अरुण कुमार जैन की कविताएं 

अरुण कुमार जैन की कविताएं 
प्रकृति के साथ

पत्थरों और पहाड़ों से
कौन सर फोड़ना चाहता है
बस पहाड़ों के नाम से
हर कोई मुंह मोड़ना चाहता है

मगर कभी देखो जाकर
उन पहाड़ों की तस्वीर
समझो कभी उनकी तासीर
मौसम बदलते रंग और नजारे

पहाड़ों के साए में बहती नदी
उनके ऊपर से बहते झरने
उनके आगोश में बनती झीलें
कल कल किलकारी वाला संगीत

उत्तुंग हिमालय की पर्वत श्रृंखला
उनके पहाड़ों की सीधी ढलान
भोर में चमकते स्वर्णिम ग्लेशियर
घाटियों में बहती निर्मल नदियां

सर चढ़ते हुए सूरज की तेजी
उसमें पिघलती बर्फ की बूंदें
ठंडी गमक में सुकूनी महक
प्रेम और जुनून का एहसास

जब हम तासीर नहीं समझते
पर्वत की पीर नहीं समझते
किए जाते हैं मनमाना व्यवहार
प्रकृति पर लगातार अत्याचार

तब यही सुंदर परिदृश्य देते हैं
खौफ का मंजर अचानक से
कभी बादल बन फटते हैं और
कभी बाढ़ और भूस्खलन से

तबाह कर देते हैं गांव के गांव
सड़कें खो जाती हैं बह जाती है
सैलाब में घर, आदमी, वाहन
सब एकदम से बदल जाता है

बरसों की मेहनत से बनाया घर
उजड़ जाता है उखड़ जाता है
टूटकर बिखर जाता है महल
पहाड़ प्रकृति बदला लेती है

आदमी को उसकी औकात
क्षण भर में बता देती है वह
जता देती है अपना गुस्सा
बरसों का दबा हुआ पल में

प्रकृति को समझो सहेजो
खिलवाड़ बंद करो उसके साथ
हाथ से मिलाओ हाथ और
चल पड़ो प्रकृति के साथ

2.रंग भर दे ,,,, दिल खाली पड़े हैं

फूल खिला रखे हैं तुमने
अकेले में फूल की तरह
मुस्कुराने के लिए और
सतरंगी रंग में रंग जाने के लिए

खिलो और रंगो सारा आकाश
अपने आसपास सारा जहां
जहां तक नजर जाए मंजर
लूट लो सारा जहां हमारा है

लोग हैं की अपने अपने बिल में
दिल लगाकर चुप बैठे हैं
गैर की मिल्कियत पर नज़र
अपना न आए कभी नज़र

कौन लूटकर कब चला जाएगा
किसी को नहीं पता फिर भी
बचाकर अपनी मुस्कान बैठे हैं
रंग भदरंग जिंदगी के उदास बैठे हैं

जी जिंदगी उल्लास से हंस
बस सके तो दिलों में बस
सारी कायनात को बांहों में ले
ठहाका लगा आसमा गूंज जाए

यही दिन जिंदगी का सबसे
अहम और खूबसूरत दिन है
और जिंदगी जीने का तजुर्बा
सबको बता सबसे साझा कर

मुस्कुरा अपार प्यार से जी
रंग भर दे की दिल खाली पड़े हैं

अरुण कुमार जैन
इंदौर, भारत

 

0