राम और राजनीति
संस्कृत के रम् धातु से बने कण-कण में बसने वाले राम,शब्द और नीति दोनों ही दृष्टियों से राजनीति की हवा में रचे बसे नजर आते हैं।राम की राजनीति को दो प्रकार से देखा जा सकता है। ‘राम की राज-नीति’ और ‘राम की राजनीति’। राम के नाम पर की जाने वाली राजनीति आज के उदारवादी लोकतांत्रिक माहौल में एक विवादास्पद स्थिति पैदा कर सकती है, जो किसी भी देश और काल की प्रगति के लिए बाधक बन सकती है। जब राम के नाम पर राजनीति होती है तो शासक सपने तो राम-राज्य के दिखाते हैं परंतु स्वयं आचरण से मर्यादा पुरुषोत्तम राम का स्वरूप नहीं बन पाते। लिहाजा, राम की मर्यादा और संस्कारों को अपनाये बिना राम राज्य की स्थापना में असफल हो जाते हैं और महज राम का नाम स्वार्थ सिद्धि में उपयोग करने के अलावा कुछ और नहीं कर पाते। यह खोखली नीति राम की नीतियों से मेल नहीं खाती, फलस्वरूप, नकारात्मक परिणाम देती है। लोग हमेशा अपने शासक को कुशल, सच्चा और प्रजा के प्रति समर्पित देखना चाहते हैं, जो राम राज्य की रूप रेखा से मेल खाती है।इसीलिए जब कथनी और करनी के अंतर को महसूस करते हैं तो शासक के प्रति विश्वास नहीं रख पाते और निराशा से घिर जाते हैं। परंतु, राम की राज- नीति एक ऐसा विषय है, जो हर देश और हर काल के लिए सकारात्मक स्थितियां बनाता है और यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह मानवता के कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है। राम को ईश्वर का अवतार मानने वाले और राम को एक आदि पुरुष के रूप में देखने वाले– दोनों तरह के लोगों के लिए राम की राज-नीति एक आदर्श राज्य की नीतियाँ दर्शाती है,जहाँ हर जीव को बोलने की, जीने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त है चाहे वह राज्य का एक आम नागरिक ही क्यों न हो।यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी स्वतंत्र और प्रसन्न हैं।
एक ऐसा राज्य,जहाँ हर ओर धर्ममय वातावरण और तत्जन्य सुख-समृद्धि का वातावरण हो, आरंभ से ही मानव मन की लालसा में रहा है। बाल्मीकि रामायण में अवध में राम के राज्याभिषेक के बाद ऐसे ही राज्य का वर्णन किया गया है और ऐसे ही आदर्श राज्य को राम राज्य कहा गया है। हर देश के शासक को राज्य की खुशहाली या बदहाली का जिम्मेदार माना जाता है। एक लोकप्रसिद्ध उक्ति है कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ यानी जैसा राजा है, वैसी ही प्रजा होती है। संभवतः राम के अतिरिक्त किसी भी राजा के राज्य में ऐसा नहीं हुआ कि सारी प्रजा पूर्णतया प्रसन्न और संतुष्ट हो तथा राज्य में चारों ओर खुशहाली तथा धर्म परायणता हो। भारतीय परिपेक्ष में देखें,तो संभवतः राम ही एकमात्र ऐसा उदाहरण प्रतीत होते हैं,जिनके शासन काल में पूर्णरूपेण जनता खुशहाल, संतुष्ट,कर्तव्यपरायण और अधिकारों से परिपूर्ण थी। शायद इसी वजह से राम की राज-नीति को आदर्श राज-नीति का दर्जा दिया गया है।दरअसल,राम-राज्य का अर्थ ही हो गया है– एक आदर्श और सुशासित राज्य। देखा जाए, तो राम की राज-नीति राम कथा की सर्व सुकृति और लोकप्रियता की एक प्रमुख अवधारणा भी है। राम एक सचेत और कुशल शासक तो थे ही पर, उन्होंने अपने सच्चरित्र और मर्यादा स्थापना से परिवार, समाज और देश का सच्चा और अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा भी प्रजा को दी थी।तुलसीदास के रामचरितमानस और वाल्मीकि के रामायण,दोनों ही ग्रंथों में राम राज्य की आदर्श और कुशल नीतियों का वर्णन है। जिन्हें राम की राज-नीति कह सकते हैं। तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’ में राम की राज-नीति का वर्णन करते हुए कहा गया है..
