कोरोना का कहर
किसी का सिन्दूर मिटा
तो किसी की लाली चली गई
किसी की ईद छिनी
तो कहीं दीवाली जल गई।।
बड़ा बेरहम है ये समय
नासूर सा चुभा है
किसी के आँख में है पानी
और कहीं रोशनी चली गई।।
माँ की मुस्कान खो गई
बच्चों से पिता छिन गए
कहीं लुटा चमन
तो कहीं बहारें चली गईं।।
अब तो रहम करो
अब कौन सा इम्तिहान बाकी है
छीनो न गुर्बत के इस दौर में
जो थोड़ी आस बाकी है।।
संभल जाएँगे अब रोक लो मालिक
किस गुनाह की सज़ा बाकी है
फरिश्ते भी छोड़ गए दुनिया
अब और क्या सामान बाकी है।।
बहारें लौटा दो प्रभु
सावन की झड़ी लगा दो
बच्चों के लब पे पहले सी
हँसी की लड़ी सजा दो।।
बदहाल हो चुका है इंसान का पुतला
इंसानियत की फिर से सौगात लौटा दो
सबक सिखा दिया अब बस करो
एक सुंदर जहान फिर से बसा दो।।
फरिश्ते भेज दो वापस
दुनिया हरी भरी कर दो
अब बिछड़े न कोई गर्द में
ये विश्वास लौटा दो।।
बहारें लौटा दो प्रभु
सावन की झड़ी लगा दो।।
डॉ मीनू पाराशर ‘मानसी’
दोहा-कतर