बसंत पंचमी की अनमोल याद
यूं तो बसंत पंचमी पर्व प्रति वर्ष एक नई ऊर्जा, उत्साह और उमंग लेकर आता है और एक नई स्वर्णिम स्मृति की छाप हृदय पर छोड़ जाता है, लेकिन वह बालपन का बसंत पंचमी का दिन कभी भुलाए नहीं भूलता है।
यूं तो जीवन कई खट्टी मीठी यादों का सागर है,उसमें से याद का एक मोती आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करती हूं..!!!
बात उन दिनों की है जब मैं करीब 9 साल की बच्ची थी और पावन नदी नर्मदा के किनारे बसे गांव महेश्वर में रहती थी। जब वहां पर बसंत पंचमी पर कालिदास समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें परम आदरणीय श्रद्धेय स्व. श्री शिवमंगल सिंह सुमन जी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे।उस आयोजन में मुझे अपनी छोटी बहन के साथ एक नृत्य नाटिका प्रस्तुत करना थी,जो महाकवि कालिदास रचित महाग्रंथ अभिज्ञान शाकुंतलम् के एक दृष्टांत पर आधारित था, जिसमें मुझे यक्षिणी का रूप धरना था और मंच पर एक विरहिणी के रूप में साड़ी पहन कर अपना नृत्य और अभिनय प्रस्तुत करना था क्योंकि मेरी उम्र उस समय काफी छोटी थी और मैं साड़ी पहनना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी और इतने भव्य कार्यक्रम की महत्ता को भी नहीं समझती थी ।
मुझे जब बाध्य किया जाने लगा कि इस भूमिका में साड़ी पहनना आवश्यक है, तब मैं रोने लगी और बार-बार यही कहती रही कि मुझे यह प्रस्तुति अवश्य करनी है….. किंतु साड़ी नहीं अपितु फ्रॉक पहनकर ही करनी है। संयोजक मंडल ने भी मुझे समझाया परंतु मैं रोती ही रही और साड़ी न पहनने की जिद करती रही। लगभग चार-पांच घंटे बीत गए और कार्यक्रम प्रारंभ होने वाला था अंततः मुझे साड़ी पहननी पड़ी। तब तक मैं इतना अधिक रो चुकी थी और मेरा चेहरा भी मेरे दुखी मन को प्रदर्शित कर रहा था।संयोजक गण मुझे बोले की बेटी इस प्रस्तुति में जो तुम्हारी भूमिका है,उसके लिए तुम्हारी इसी तरह की दुखी मुख्य मुद्रा आवश्यक है,अतः तुम स्टेज पर जाओ और अपनी प्रस्तुति दो, जो बहुत सफल रहेगी।
मैं रुआँसी ही थी किंतु अपनी प्रस्तुति के लिए बहुत संवेदनशील थी और सतर्क थी।मेरी प्रस्तुति की बहुत प्रशंसा हुई।यक्षिणी के रूप में मेरे अभिनय को बहुत सराहा गया।स्वयं आदरणीय श्री शिवमंगल सिंह सुमन जी ने मुझे आशीर्वाद प्रदान किया।
इस घटना को जो कि बसंत पंचमी पर घटित हुई थी,मैं आज तक विस्मृत नहीं कर पाई हूं। जब भी इस घटना के बारे में सोचती हूं तो स्वयं के बालहठ पर हँसी आ जाती है।और यह घटना मेरे हृदय पटल पर आज भी एक सुखद स्मृति के रूप में अंकित है।
मां शारदे का मुझे सुंदर आशीर्वाद प्राप्त हुआ जो कि मुझे सतत मिल रहा है और मैं अपनी लेखनी में नित नवीन सुधार के लिए मां सरस्वती को शत-शत नमन और वंदन करती हूं।
संगीता चौबे पंखुड़ी
कुवैत