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
रामराज नहिं काहुहि ब्यापा।।
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा।
सब सुंदर सब विरुज सरीरा।।
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।
नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना ।।
सब गुनाग्य पंडित सब ग्यआनई।
सब कृतग्य नहिं कपट सयानी ।।
तुलसीदास की रामराज्य परिकल्पना में राजा एवं राजा का सुनियोजन बहुत ही उत्तम है।इसमें आदर्श शासन व्यवस्था का प्रारूप प्रस्तुत किया गया है।सभी लोग परस्पर प्रेम से जीवन निर्वाह करते हैं तथा कोई किसी के प्रति शत्रु भाव नहीं रखता है। उसमें सुख का आधार भौतिक समृद्धि न होकर आध्यात्मिक भावना है। राम मानवता के चरम आदर्श हैं। उनका चरित्र अनुकरणीय है। राम राज्य की शासन व्यवस्था अद्भुत है। सभी लोग वेद मार्ग पर चलकर प्रेम सहित जीवन व्यतीत करते हैं। कोई भी व्यक्ति सपने में भी पाप नहीं करता तथा सभी व्यक्ति राम की भक्ति में लीन होकर पूर्णतया फलते फूलते हैं। रामराज की कल्पना करते हुए तुलसीदास ने राजा के लिए कुछ गुणों का उल्लेख किया है.. जैसे, राजा का लोकवेद द्वारा विहित नीति पर चलना, धर्मशील होना,प्रजा का पालक होना, सज्जन एवं उदार होना, स्वभाव का दृढ़ होना, दानशील होना आदि। राम में आदर्श राजा के सभी गुण विद्यमान हैं ।राम को अपनी प्रजा प्राणों से भी अधिक प्रिय है, तो प्रजा को भी अपने राजा राम प्राणों से अधिक प्रिय हैं।सबके प्रति राम का व्यवहार आदर्श एवं धर्म के अनुकूल है। ऐसे रामराज में विषमता टिक ही नहीं सकती है और सभी प्रकार के दुखों से प्रजा को त्राण मिल जाता है। यही नहीं, रामराज में व्यक्ति जिस वस्तु की इच्छा करता है, वह उसे तत्काल प्राप्त होती है। तुलसीदास का रामराज्य एक आदर्श शासन व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, दार्शनिक, साहित्यिक हर परिस्थिति अपने आदर्श रूप में है।तुलसीदास के राम राज्य में निश्चय ही एक आदर्श शासन व्यवस्था है, जिसका मूल आधार लोकहित एवं मानवतावाद है।
इसी तरह बाल्मीकि रामायण में भी तीन स्थानों पर राम की राज नीति का उल्लेख है। पहले स्थान पर बालकांड में नारद जी भविष्य की कथा बताते हुए कहते हैं कि जो राम अयोध्या पर राज करेंगे वह रामराज कैसा होगा और इसकी क्या विशेषताएं होगी। दूसरे स्थान पर वाल्मीकि युद्ध कांड में राम की नीतियों की विशेषताएं बताते हैं और अंत में उत्तरकांड में भरत के मुख से राम राज्य की नीतियों का वर्णन मिलता है,जो भारतीय संस्कृति को आदर्श रूप में चित्रित करता है। वाल्मीकि के अनुसार राम राज्य की छः प्रमुख विशेषताएं हैं। इस काल में सभी सुखी हैं, सभी कर्तव्यपरायण हैं, सभी दीर्घायु हैं, सभी में दाम्पत्य प्रेम है, सब की प्रकृति उदार है और सभी में नैतिक उत्कर्ष देखा जाता है। राम राज्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी प्रसन्न, सुखी संतुष्ट और ह्रष्टपुष्ट हैं। सुख या संतुष्टि तन और मन दोनों की होती है। शरीर के स्वस्थ होने का