जिंदगी एक एवरेस्ट है
एवरेस्ट के शिखर पर फतह पाने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल ,सही महिलाओं के लिए एक आदर्श व प्रेरणास्रोत हैं। उनके अचीवमेंट के पीछे उनका निरंतर संघर्ष, प्रयास, मेहनत, लगन और चुनौतियों का सामना पूरे आत्मविश्वास और साहस के करने की प्रकृति के कारण ही संभव हो पाया है ।उन्होंने अपने दृढ़ इच्छाशक्ति से संपूर्ण समाज और देश की महिलाओं के लिए मिसाल बन गई है ।यदि स्वयं पर विश्वास हो तो आप कभी भी अबला और असहाय नहीं हो सकती हैं। उनके उपलब्धियों का अनुभव ,ऊंचाइयों का अनुभव, जिंदगी का अनुभव ,मंजिलों का अनुभव और रोमांच के अनुभवों को, उन्होंने गृहस्वामिनी से शेयर किया
प्र – आज करोडों महिलाओं की आदर्श हैं आप।हम जानना चाहते हैं कि आप बचपन मे कैसी थी?
उ – हमारें समय में हमारे गांववासियों की सोच थी कि लड़कियों को केवल चिट्ठी -पत्री लिखने पढ़ने आने चाहिए इसलिए वे लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना -लिखाना भी जरूरी नहीं समझते थे, लेकिन मेरी इच्छा थी कि मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करूं ।आठवीं क्लास के बाद मुझे आगे पढ़ने की इजाज़त नहीं मिली। मैं बहुत जिद्दी थी, मैं घर का सारा काम करके भी जो समय बचता उसमें पढ़ाई किया करती थी ,मेरी मेहनत और लगन देखकर मां पिताजी भी राजी हो गए,मेरे आगे की पढाई के लिए। मैं बहुत ऐक्टिव थी । हमेशा कुछ न कुछ एडवेंचरस और कलचरल प्रोग्राम करती रहती थी ।
प्र -आप क्या बचपन से ही माउंटेनियर बनना चाहती थी ?
उ – मैं डॉक्टर बनना चाहती थी इसलिए मैंने इन्टर साईस से किया किंतु सही गाईडैंस न मिलने के कारण डॉक्टर न बन सकी । फिर मैंने ग्रेजुएशन आर्ट्स से किया ,फिर बी.एड और एम. एड की पढ़ाई की। मैं अपने गांव और आसपास गांव में सबसे अधिक पढ़ी लिखी थी ,उस समय लोगों का मानना था कि लड़कियों के लिए टीचिंग सबसे अच्छा प्रोफेशन है, मेरे क्वालिफिकेशन के अनुसार जॉब नहीं मिला तो मैंने इंतजार करने का फैसला किया ।
प्र – फिर माउंटेनियरिंग की ओर कैसे झुकाव हुआ ?
उ – उसी दौरान हमारी गांव में एक प्रख्यात माउंटेनियर किसी काम से आए थें। जब उन्हें पता चला कि मैं इतनी क्वालिफाइड होकर भी जॉब का इंतजार कर रही हूँ तो उन्होंने मुझे माउंटेनियरिंग का कोर्स करने का सुझाव दिया। मैं पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्टस में भी अच्छी थी। मुझे खाली बैठना अच्छा नहीं लगता था ,मैं हमेशा किसी न किसी प्रोग्राम में एक्टिव रहती थी ।उनके सुझाव और प्रोत्साहन के कारण मैं उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीच्यूट आफ माउंटेनियरिंग से प्राथमिक प्रशिक्षण पर्वतारोहण व ट्रेकिंग में एडमिशन ले लिया । मेरे परफॉरमेंस के लिए मुझे बेस्ट स्टुडेंट घोषित किया गया ।कुछ समय बाद मुझे इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की ओर से एक लेटर मिला जिसमें लिखा था कि मेरा सिलेक्शन एवरेस्ट ऐक्सपिडिशन के लिए हो गया है ,मैंने कोई जवाब नहीं दिया । कुछ दिनों बाद मुझे फिर इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की ओर से रिमाइंडर मिला , जिसे लेकर मैं अपने इंस्ट्रक्टर के पास गई तो उन्होंने मुझे उस लेटर का महत्व समझाया कि तुम बहुत खुशनसीब हो कि तुम्हें यह मौका मिला है । फिर तो मैंने एवरेस्ट को अपना लक्ष्य बना लिया। मेरा फुल फोक्स ,फुल कमिटमेंट के साथ अपना हर सोच ,हर कदम, हर प्रयास उसी दिशा में निरंतर लगन और मेहनत से लगातार ट्रेनिंग करती रही, तब जाकर मुझे फाइनल टीम में जगह मिल पायी।
प्र- एवरेस्ट पर जाना उसे फतह करने का क्या अनुभव रहा?
