अनु बाफना की कविताएं 

 

अनु बाफना की कविताएं 

1.मशाल सी कलम

प्रखर हो सूर्य किरणों-सा,तपिश से लोह भी पिघले ।

करे जो सत्य-आराधन,खरा सोना सदा उगले ।

दिखे जब राष्ट्र खतरे में, कि तीरों की करे वर्षा ।

बहे जब लेखनी ऐसी,सितारा देश का उजले ।

रचा साहित्य ऐसा था,लगे वनराज की गर्जन।

जगाये ओज तन-मन में, उफन जाया करे धड़कन ।

डरे ना उस हुकूमत से,गढ़ा इतिहास भारत का ।

भरा हुंकार लेखन में,समर में ज्यों हुआ कम्पन ।

दमकता भाल ओजस्वी,अहम् ब्राह्मण सरीखा था ।

मुखर थी क्रान्ति की धारा, सृजन का स्वाद तीखा था ।

कला संपन्न भावों से, कलम स्याही झरे निर्झर ।

जले दीपक मशालों से,नवल उनका तरीका था !

2.तू अस्त्र-शस्त्र धार ले 

बढ़ी चलो,रुको नहीं,कि युद्ध शेष है अभी ।

उतार शस्त्र क्यों दिए,खुले सुकेश हैं अभी।

समाज आँख मींच के, खड़ा सदैव मौन है ।

न शब्द कान में पड़ें,सुने गुहार कौन है ।

तू अस्त्र-शस्त्र धार ले,समय बिगुल बजा रहा ।

कि कृष्ण सा नहीं कोई, सहायतार्थ आ रहा।

युगों-युगों छली गयी,निरीह जीव जान के ।

मिटा दिए गए निशान ,हाय स्वाभिमान के ।

न भूल सृष्टि ने दिया,तुझे अदम्य जोश है ।

प्रचंड है पराक्रमी,तू वीरता का कोष है ।

तू अस्त्र-शस्त्र धार ले,समय बिगुल बजा रहा ।

कि कृष्ण सा नहीं कोई, सहायतार्थ आ रहा।

सवाल चीख-चीख के, समाज पूछता रहा ।

कि अग्नि में समा गयी, सिया ने कष्ट था सहा ।

उपासना करें सभी,सदैव देवी मान के ।

प्रपंच क्यों रचें,धकेल देह की दुकान पे ।

तू अस्त्र-शस्त्र धार ले,समय बिगुल बजा रहा ।

कि कृष्ण सा नहीं कोई, सहायतार्थ आ रहा।

अनु बाफना

दुबई, यू.ए.ई.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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