अर्थ है कि वह रोग व्याधि से मुक्त है और मन की स्वस्थता मतलब सकारात्मकता है। विभिन्न प्रकार के मनोविकार जैसे लोभ, ईर्ष्या, असंतोष आदि भी हमारी प्रसन्नता में बाधक होते हैं। यह मानवीय संबंध में तरह-तरह की कटुता और विकृतियों को भी जन्म देते हैं, जिससे समाज और व्यक्ति दोनों ही प्रभावित होते हैं। राम राज्य में मन से भी सभी के सुखी होने का तात्पर्य है कि किसी को किसी प्रकार का दुख नहीं है,मन की विकृतियां नहीं हैं,लोग प्रेमपूर्वक एक दूसरे के साथ रहते हैं। वस्तुतः यहां कोई किसी को दुख पहुंचाता भी नहीं है। स्पष्ट है कि समाज में ऐसी स्थिति की कामना हर मनुष्य करता है ।वाल्मीकि के शब्दों में, “निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति(वा.रा.यु.कां.१२८.१०१) अर्थात राम राज्य में रोग और शोक से रहित लोग थे तथा सर्वे मुदितमेवासीत् अर्थात सभी प्रसन्न रहते थे। इस समय की स्थिति सतयुग के समान थी।यदि वर्णित विशेषताएं देखें तो राम के राज्य में सभी सुखी हैं, कर्तव्यपरायण हैं, दीर्घायु हैं। सभी में दांपत्य प्रेम है, उनकी प्रकृति उदारता की है और सभी में नैतिक उत्कर्ष है। हर व्यक्ति प्रसन्न है,सुखी है, संतुष्ट है और स्वस्थ है।व्यक्ति के तन और मन दोनों तरह से सुखी होने का तात्पर्य है कि किसी को किसी प्रकार का दुख या विषाद नहीं है। नैतिकता इतनी परिष्कृत है कि प्रजा कर्तव्य परायण और लोभरहित होकर पूर्णतया संतुष्ट और आनंद में डूबी है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम राज्य की छः प्रमुख विशेषताएं हैं। इस काल में सभी सुखी हैं, सभी कर्तव्य परायण और दुर्गायु हैं, सभी में दाम्पत्य प्रेम है, प्रकृति उदार है और सभी में नैतिक उत्कर्ष देखा जा सकता है। रामराज्य की बहुत बड़ी विशेषता यह है कि सभी तन मन से प्रसन्न, सुखी,संतुष्ट तथा ह्रष्टपुष्ट हैं।सुख और संतुष्टि तन और मन दोनों की है। शरीर के स्वस्थ होने का अर्थ है कि वह रोग व्याधि से मुक्त है,किसी को किसी तरह की बीमारी या क्षोभ नहीं है। स्वस्थ शरीर सुख का बड़ा कारण होता है।मन के विभिन्न प्रकार के विकार जैसे लोभ, ईर्ष्या, असंतोष आदि भी हमारी प्रसन्नता में बाधक होते हैं। यह मानवीय संबंधों में तरह-तरह की कटुता और विकृतियों को भी जन्म देते हैं जिससे समाज और व्यक्ति दोनों ही प्रभावित होते हैं। राम राज्य में सभी के सुखी होने का तात्पर्य है कि किसी को किसी प्रकार का दुख नहीं है।मन से भी सभी संतुष्ट और सुखी हैं। वस्तुतः यहां कोई किसी को दुख पहुंचाता ही नहीं है। स्पष्ट है कि समाज में ऐसी स्थिति की कामना हर मनुष्य करता है। वाल्मीकि के शब्दों में,”निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशसति”(वा.रा.यु.का.१०१)अर्थात राम राज्य में सब रोग और शोक से रहित थे तथा “सर्वे मुदितमेवासीत्” अर्थात सभी प्रसन्न रहते थे। इस समय की स्थिति सतयुग के समान थी।
