कुछ नया सा
अंजलि को जब भी घबराहट महसूस होती है, वह अपने नाखून चबाने लगती है। कितनी बार उसने यह आदत छोड़ने की कोशिश की, लेकिन जाने अनजाने यह हो जाता है। अविनाश ने कितनी बार टोका होगा – लेकिन आदत तो छूटती नहीं। अब यही देखो ना, अविनाश को भूलने की कोशिश भी तो ऐसी ही नाकाम होती है। उसकी आँखों में बरबस आँसू आ गए।
आज वही 14 फरवरी है। आठ साल पहले ऑफिस में पहली मुलाकात हुई थी। वह था डिप्टी सी.ई.ओ. और वो थी डिप्टी मैनेजर। इंटरनेशन कॉल को मॉनिटरिंग कर रहा था। कॉल खत्म होने के बाद उसके सीट पर ही आ गया और एक ‘थम्बस अप’ का साइन देकर चला गया। अंजलि थोड़ी घबराई पर फिर आश्वस्त हो गई। इसी तरह कैफे, मींटिग और प्रेजेन्टेशन मे हल्की फुल्की मुलकातें। ऐसा कुछ भी नहीं कि वसंत के झोंके आए और उसके पैरों के नीचे की जमीन खिसक आई। उस यादों को आज भी अंजलि सीने में लगाएं बैठी है। एक दिन अचानक अविनाश सामने आया और बोलने लगा – ‘‘अंजलि, यू नीड टू रिजाइन।’’ ‘‘क्यों, क्या हुआ’’ – वो घबरा गई। कोई गलती तो हुई नहीं थी। मैंने एक दूसरी कम्पनी में बात की है। तुम्हें ‘जॉब ऑफर’ आ जाएगा। ओह हो तो बिल्कुल ही सब कुछ सोच रखा है। दसअसल कम्पनी की पालिसी है – नो इंटरनल रोमांस। और फिर वहाँ से चला गया।
प्रेम के इस अनोखे इजहार पर वह कुछ बोल नहीं पाई। कम्पनी बदलने के इस निर्णय पर सभी अचंभित थे। उसने किसी को भी कारण नहीं बताया, अपनी दीदी को भी नहीं। फिर अगले फरवरी 14 को लाल गुलाबों का गुलदस्ता लेकर वह पहुँच गया।
फिर अगले तीन चार साल शादी ब्याह, तैयारियाँ, नया घर में बीत गए। अपने अपने कामों में व्यस्त वह समझ नहीं पाई कि अविनाश किसी परेशानी में घिर गया था। रात को देर से आना, हमेशा तल्खी – यह बदलाव उसके लिए नया था। बार बार एक नाम फोन पर सुनाई पड़ने लगा – राजीव सिंह। मेरी जगह पर राजीव सिंह ने कम्पनी ज्वाइन की थी और वह उसका चहेता था। वो आगाह करना चाहती थी कि इतना भरोसा, इतना विश्वास ठीक नहीं है। वो कम्पनी को आकाश की ऊचाँइयों पर ले जाना चाहता था और राजीव उसका साथ दे रहा था। एक फिनान्सियल डील पर दोनों काम कर रहे थे। कम्पनी मुनाफा कमाएगी तो अच्छा ही होगा। काश उसने अविनाश से और पूछा होता।
उस दिन भी 14 फरवरी की शाम थी। वो घर को सजाए बैठी थी। एक खुशखबरी और देनी थी। वो एक अच्छे शाम के इंतजार में थी। और आज से अच्छा दिन क्या होगा। रात के नौ बजे तक वो नहीं पहुँचा तो नाखूनों को चबा चबा कर उसका बुरा हाल हो रहा था। तभी साढ़े दस बजे राजीव का फोन आया। हॉस्पिटल से। कार का ऐक्सीडेंट हो गया है। वो कोमा में है। भागी-भागी वहाँ पहुँची। राजीव भी अस्तव्यस्त था। चेहरे पर बदहवासी। गाड़ी वही चला रहे थे। मैं नई स्कीम के नफे नुकसान बता रहा था। कम्पनी को करीब डेढ सौ करोड़ का घाटा हो गाया है – यह सुनते ही तो नर्वस हो गए और राजीव बच गया – यह सोचकर अंजलि को जैसे राजीव से नफरत हो गई थी। आदमी अपने दुःखों को झेलने के कई बहाने ढूढंता है।
राजीव ने आज दो सालों बाद फोन किया कि वह मिलना चाहता है। उसने हाँ कर दिया। क्या कहेगी उससे ? इन दो सालों में उसे साँस लेना भी गवारा नहीं था। फिर धीरे-धीरे जीने की इच्छा आने लगी। बेटे को देखकर मुस्कुराने लगी।
राजीव बड़े पशोपेश में लगा। अंजलि ने ही बातचीत शुरु की। ‘तुम्हारी गलती नहीं थी’। शायद अविनाश उस बात को सहन नहीं कर पाए। आज मैं फिर से जीना चाहती हूँ। मेरा वह अनमोल रिश्ता था – उसको देखकर आँसू अब पोछ लिए है। अब आगे मुस्कुराना चाहती हूँ।
राजीव ने शायद यह उम्मीद नहीं की थी। असकी आँखों में आँसू थे। आज 14 फरवरी कुछ नया सा लगा। अंजलि ने राजीव को क्षमा कर दिया – क्योंकि उसकी गलती अनजाने में हुई थी। माफी की खुशबू ने अंजलि को नया कर दिया था।
डॉ. अमिता प्रसाद
कर्नाटक, भारत