम के सेनापति मल्हार राव होल्कर जब पुणे जाते समय तक उस गाँव में रुके, तो मंदिर में काम करतीं अहिल्या पर उनकी नजर पड़ी। तब उनकी उम्र मात्र 9 साल थी। उन्होंने अपने बेटे से उनकी शादी का प्रस्ताव रखा।
वह अहिल्या की सादगी से प्रभावित हो गए और उन्होंने अपने बेटे खांडे राव की शादी अहिल्या से करवा दी और अहिल्या मराठा समुदाय के राजघराने की बहू बन गयी।

आगे उनकी सास गौमाता बाई ने उनके चरित्र को और निखारा। अहिल्याबाई  के जीवन में एक दुखद घटना घटी जब उनके पति 1754 कुंभेर की लड़ाई में वीरगति  को प्राप्त हो गए। पति की मृत्यु के बाद राजकाज का बोझ भी अहिल्याबाई के ही कंधे पर आ पड़ा।

अहिल्याबाई ने अपने ससुर के कहने पर सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली , उन्होंने  न केवल जिम्मेदारी अपने ऊपर ली अपितु उन्हें सकुशल निभाया भी। सन 1766 में अहिल्याबाई मालवा की शासक बन गईं। अहिल्याबाई ने बहुत से युद्ध लड़े और एक साहसी योद्धा की तरह अपनी सेना का नेतृत्व किया।

सन 1767-1795 तक के अपने कार्यकाल में उन्होंने एक बुद्धिमान व समृद्ध शासक के तौर पर कार्य किया, वह रोज अपनी प्रजा की समस्याएं सुनती और उनका निवारण करती थीं, सरकारी पैसे का उपयोग कर उम्दा तकनीक से उन्होंने कई किले, विश्राम घर बनवाये, अपनी प्रजा के लिए कुएं और सड़कें बनवायीं। वह त्यौहार भी अपनी प्रजा के साथ ही मनाती थीं और दान पुण्य के कार्य भी बहुत करती थीं। अपने जीवन काल में उन्होंने नारी उत्थान के लिए बहुत से ऐसे काम किये जिससे लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।

मराठा साम्राज्य की कमान संभालने वाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर मध्य प्रदेश के खरगोन में स्थित महेश्वर नामक शहर को होल्कर राजवंश की राजधानी के रूप में स्थापित किया। उनके पति खांडे राव होल्कर और ससुर मल्हार राव होल्कर के निधन के बाद उन्होंने मालवा की विदेशी आक्रांताओं से न सिर्फ रक्षा की, बल्कि युद्धों में खुद सेना का नेतृत्व किया।

मल्हार राव होल्कर के गोद लिए हुए बेटे तुकोजी राव होल्कर इस दौरान युद्ध में उनके सेनापति होते थे। देश भर में सैकड़ों मंदिरों और धर्मशालाओं के अलावा तालाबों और सड़कों का निर्माण करवाने वाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मुगलों द्वारा की गई क्षति को ठीक करने में अपना पूरा जीवन खपा दिया। उस समय अंग्रेज अपना पाँव पसार रहे थे, ऐसे में उन्होंने धन का सदुपयोग करने की ठानी।

उन्होंने 28 वर्षों तक शासन किया। काशी के विश्वनाथ मंदिर को उन्होंने निर्माण के बाद सोने का पत्र दान में दिया था। एक बार उनके शासनकाल में डाकुओं का वर्चस्व बढ़ने लगा तो उन्होंने राज्य के कुछ युवाओं की बैठक बुलाई, जिसमें यशवंत राव ने ये काम अपने जिम्मे लिया। रानी की छोटी सी सेना की सहायता से उन्होंने 2 वर्षों में प्रदेश को डाकुओं से मुक्त कर दिया। यशवंतराव बाद में उनके दामाद बने। राजकुमारी मुक्ताबाई का विवाह उनसे हुआ।

इंदौर का नाम आते ही देवी अहिल्या का नाम सबसे पहले आता है। देवी अहिल्या ने अपने शासनकाल में ऐसे फैसले लिए जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे। उनमें जितनी शिवभक्ति थी, प्रजा के लिए वे जितनी मृदुभाषी थीं, राजपाट के नियमों में उतनी ही सख्त थीं। नियमों के पालन के मामले में वह अपने पति-पुत्र के प्रति भी सख्त रहती थीं। देवी अहिल्या ने 13 मार्च 1767 को रियासत की कमान अपने हाथों में ली थी। वे जनता की गाढ़ी कमाई बचाने के लिए एक-एक आने का हिसाब रखती थीं। नियम कायदों को लेकर काफी सख्त थीं। एक मर्तबा तो उन्होंने अपने पति तक को अग्रिम वेतन देने से इनकार कर दिया था। 28 बरस के अपने शासनकाल में उन्होंने देशभर में  कई मंदिर, धर्मशालाएं, सड़कें, तालाब और नदियों के भव्य घाट बनवाए। बताते हैं कि वे शिव की इतनी अनन्य भक्त थीं कि रियासत के हर ऑर्डर पर हुजूर शंकर लिखा जाता था।