वाल्मिकी रामायण में रामराज्य को अत्यंत कर्तव्यपरायण बताया गया है।किसी भी राज्य में खुशहाली तभी आती है जब सभी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी पूर्वक करते हैं ।यदि हर व्यक्ति अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने लगे तो किसी भी कालखंड में राम राज्य आने में समय नहीं लगता। श्रेष्ठ सामाजिकता एवं नैतिकता है रामायण काल के राम की राज-नीति में। हमारे देश में व्यक्तियों के कर्तव्य निर्धारित करने के लिए वर्णाश्रम व्यवस्था रही थी और सभी मनुष्य में कर्तव्य परायणता विद्यमान थी।सभी व्यक्ति लोभरहित होकर अपने-अपने कर्म के अनुसार मेहनत में लगे रहते थे और संतुष्ट रहते थे। राम राज्य में भी यही स्थिति दर्शायी गयी है।इसके अतिरिक्त सभी पूर्ण आयु प्राप्त करते थे। वाल्मीकि कहते हैं रामराज्य में कभी भी किसी को मृत्यु का भय नहीं था, विलाप नहीं सुनाई देता था।न कोई दरिद्र था,न दुखी था।धरती सदा हरी-भरी और फल फूल से भरी रहती थी।
किसी भी समय में पति-पत्नी के बीच परस्पर प्रेम,सौह्या्र्द्र और विश्वास परिवार की और साथ ही समाज की खुशी का मुख्य कारण होता है। राम राज्य में स्त्रियां तो पतिव्रता थीं ही, पुरुष भी एक पत्नीव्रती थे…
एकनारि व्रतरत सब झारी।
ते मन वचन क्रम पति हितकारी।।
स्वयं राम तथा शेष तीनों भाइयों के एक पत्नीव्रती होने का उदाहरण प्रजा के सामने था।मनुष्य प्रकृति से बंधा है, उससे अलग रह नहीं सकता.. बल्कि कहा जाए तो उसे प्रकृति की दया की नितांत आवश्यकता होती है। राम राज्य में प्रकृति भी मनुष्य पर मेहरबान थी। वहां दुर्भिक्ष का भय नहीं था। आग और पानी भी नुकसान नहीं पहुँचाते थे। सभी नगर धन-धान्य से संपन्न थे। यहां वर्षों की जड़ें भी मजबूत थीं। वृक्ष सदा फूलों और फलों से लदे रहते थे।मेघ आवश्यकता के अनुसार बरसते थे।वायु मंद गति से सुख स्पर्श देती हुई चलती थी और हरियाली चारो तरफ संपन्निता दर्शाती थी।वाल्मीकि के रामराज्य में नैतिकता अपने चरम उत्कर्ष पर दिखाई देती है। नैतिकता ही समाज को मजबूती और श्रेष्ठ पदार्थ प्रदान करती है। वाल्मीकि के अनुसार राम राज्य में चोर लुटेरों का भय बिल्कुल भी नहीं था नानर्थ कश्चिदस्पर्शत् अर्थात् अनर्थकारी काम कोई करता ही नहीं था। सारी प्रजा धर्म में तत्पर रहती थी। कोई झूठ नहीं बोलता था। उदारता, परोपकारिता आचौर्य और विप्रों की सेवा करना यह गुण सभी व्यक्तियों में आवश्यक रूप से होता था। राम राज्य में सभी ज्ञानी थे इसलिए दंभरहित कृतज्ञ और अकपट की भावना मन में रखते थे।
नैतिकता ही समाज को मजबूती और श्रेष्ठता प्रदान करती है। यह राम की राज-नीति ही थी कि स्वयं को मर्यादा का पर्याय बनाकर उन्होंने समाज के सामने एक मूर्त्त उदाहरण प्रस्तुत किया और हमारी संस्कृति के पर्याय बन गए। हर काल में हर देश के लिए उनका यह चरित्र एक मजबूत स्तंभ बनाकर मानवता को दिशा दिखाता रहेगा और उनकी राज-नीति एक आदर्श राज्य की स्थापना के लिए हर काल,हर देश में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बनकर मानवता को प्रेरित करती रहेगी।
अर्चना अनुप्रिया
दिल्ली, भारत
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