कफ़न

कफ़न

घीसू और माधव दो पात्र हैं। घीसू पिता है माधव पुत्र है। बुधिया माधव की पत्नी है जिसकी मृत्यु हो चुकी है। घीसू और माधव गांव से पैसे इकठ्ठे करके शहर में कफ़न और अंत्येष्टि का सामान खरीदने जाते हैं लेकिन उस पैसे से शराब और चिकन खा लेते हैं। उन्होंने उम्र भर भूख देखी और दुख भी देखे। उन्हें भूख मिटाने का मौका जैसे ही मिला उन्होंने भूख से तृप्ति का वह अहसास लपक लिया। मुंशी प्रेम चंद की यह झकझोरने वाली कहानी 1933 के आसपास लिखी गयी है।

आइए इस कहानी को कुछ सत्य घटनाओं से आगे बढाते हैं।

घीसू और माधव जिंदा हैं और वे शहर में ही हैं। उन्होंने 1933 से 2021 तक कफ़न के पैसे से एक बार शराब पीने और चिकन खाने के एवज में करोड़ों गालियां खाई हैं। गालियां देने वालों में एक कॉमन गाली थी कि इतनी बेशर्मी इतनी भूख इतनी जहालत इतनी जलालत न आज से पहले देखी गयी, न कभी देखने को मिलेगी।

घीसू और माधव किसी शहर में हैं। वे किसी हॉस्पिटल के बाहर हैं। वे देख रहे हैं कि

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एक मुर्दा बाहर लाया जा रहा है। परिजन बिलख रहे हैं। एक युवा सुंदर स्त्री रो रही है, बोल रही है कि उसने 2800 के एक रेमेडीसीवीर के 50 हजार रुपये दिए। एक 800 वाला ऑक्सीमीटर 8000 में लिया। एम्बुलेंस का मैने दस किलोमीटर का 25000 दिया। डॉक्टर जो जो मंगवाते गए, जिस रेट पर मिला, लाती गयी, सब कई कई गुना दाम पर मिला। एक हफ़्ते से बिना सोये दौड़ रही हूं। मैं खुद बीमार हो गई हूं। और सबसे गलीच मुझे यह लगा कि यहां का मेडिकल मेल स्टाफ मेरी साड़ी खींच रहा था, मुझसे नजदीकियां बनाने की कोशिश कर रहा था। उसका नाम अमूक अमूक है। ऐसे माहौल में जब मेरे पति मर रहे हैं, किसी स्त्री की मनोदशा तक को नही समझते आप, भूख और हवस तारी है तुम पर हरामियों। कुत्तों, तुम सब जलील हो, कफ़न बेचकर खाने वाले दरिंदे हो तुम। वह स्त्री देखते ही देखते फट पड़ी, फुट पड़ी।

घीसू और माधव ने देखा, वे शर्मसार होते हुए एक कोने में दुबक गए। वहां खड़े लोगों के जमीर ने कोई उबाल नही खाया।

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घीसू और माधव एक हॉस्पिटल में खड़े हैं। डॉक्टर से कुछ मरीज लड़ रहे हैं कि ऑक्सीजन खत्म होने को है। आप इन्तजाम कीजिए। पैसे हमसे जितने मर्जी चार्ज कर लो। हम दे देंगे। डॉक्टर परिजनों से याचना करता है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति जिला प्रशासन करता है। किसी की पहुंच है तो आपूर्ति करवा दीजिये।

इतने में एक सायरन बजाती एम्बुलेंस आती है। डॉक्टर “इमरजेंसी केस है” बोलकर नए मरीज के इलाज के लिए निकल जाता है। नए मरीज को ऑक्सीजन दी जाती है। पूरी रात वह ऑक्सीजन पर रहता है। याचना करने वाले 30 परिजनों के मरीज बिना ऑक्सीजन के रात में मर जाते हैं। डॉक्टर को डर नही लग रहा क्योंकि रात में जो एमरजेंसी वाला मरीज आया था वह डी एम की माता जी थे।

घीसू और माधव की बाजुओं में एक अजीब सा ठंडापन पसरने लगता है। माधव ने घीसू से कहा, हमने तो मृत के कफ़न के पैसे खाए और इतनी गालियां पड़ी। इसने तो 30 मरीजो की जिंदगी से ही खेल कर दिया।

घीसू सिर्फ कांपता रहा, बोल कुछ नही सका।


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मेरे पिता जी का देहांत हो गया है डॉक्टर साहब, भाई भी यहां दाखिल है। क्या भाई को छुट्टी मिल सकती है अभी?

सुबह होगा सब। डॉक्टर ने झिड़क दिया।

सुबह मृत का परिजन कैश काउंटर पर हताश बैठा है। घीसू और माधव उसे देखकर चिंतातुर हुए। हर तरफ फ़ोन करके भी जो पैसे वह जुगाड़ कर पाया वह कुल बिल के आधे से भी कम थे। लड़के की बीमार मां गांव के महाजन के पास गहने लेकर गयी हुई है। लड़का मां के फ़ोन का इंतज़ार कर रहा है। ताकि मृत पिता औऱ बीमार भाई को छुड़वा सके।

घीसू और माधव ने आसमान की ओर हाथ फैला दिए।वे चुपचाप आसमान की ओर देखते रहे।

(इसे लिखते हूए मेरी उंगलियां कांप रही थीं। क्योंकि इसमें जो घटनाएं लिखी गयी हैं वे सत्य घटनाएं हैं)

वीरेंदर भाटिया
साहित्यकार
हरियाणा

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