एक लौ उम्मीदों की

एक लौ उम्मीदों की

धरती से लेकर आसमां तक
उदासियों का मंजर फैला है
हर तरफ़ हैं खबरें मौत की
हर तरफ़ आंसुओं का रेला है
सोचा था संभल जाएंगे हम धीरे-धीरे
ज़िन्दगी की उधड़ी तुरपाईयों को
जतन से सी लेंगे हम धीरे-धीरे
पर इम्तहान की हद अभी बाकी है
कुछ कर्ज़ की किश्त अभी बाकी है।।

हर आँगन विरान सा लगता है
हर बचपन बेजान सा लगता है
साँसों की डोर कहीं थम न जाये
मौसम-ए-मिज़ाज़ बदला सा लगता है
हर माथे पर हैं शिकन
हर चेहरे पर है थकन
कही साँसों की भीख
तो कही ज़िन्दगी की सीख है
हारते हुए भी जीत का हौसला
लौ उम्मीदों की रौशन सा करता है।।

है विश्वास…लौट आएगी
अपनी भी ज़िन्दगी पटरी पर
यह पतझड़ है ज़िन्दगी का
झड़ जाएंगे कुछ कमज़ोर शुष्क पत्र
नव जीवन की नवीन कोंपलें
मुस्कुराएंगी फ़िर से धरती पर
किन्तु बेज़ुबान दर्द
छोड़ जाएगा कई सवाल
उजले गिरेबानों की हस्ती पर।।

गर था इल्म… गर था इल्म
तूफ़ानों का झोंका
पलट कर फ़िर से आएगा
मानवता पर ये बेरहम
बेमरौअत कहर बरपायेगा
फ़िर क्यों न लगी लगाम?
लोगों की बेफजूल मस्ती पर
निकल रहे हैं जनाज़े आज
हर घर-हर बस्ती से
उठने लगी हैं उंगलियां अब
हुक्मरानों की सुस्ती पर ।।

ज़मीन पड़ने लगी है कम
अब बेगुनाह लाशों के लिए
कभी लगती थी कतारें लंबी
राशन पानी बिजली
और रेलवे टिकट की खिड़कियों पर
ये कैसा कहर बरपा है प्रभु?
लगने लगी हैं कतारें अब
मुक्तिधाम की यात्रा के लिए
शमशानों की भूमि पर
ध्वस्त हो रहे हैं …ध्वस्त हो रहे हैं अब
रीति रिवाजों व परंपराओं के सुदृढ़ किले
बिना स्वजनों व कर्मकांडों के
खत्म हो रहे ज़िन्दगी के सिलसिले ।।

मौत की इस सुनामी पर हमें
हर हाल में विराम लगाना होगा
मिलजुल कर देकर हाथ में हाथ
इस अज्ञात काल को
समस्त विश्व से भगाना होगा
बनाकर दूरी एक दूसरे से
दिल से दिल को मिलाना होगा
शब्दों में घोल कर स्नेह की मिसरी
हर पीड़ित का हौसला बढ़ाना होगा
फ़िज़ूल की बातों व अफवाहों से
हमें दामन अपना बचाना होगा
कुछ घूसखोर मौकापरस्तों व कालाबाज़ारियों को
फ़र्ज़ उनका याद दिलाना होगा
है हौसला जीतेंगे इस जंग को हम
है हौसला जीतेंगे इस जंग को हम
बनकर सच्चा देशवासी
उठकर ऊपर स्वार्थ से बस….बस
हमें कर्तव्य अपना निभाना होगा
हमें कर्तव्य अपना निभाना होगा ।।

डॉ. रत्ना मानिक
जमशेदपुर, झारखंड

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