बाजीगर
बैठी हूं आसमान तले सामने लहरों का बाजार है ,
उन्मादीत लहरों के दिखते अच्छे नहीं आसार हैं ।
अब उफनाती लहरों से कह दो राह मेरी छोड़ दे,
बैठी हूं चट्टान बनकर रुख अपना मोड़ ले ।
ज्वार भाटा से निकली प्रचंड अग्नि का सैलाब हूं,
हैवानियत को जलाकर खाक करने वाली आग हूं।
बार-बार पटकी गई हूं अर्स से मैं फर्श पर ,
बार-बार टूटी हूं टूटकर बिखरी हूं मैं ।
जो गिर गए जमीन पर उन्हें कमजोर ना समझना,
ऊंची उड़ान की यह तैयारी है उनकी ।
खो दिया है सब कुछ जिसने इस जमाने में
कभी ना दम लगाना तुम उसे आजमाने में।
गिरकर उठने वालों की दिशा होती कुछ और है।
खोकर पाने वालों का नशा होता कुछ और है।
गिरकर उठने की जिनमें है हिम्मत-ए-जिगर,
वही है इस जहां का दरिया दिल बाजी कर।।
मंजू भारद्वाज
हैदराबाद ,भारत