सम्पादकीय

सम्पादकीय

सर्वप्रथम गृहस्वामिनी के सुधी पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।
‘गतवर्ष के तजुर्बात हों ,उत्कर्ष में विश्वास हो ,
गतवर्ष तो एक अंत है,नव वर्ष शुभ शुरुआत हो।’
यह गृहस्वामिनी का आज़ादी विशेषांक है अतः आज़ादी पर ज्ञानवर्धक आलेख एवं सुन्दर कविताओं से यह अंक सुसज्जित है ,और हो भी क्यों न , आज हमारा देश विश्व पटल पर सूर्य सी आभा बिखेर रहा है इसलिए कहना अनुचित न होगा-‘भारत देश महान,ना कोई उसके जैसा ,
हर धर्मों का मान करे , कोई उसके जैसा ?
बांटे प्रेम का ज्ञान,करे सम्मान,कोई हो चाहे जैसा,
करें सभी अभिमान ,तिरंगा शान, समय हो चाहे जैसा।’
जनवरी माह अनेक पर्वों की छटा लेकर आता है जैसे लोहड़ ,पोंगल, मकर संक्रांति,बसंत पंचमी, गुड़ी – पड़वा इसलिये इस अंक को,हर पर्व पर सृजित अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से सजाया है श्रेष्ठ रचनाकारों ने ।
त्योहारों के साथ साथ इस माह में जहां अनेक महान विभूतियों जैसे लाला लाजपत राय,सुभाष चंद्र बोस,स्वामी विवेकानंद जी का अवतरण हुआ वही हमारे राष्ट्र पिता गांधी जी का शहीदी दिवस भी आता है।इन सभी विभूतियों को कविताओं के माध्यम से श्रद्धांजलि भी समर्पित की गई है।
गृहस्वामिनी चूँकि महिलाओं की पत्रिका है इसलिए बिना हेल्थ टिप्स एवं कुकरी टिप्स के पत्रिका श्रृंगार पूरा कैसे होता ,तो लीजिए वो भी आपके लिए इस अंक में मौजूद है । कविताओं के साथ ,गद्य प्रेमियों के लिए कहानियां भी इस अंक को चार चांद लगा रही हैं।

आशा ही नहीं विश्वास है कि यह अंक आपको ज़रूर पसंद आयेगा ।

मंजु श्रीवास्तव’मन’

अतिथि संपादक

(एक कत्थक-नृत्यांगना ,साहित्यकार, और समाजसेविका
बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं।जो गृहस्वामिनी की ग्लोबल एम्बेसडर के साथ साथ महिला काव्य मंच वर्जीनिया की अध्यक्ष और वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच अमेरिका
की भी अध्यक्ष हैं। उनके ही शब्दों में –
मैं झरनों का गीत हूँ ,मैं मीरा की पीर हूँ ।
शब्दों से है प्रीत मुझे ,भावों से अमीर हूँ ।)

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