“गृहस्वामिनी को वार्षिकोत्सव की शुभकामना”
वार्षिकोत्सव के संग आज़ हर घर पहुंची गृहस्वामिनी,
साहित्य कर्म मानवता धर्म को समर्पित हमारी यह दैनंदिनी।
महिलाओं की यह पत्रिका महिलाओं की यह सहगामिनी,
महिलाओं द्वारा हीं है संचालित साहित्य समृद्धशालिनी।
सफर संघर्ष भरा शुरू हुआ था छ: बरस कहीं पहले,
एक-एक कलम के सिपाही जोड़ काम किए बड़े भले।
प्रिय अर्पणा संत जी संस्थापिका इसकी लेकर मजबूत हौसले,
कदम मिला कर कदम बढ़ा कर सबको लेकर
साथ चले।
काव्य गोष्ठी-कथा गोष्ठी या दिल से दिल तक बात हो,
लेखकों का मने विश्व महोत्सव कहीं दिन कहीं रात हो।
भारत के सच्चे महानायकों का पचहत्तर दिन गुणगान किया,
आजादी के अमृत का फिर सब ने मिल कर पान किया।
स्वतंत्रता से समुन्नती की गाथावली ने रचा स्वर्णिम इतिहास,
पचहत्तर दिनों तक अनवरत धड़कती रही देशप्रेम की सांस।
सामाजिक सेवा स्वास्थ्य सेवा में भी परचम लहराया,
भारत यात्रा के दौरान मैंने भी जुड़ने का अवसर पाया।
वार्षिकोत्सव के संग नववर्ष की है देती हूं शुभकामना,
नित्यप्रति प्रगति करे पत्रिका बनी रहे साहित्यिक भावना।
गृहस्वामिनी सत्यपथ पर अग्रसर हिंदी का परचम लहराए,
फैले कीर्ति इसकी चहुंदिशा में आओ मिलकर कदम बढ़ाए।
डॉ श्वेता सिन्हा
आयोवा, अमेरिका