माँ शारदे वर दे
तिल तिल तमस सम,
तड़पते मनुज को,
हिम कण सम शीतल,
ज्ञान तुषार की रौ दे,
माँ शारदे वर दे।।
अशांत अधीर,
अवसादित जड़ को ,
सागर के लहरों सी,
उल्लासित चेतन कर दे,
माँ शारदे वर दे ।।
क्या ये गलत है ?
क्या ये सही है?
इसी दोराहे पर आज मही है।
हंस वाहिनी
अपने वाहक के जैसा,
नीर क्षीर विवेक का कौशल,
जन मानस के हृदय में भर दे।
माँ शारदे वर दे ।।
अकिंचन कुमुद की झोली
ज्ञान की गूढ़ गगरी से भर दे।
माँ शारदे वर दे।।
कुमुद “अनुन्जया “
भागलपुर (बिहार)