हमारी सांस्कृतिक भूमि अयोध्या नगरी
परमपुज्य अनंतश्री विभूषित योगी सम्राट श्री श्री १०००८. श्री देवरहा बाबा जी महाराज ने वर्षों पूर्व प्रयागराज के कुंभ के मेले मे संतो ,राजनितिज्ञों और आम जनता की जिज्ञासा एवं प्रार्थना को स्वीकार करते हुए ये सांत्वना दी थी कि,,,”अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण अवश्य होगा। जन जन को भावनात्मक रुप से जुड़कर इस ऐतिहासिक कदम में प्रयासरत रहने एंव सहयोग का आह्वान किया था ।।हम सौभाग्यशाली है कि ५ अगसत को हमलोगो ने इस ऐतिहासिक क्षण को जीया।अयोध्या नगरी अपने आप में एक अनूठी नगरी है। अयोध्या हमारी परपंरागत सांस्कृतिक औरआध्यात्मिक धरोहर है।।यहाँ कि पावन भूमि पर कदम रखते ही एक सुखद अनुभूति होती है। धन्य हैं वे अयोध्यावासी जिन्होंने यहां की पावन भूमि पर जन्म लिया।।शहर अपनी परम्पराओं एवं मान्यताओं में जीता है।।गली गली में सीताराम की ग़ुंज रहती है,घर घर राममय है,
“सियाराम मय सब जग जानी ,
करहु प्रणाम जोरी युग पाणी।”
तुलसीदास जी की ये पंक्तियां जन जन के हृदय में बसा है। सरयू मैया की शोभा अवर्णनीय है, अविरल कलकल बहती धाराये,वहां का किनारा, सजी सजाई नांवें और नाविक भक्तो को सरयूस्नान कराने और दर्शन कराने के लिये त़़त्पर रहते हैं। मंदिरों की शोभा भी अवर्णनीय है। भिन्न-भिन्न पंथों को मानने वाले विभिन्न अखाड़ों का समुदाय,सबके अपने अपने रंग,अपनी-अपनी सजावटे, आधुनिकता से दूर पुरी तरह पारम्परिक एवंआध्यात्मिक। बाजारों की रौनक लोगों कि वेशभूषा भाषा खानपान सभी अपनी अपनी मानयताओं में रचा बसा हुआ राममय ।हनुमान गढ़ी, अयोध्या का पौराणिक और प्रमुख मंदिर है। विशाल किलेनुमा ऊंचाई पर हनुमान जी महाराज जो कि संकट मोचन है, विराजमान हैं। हनुमान गढ़ी के पार्श्व में ही सुग्रीव किला है। मान्यता ये है कि भगवान सीता राम,लक्ष्मण जी और हनुमान जी का पुष्पक विमान अयोध्या में इसी स्थ़ान पर उतरा था। भरत लाल ने भगवान राम के लिए इस महल का निर्माण कराया था।बाद में भगवान राम ने सुग्रीव जी महाराज को भेट में ये किला दिया। जिसका पुरातत्व विभाग प्रमाण भी दिए और सुग्रीव किला एक संरक्षित अस्थान भी है।
बर्षों पहले अयोध्या में चाऱो तरफ टिलाये थी , सुग्रीव किला भी एक टिला पर बना है।परमपुज्य योगी सम्राट देवराहाबाबा जी महाराज के आदरणीय शिष्य श्रीमद् जगत गुरु श्री रामानुजाचार्य पुरूषोत्तमाचय जी महाराज की तपोभूमि और उनका आश्रम भी है।।राम जन्मभूमि स्थान पार्श्व में है।।कनक भवन,मणी पर्वत, सीता जी को माताओं ने मुंह दिखाई में दी थी , प्रांगण में प्रवेश करते ही भवन की भव्यता और चकाचौंध के दर्शन की एक सुखद अनुभूति होती है।।सावन के महीने में मणी पर्वत के वृक्षों की एक एक डाल पर झुला डाला रहता है और सजे संवरे सियाराम विराजमान रहते है। अद्भुत,मनोरम,छटा का मंत्र मुग्ध हो कर भक्त अवलोकन करते है।राजा दशरथ जी का महल, नन्दी ग्राम में भरत लाल का परण कुटीर, सरयू जी का उदगम स्थल, भगवान राम के अराध्य भगवान शिव का नागेश्वर स्थान,सभी जीवंत और सजीव लगते हैं। अयोध्या के आधुनिक महाराजा का महल भी दर्शनीय स्थल हैं। पुनीत अयोध्या नगरी के दर्शन मात्र से ही भक्त राममय हो जातें हैं।सौभागयशाली अयोध्यावासियों का बिना किसी भेदभाव के सैलानियों को स्नेह और अपनापन से सहयोग करना अनूठा और अद्भुत है।साम्प्रदायिकता का रंग जो राजनितिज्ञों ने दिया है दुखद है।सभी भाई भाई की तरह सियाराममय हो कर आपस में मिल जुल कर अयोध्या नगरी के नगीने है। जन जन के हृदय में बसा पावन पुनीत अयोध्या धाम, जिसके दर्शन से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है,को शत शत नमन
“मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहार,,”अयोध्या में जन्म, लें ले रामचंद्र ज्ञानी ।सुखद अनुभूतियों एवं भावनाओं के साथ पुनः कोटि-कोटि नमन
उपमा कुमार
पुणे, महाराष्ट्र