उ – माउंटेनियरिंग एक एडवेंचरस के साथ-साथ खतरनाक स्पोर्ट्स है। इसको अपनाने के लिए बहुत साहस और हिम्मत चाहिए । यहाँ जीवन और मृत्यु का संघर्ष होता है ,बर्फ, एक्सट्रीम कोल्ड और ऑक्सीजन की कमी या सब मिलकर इसे और भी मुश्किल बना देता है। लेकिन आपका दृढ़ निश्चय ,इच्छाशक्ति और साहस आपको आगे बढ़ने और मंजिल को पाने के लिए प्रेरित करता है ।उस समय मैं सोचा करती थी कि जब तेनजिंग नोर्गे कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?तेनजिंग नोर्गे(एक नेपाली पर्वतारोही जिन्होंने न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी के साथ पहली बार एवरेस्ट पर मानव कदम रखा था) इस तरह 1984 में आखिरकार मैं एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच गई ।
प्र- आपको किसका सपोर्ट सबसे अधिक मिला ?
उ- मैंने बिना किसी के गाईडैंस और इन्करिज्मेंट के ही एवरेस्ट को अपना लक्ष्य बनाया।उस समय लोगों की सोच थी कि पहाड़ चढ़कर क्या होगा और लड़कियों के लिए बेहद खतरनाक है , इंदिरा जी के बढ़ावे और प्रोत्साहन के कारण ही एवरेस्ट एक्सपिडिशन टीम में महिला को जगह मिल पाई थी । मेरे एवरेस्ट क्लाइम्ब के बाद जब मैं घर पहुंची थी ,उससे पहले इंदिरा जी का उत्तरकाशी में दौरा था । उन्होंने अपनी रैली में कहा था कि देखो , बछेंद्री ने लगन और मेहनत से एवरेस्ट पर फतह किया और देश का नाम ऊंचा किया है तो लोगों को बहुत हैरानी हुई कि इंदिरा जी ने बछेंद्री का नाम लिया है इसका मतलब बछेंद्री ने कोई बहुत बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है , इसके बाद तो कई पुरस्कार और सम्मान मिला।
प्र- आपका टाटा स्टील से कैसे जुड़ना हुआ?
उ- जब मेरा सिलेक्शन एवरेस्ट एक्सपिडिशन टीम में हुई थी उसी समय मुझे टाटा स्टील में जॉब ऑफर मिला, टाटा का नाम तो गांव गांव के लोग , क्या पढ़े लिखे क्या अनपढ़ सभी जानते थें। तब गाँववासियों को लगा कि मैंने कोई उपलब्धि पाई है । टाटा स्टील के जॉब को ज्यादा महत्व दिया गया मेरे एवरेस्ट एक्सपिडिशन टीम के सलेक्शन की तुलना में। उसी बीच में जमशेदपुर आकर टाटा स्टील ज्वाइन कर लिया। आज मैं टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में चीफ के रूप में कार्यरत हूँ। जिसके अंतर्गत हम लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाते हैं, जिसमें लोगों की नेतृत्व करने की क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ एक दूसरे से तालमेल बैठाकर कर टीम वर्क को बेहतरीन तरीके से कर सकें क्योंकि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक ऑर्गानाइजेशन और फैमिली में टीम वर्क बहुत महत्वपूर्ण है ।
प्र- एवरेस्ट पर फतह करने वाली पहली भारतीय महिला होना और अन्य लोगों के लिए आदर्श व प्रेरणास्रोत बनाया कितना चुनौतीपूर्ण हैं?
उ – जो पहली बार किसी भी क्षेत्र में अचीव करते हैं वह दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत और आदर्श बनते ही हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें ज्यादा मुश्किलों ,चुनौतियों और संघर्ष का सामना करना पड़ता हैं, अपने साथ-साथ दूसरों के लिए नया रास्ता बनाना पड़ता है जिससे अन्य महिलाओं में आत्मविश्वास और साहस आए कि जब बछेंद्री कर सकती है तो मैं भी कर सकती हूँ, अभी ज्यादा से ज्यादा महिलाएं माउंटेनियरिंग में आगे आ रही हैं, मेरा मानना है सभी के अंदर कुछ अलग और खास तरह की प्रतिभा और क्षमता होती हैं, बस जरूरत है उसे पहचानने की, जगाने की और खुद को मौका देने की ।
प्र – क्या आप ने ही प्रेमलता अग्रवाल और अरूणिमा सिन्हा को ट्रेनिंग दिया था ?
उ – प्रेमलता अग्रवाल और अरुणिमा सिन्हा दोनों ने समाज की लड़कियों और महिलाओं के सामने एक आदर्श व उदाहरण रखा है कि आप आपकी दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और साहस के सामने सभी मुश्किलें और कमियाँ छोटी हो जाती हैं। बस जरूरत है उसे जागृत करने की, जो साधारण हाउसवाइफ है उसके लिए प्रेमलता एक मिसाल है कि आप चाहे किसी भी उम्र में एक नया कीर्तिमान बना सकती हैं ।वह पहली महिला है जिसने सातों महाद्वीपों की ऊंची चोटियों पर फतह प्राप्त किया है । उसी तरह अरूणिमा ने यह संदेश दिया है कि यदि आप मानसिक रूप से सक्षम हो तो शारीरिक असक्षमता कभी रास्ता नहीं रूक सकती हैं।
उ- मैं सभी लड़कियों और महिलाओं को कहना चाहूँगी कि आप अपना लक्ष्य जरूर बनाएं, उसे लगन और मेहनत से पूरा करने की कोशिश करें , कभी भी गिव अप नहीं करें। महिलाओं का आत्मविश्वास और साहस उनका सबसे अनमोल गहना है जिसके सामने सारे गहने बेकार हैं।