जीना सिखा दिया इस ‘आफ़ात’ ने मुझे

जीना सिखा दिया इस ‘आफ़ात’ ने मुझे

लूटा बहुत है वक्त औ हालात ने मुझे!
घायल किया है बस इक़ मुलाकात ने मुझे!!

अच्छे कभी थे हम भी जहां की निगाह में
बदनाम कर दिया है खुराफात ने मुझे!!

अफ़सोस मेरे हाल पे बिल्कुल न तुम करो
दी है सज़ा ये मेरी ही अगल़ात ने मुझे!!

पिंजरे भी उसने खोल दिये ऐतबार में
छोड़ा कही का भी नही ज़ज़्बात ने मुझे!!

रुक रुक के चल रही है मेरी सांस,और ना
मरने ही तो दिया इन लम आत ने मुझे!!

“हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश बारहां”
रोका कदम कदम पे ही हालात ने मुझे!!

देखा करीब से तुझे इतना कि ‘ज़िन्दगी’
जीना सिखा दिया इस ‘आफ़ात’ ने मुझे!!

अजय मुस्कान
जमशेदपुर, झारखंड

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