अहिल्याबाई होल्कर ने न सिर्फ काशी, बल्कि सुदूर गया और हिमालय तक पर मंदिरों के निर्माण कार्य कराए। उन्होंने गुजरात के सोमनाथ में मंदिर का निर्माण करवाया। नासिक के पश्चिम-दक्षिण में स्थित त्र्यम्बक में उन्होंने पत्थर के एक तालाब और छोटे से मंदिरों का निर्माण करवाया। गया में उन्होंने विष्णुपद मंदिर के पास ही राम, जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियों वाले एक मंदिर का निर्माण करवाया। पुष्कर में भी उन्होंने मंदिर और धर्मशाला बनवाए। वृन्दावन में उन्होंने न सिर्फ 57 सीढ़ियों वाली एक पत्थर की बावड़ी (कुआँ) का निर्माण करवाया, बल्कि गरीबों का पेट भरने के लिए एक भोजनालय भी स्थापित किया। मध्य पदेश के भिंड में स्थित आलमपुर में एक हरिहरेश्वर मंदिर बनवाया। वहाँ मल्हार राव का निधन हुआ था। आज भी वहाँ विधि-विधान से पूजा-पाठ जारी है। गरीबों में भोजन और अन्य ज़रूरी वस्तुएँ वितरित करने के लिए उन्होंने एक ‘सदावर्त’ का निर्माण भी करवाया।

उन्होंने हरिद्वार में भी एक पत्थर का मकान बनवाया, जहाँ श्रद्धालु पिंडदान करने आते थे। हरकी पौड़ी से दक्षिण में उन्होंने इसका निर्माण करवाया। 17वीं शताब्दी के अंत में अहिल्याबाई होल्कर ने ही मणिकर्णिका घाट का निर्माण काशी में करवाया। असल में उन्होंने ‘मणिकर्णिका’ नामक कुंड बनवाया था, जिससे इस घाट का नामकरण हुआ। राजघाट और अस्सी संगम के बीच उन्होंने विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। साथ ही दंड पाणीश्वर का पूर्व मुखी शिखर मंदिर का भी निर्माण करवाया।

बद्रीनाथ में यात्रियों के रुकने के लिए उन्होंने कई भवनों के निर्माण करवाए। लगभग 600 वर्षों तक जो छत्र भगवान जगन्नाथ की शोभा बढ़ाता रहा, उसे अहिल्याबाई होल्कर ने ही दान किया था। इसी तरह महारानी ने केदारनाथ धाम में भी एक धर्मशाला का निर्माण करवाया। देवप्रयाग में उन्होंने गरीबों के लिए भोजनालय स्थापित किया। इसी तरह गंगोत्री में उन्होंने आधा दर्जन धर्मशालाएँ बनवाई। कानपुर के बिठूर (ब्रह्मवर्त) में उन्होंने ब्रह्माघाट के अलावा कई अन्य घाट बनवाए। काशी में उन्होंने मणिकर्णिका के अलावा एक ‘नया घाट’ भी बनवाया। वाराणसी के तुलसी घाट के पास ‘लोलार्क कुंड’ स्थित है, जहाँ हजारों वर्षों से सनातनी पूजा करते आ रहे हैं। इसे लेकर स्कन्द पुराण में भी कथा वर्णित है, जब राजा दिवोदास को काशी से विरक्त करने के लिए भगवान सूर्य यहाँ आए लेकिन खुद शिव की नगरी से मोहित हो गए। भदैनी में इसी से सम्बंधित एक कूप का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया। अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर नगरी को इसीलिए अपना स्थान बनाया, क्योंकि ये पवित्र नर्मदा के किनारे था और इसे लेकर पुराणों में कई कथाएँ थीं।

अंतत: 13 अगस्त 1795 में भारतवर्ष से इस चमत्कारी व्यक्तित्व ने हमेशा-हमेशा के लिए विदा ले लिया।

हैं धन्य धरा सौभाग्य बढ़ा, जहां शक्ति ने पग धारा था ।
अपने न्याय सुकर्मों से, मालवा को उद्धारा था ।।
न्यायप्रिय वो निष्ठावान, जगदम्बा ने था अवतार लिया ।
केवल शासन ही नहीं सँभाला था, प्रजा का सारा भार लिया ।।
यन्त्र मंत्र प्रजातंत्र ज्ञात था, शत्रु पर सदैव ही भारी थी ।
कुरीतियों का था नाश किया, वह मर्दानी नारी थी ।।
शासन निपुण शिव भक्तिनी का, कैसे महिमा बखाने शब्दों और वर्णों में ।
कोटि कोटि नमन करते हम, उन अहिल्या बाई के चरणों में ।।

सुनीता शुक्ला
भारत

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